एक शहीद पिता के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात क्या होगी कि उसका बेटा लेफ्टिनेंट बनकर उसी के बटालियन में शामिल हो जाए। हम जिस बेटे की बात करे हैं उनका नाम लेफ्टिनेंट नवतेश्वर सिंह है। जब वे तीन महीने से भी कम उम्र के थे तब उनके पिता मेजर हरमिंदर पाल सिंह अप्रैल 1999 में जम्मू-कश्मीर के बारामूला में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। अब चौबीस साल बाद नवतेश्वर सिंह को ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) चेन्नई से उनके पिता की बटालियन 18 ग्रेनेडियर्स में नियुक्त किया गया।
पिता की तरह नवतेश्वर हमेशा से सेना में शामिल होना चाहते थे
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मेजर हरमिंदर पाल सिंह मोहाली के नजदीक मुंडी खरड़ के रहने वाले थे। वे खुद एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी कैप्टन हरपाल सिंह के बेटे थे। मेजर हरमिंदर की याद में मुंडी खरड़ में एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है। इतना ही नहीं मोहाली फेज-6 में सरकारी कॉलेज का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है। युद्ध में शहीद होने के बाद उनकी पत्नी रूपिंदर पाल कौर को पंजाब सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में नौकरी दी गई थी। परिवार के एक सदस्य ने बताया कि नवतेश्वर हमेशा से सेना में शामिल होना चाहते थे। वे ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में उसी बटालियन में शामिल होकर अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना चाहते थे। नवतेश्वर का जन्म जनवरी 1999 में हुआ था। तीन महीने की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया। नवतेश्वर ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) चंडीगढ़ से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है। उनका सपना सेना में शामिल होने का था। अब जाकर उनका सपना पूरा हुआ है।
मेजर हरमिंदर पाल सिंह ने दो आंतकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया था
वहीं मेजर हरमिंदर पाल सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल, खरड़ से की थी। इसके बाद उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज मोहाली से पढ़ाई की थी। 1992 में 18 ग्रेनेडियर्स में कमीशन प्राप्त मेजर हरमिंदर और उनकी यूनिट अप्रैल 1999 में जम्मू-कश्मीर के बारामूला में तैनात थे। उस समय उन्होंने मुठभेड़ में हिस्सा लिया था। 13 अप्रैल को यूनिट को एक गांव में कुछ आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली। मेजर हरमिंदर और उनके सैनिकों को आतंकवादियों से निपटने का काम सौंपा गया था। उस समय गोलीबारी में अधिकारी को बाएं हाथ पर चोटें आईं थीं।
जैसे-जैसे मुठभेड़ आगे बढ़ी मेजर हरमिंदर ने देखा कि आतंकवादियों की गोलीबारी में उनके सैनिक मारे जा रहे हैं। इसके बाद मेजर हरमिंदर ने आतंकवादियों की ओर हमला किया और उनमें से दो को मार गिराया। हालांकि तीसरे आतंकवादी की गोली से उनके सिर पर चोट लगी और वे शहीद हो गए। मेजर हरमिंदर को इस साहसी प्रदर्शन के लिए तीसरे सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार, शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।
