प्रियदर्शनी राहुल सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं। 24 साल की उम्र में प्रियदर्शनी की शादी तय हुई थी लेकिन दहेज की अनुचित मांग के कारण उनकी शादी टूट गई। शादी टूटने के कारण वह महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने लगीं।
37 वर्षीय प्रियदर्शनी ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, “2011 के उस दिन ने मेरे आत्मसम्मान और भरोसे को हिलाकर रख दिया। सब कुछ तय हो चुका था। मेरा परिवार उनकी अनुचित दहेज मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं था और हम सभी टूट गए थे।” प्रियदर्शनी के पिता उस समय सरकारी सेवा से रिटायर्ड हो चुके थे और उनकी मां एक हाउस वाइफ थीं। दूल्हे की अधिक दहेज की मांग के कारण शादी टूटी थी। जैसे ही शादी रद्द हुई उसके बाद परिवार को सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
प्रियदर्शनी को आश्चर्य हुआ कि उनके परिवार को शर्म क्यों महसूस हुई, जबकि उनकी कोई गलती नहीं थी। उन्हें याद है कि उन पर कानूनी लड़ाई लड़ने के बजाय चुप रहने और घटना को भूल जाने का दबाव डाला गया था। हालांकि आपसी सहमति से शादी होने से पहले ही इस तरह के अपमान का सामना करने से इनकार करते हुए प्रियदर्शनी ने न्याय के लिए मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
इसके कारण प्रियदर्शनी ने कानून की पढ़ाई शुरू की और सुप्रीम कोर्ट में भी मुकदमा लड़ा। प्रियदर्शनी ने कहा, “हालांकि मैंने कभी भी विक्टिम कार्ड नहीं खेला है। लेकिन आपको यह तय करना होगा कि आपका आत्म-सम्मान क्या है, समाज नहीं?” पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से उनका मामला सुलझ गया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता कल्याण कोष में 11 लाख रुपये के मुआवजे की राशि दान करने के लिए भी स्वेच्छा से योगदान दिया।
प्रियदर्शनी कहती हैं, ”मैंने मुआवज़े की राशि का एक पैसा भी नहीं लिया, बल्कि जरूरतमंदों के लिए सुप्रीम कोर्ट कोर्ट बार एसोसिएशन को दान कर दिया। मैंने बस यही सोचा कि किसी अन्य व्यक्ति को दहेज के बहाने महिलाओं को धोखा देने, दुर्व्यवहार करने और प्रताड़ित करने में आसानी नहीं होनी चाहिए। सबसे बड़ी चुनौती समय के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं को समझना है।
2015 में प्रियदर्शनी ने एक वकील से शादी की, जिन्होंने पुणे के प्रतिष्ठित सिम्बायोसिस लॉ स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की थी। उनके पति ने उनकी लड़ाई में उनका साथ दिया। मामला सुलझने के बाद वह इससे अपनी पहचान नहीं कराती हैं। वह अक्सर खुद को केवल दहेज पीड़ित के रूप में पहचाने जाने के बजाय सफलता के लिए प्रयास करने की याद दिलाती थी।
प्रियदर्शनी ने विभिन्न कार्यक्रमों में स्वयंसेवा करना शुरू कर दिया। 2023 में प्रियदर्शनी संसद रत्न पुरस्कार समिति की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। उन्होंने सभी पार्टियों में राजनीतिक उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने के लिए एक एनजीओ, नेक्स्ट जेन पॉलिटिकल लीडर्स की भी स्थापना की। वह कहती हैं, “इसका उद्देश्य युवाओं को राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित करना है।”