Maratha Reservation: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर सत्ता पर काबिज नेताओं के बयान सामने आने लगे हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के दो राजनेताओं ने मराठा आरक्षण मुद्दे पर राज्य सरकार के रुख पर असंतोष व्यक्त किया है। इन दो नेताओं में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे हैं और दूसरा नामा हैं अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता छगन भुजबल, जो महाराष्ट्र कैबिनेट में मंत्री भी हैं। दोनों ने मराठों को ओबीसी की तरह लाभ देने के एकनाथ शिंदे सरकार के फैसले का विरोध किया है। भुजबल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजीत पवार गुट का हिस्सा हैं, जिसने पिछले साल शिवसेना पार्टी और भाजपा के सत्तारूढ़ गुट के साथ गठबंधन किया था।

मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि मैं पिछले 35 साल से ओबीसी के लिए काम कर रहा हूं…आज मराठा ओबीसी में शामिल हैं, कल पटेल, जाट और गुर्जर भी शामिल होंगे। भुजबल ने कहा कि हम हर उस तरीके से लड़ेंगे जिसकी लोकतंत्र में उम्मीद की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा पिछड़े नहीं हैं, लेकिन उन्हें बैकडोर एंट्री के जरिए ओबीसी में शामिल किया जा रहा है, इससे असर ओबीसी आरक्षण पड़ रहा है।

छगन भुजबल ने कहा कि मराठा आरक्षण आंदोलन की परिणति से मौजूदा ओबीसी समुदाय के सदस्यों में चिंताएं पैदा हो गई हैं। भुजबल ने कहा कि ओबीसी को लग रहा है कि उन्होंने अपना आरक्षण खो दिया है, क्योंकि मराठा इसका लाभ उठाएंगे। मैं मराठों को अलग आरक्षण देने का समर्थन करता हूं, लेकिन मौजूदा ओबीसी कोटा उनके साथ साझा नहीं करने का समर्थन करता हूं। क्योंकि एक बार जब वे ओबीसी के लिए मौजूदा आरक्षण का हिस्सा बन जाएंगे, तो केवल उन्हें ही लाभ मिलेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीपी (अजित पवार गुट) नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि भुजबल की महाराष्ट्र सरकार की आलोचना पार्टी का आधिकारिक रुख नहीं है। पटेल ने कहा कि भुजबल का रुख उनके नेतृत्व वाले ओबीसी समूह समता परिषद का है, न कि राकांपा का।

भुजबल ने कहा कि मराठाओं के कुनबी रिकॉर्ड की जांच करने वाली समिति के प्रमुख सेवानिवृत्त न्यायाधीश संदीप शिंदे को अत्यधिक उच्च वेतन मिलता है। उन्होंने कहा कि जहां भारत के मुख्य न्यायाधीश को 2.80 लाख रुपये का वेतन मिलता है, वहीं न्यायमूर्ति शिंदे और समिति के सदस्यों को 4.50 लाख रुपये मिलते हैं।