Mumbai Pollution: मुंबई में गंभीर वायु प्रदूषण को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। हाई कोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि वे हवा को शुद्ध करने के लिए भगवान पर निर्भर नहीं रह सकते, बल्कि इसके बजाय अधिकारियों को शहर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने शहर में प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य प्राधिकारियों द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की। जज महानगर में वायु की खराब होती गुणवत्ता के संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
जज कुलकर्णी ने कहा कि वायु की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन बहुत खराब होती जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि शहर गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या का सामना कर रहा है और अधिकारी केवल तभी काम करते हैं जब अदालतें कोई आदेश पारित करती हैं। पीठ ने कहा कि प्रदूषण आमतौर पर दिवाली के मौसम से शुरू होता है और फिर शहर भर में चल रहे निर्माण कार्य, यातायात भीड़ आदि जैसे अन्य मुद्दे हवा को और खराब कर देते हैं।
जज कुलकर्णी ने अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण से कहा कि मैडम, यह एक गंभीर मामला है। अनियंत्रित यातायात सीधे वायु प्रदूषण को प्रभावित कर रहा है। हजारों कारें धुआं छोड़ रही हैं और मौजूदा प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं। यातायात विभाग को नगर निगम के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि यातायात के कारण प्रदूषण न हो। इन सभी पुलों और तटीय सड़कों आदि के बावजूद यातायात की समस्या जस की तस बनी हुई है। हालांकि, ज्योति चव्हाण पीठ के प्रश्नों का उचित उत्तर देने में असमर्थ थीं। इसके अलावा, जस्टिस कुलकर्णी ने वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे (WEH) पर यातायात की भीड़ का उदाहरण दिया और बताया कि कैसे बांद्रा से एक नागरिक को बोरीवली पहुंचने के लिए कम से कम 2 घंटे से अधिक समय बिताना पड़ता है।
जस्टिस कुलकर्णी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इसी तरह बांद्रा से हवाई अड्डे तक पहुंचने में कम से कम एक घंटा लगता है। इसका मतलब है कि यातायात का उचित प्रबंधन नहीं है और यह सारा यातायात प्रदूषण बढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं है। डब्ल्यूईएच पर मेट्रो का काम, ये सभी एजेंसियां लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, बल्कि अधिकारी हैं। मुंबई के पश्चिमी उपनगरों के बारे में विशेष रूप से बोलते हुए पीठ ने कहा कि वहां वायु की गुणवत्ता ‘सबसे खराब’ है और दृश्यता बहुत कम है।
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पीठ ने आगे कहा कि हालांकि, राज्य सरकार मुंबई के सभी प्रवेश बिंदुओं पर कारों के लिए सभी टोल बंद करके अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन इससे सड़कों पर भीड़भाड़ कम करने में कोई मदद नहीं मिली है। जस्टिस कुलकर्णी ने नाराज होकर कहा कि कारों के लिए टोल मुक्त करने के बावजूद, आपके पास कारों के लिए सभी अवरोध हैं। आपको वहां से टोल नाका हटा देना चाहिए ताकि कारें तेजी से जा सकें… टोल केवल भारी वाहनों के लिए होना चाहिए, बाकी अन्य वाहनों को गुजरने की अनुमति दी जानी चाहिए… अवरोधों से यातायात बढ़ रहा है… टोल हटाने से कोई फर्क नहीं पड़ा है… फिर भी जाम लग जाता है… इसका क्या फायदा? कार्बन उत्सर्जन प्रदूषण को बढ़ाता जा रहा है…”
न्यायाधीशों ने परिवहन आयुक्त और यातायात आयुक्तों को सुझाव दिया कि वे व्यक्तिगत रूप से मौके पर जाएं और स्थिति का जायजा लें, क्योंकि अधिकांश काम कांस्टेबलों पर छोड़ दिया गया है। इसके अलावा, पीठ ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील जोएल कार्लोस से यह सुनिश्चित करने को कहा कि ‘स्प्रिंकलर’ ठीक से और कुशलता से काम कर रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जो घनी प्रदूषण वाले हैं।
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कि महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को उद्योगों से होने वाले प्रदूषण पर सख्ती से नजर रखनी होगी। निर्माण कार्यों के कारण होने वाली धूल पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यातायात विभाग को यातायात प्रदूषण पर ध्यान देना चाहिए। कुछ करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए।
जब कार्लोस ने यह दलील देने की कोशिश की कि बांद्रा की ओर तटीय सड़क के कुछ हिस्से पर अभी भी काम चल रहा है और इसलिए यातायात (बोरीवली तक) जारी है, तो पीठ ने कहा कि वह यह नहीं जानना चाहती कि भविष्य में क्या होगा और उसे केवल वर्तमान से मतलब है।
जस्सिट कुलकर्णी ने कहा कि कितने बच्चे, बुजुर्ग नागरिक पीड़ित हैं? हम इस पर विचार कर रहे हैं, न कि इस पर कि भविष्य में क्या होगा। यह एक आपातकालीन स्थिति है। मरीन ड्राइव से हम दूसरी तरफ की इमारतें नहीं देख सकते। हम हमेशा हवाओं के लिए भगवान पर निर्भर नहीं रह सकते।
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