दो दिन पहले यानि 16 दिसंबर को चुनाव आयुक्तों के साथ सरकार की बैठक पर कानून मंत्रालय का कहना है कि चुनाव सुधारों को लेकर चुनाव आयोग ने कई प्रस्ताव सरकार को भेजे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी कई बार पत्रों के जरिए सरकार से उन पर गौर करने को कहा था। इसी के मद्देनजर सरकार ने चुनाव आयुक्तों के साथ बैठक की थी। विधि मंत्रालय का कहना है कि ये मीटिंग वर्चुअल थी और बेहद औपचारिक।
गौरतलब है कि मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र और दो चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और अनूप चंद्र पांडे को 16 नवंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय की एक ऑनलाइन बातचीत में शामिल होना पड़ा था। चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय के एक अधिकारी से एक पत्र प्राप्त हुआ। इसमें लिखा था कि पीएम के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा कॉमन इलेक्टोरल रोल पर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इसमें सीईसी के मौजूद होने की उम्मीद है।
सूत्र का कहना है कि विधि मंत्रालय की ओर से चिट्ठी में जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया है, मुख्य चुनाव आयुक्त उससे नाराज हुए। बताया जा रहा है कि जिस तरह से चिट्ठी लिखी गयी, उसकी भाषा किसी को समन करने जैसी थी। आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि इस तरह के शब्दों से चुनाव से आयोग में हड़कंप मच गया क्योंकि यह एक समन की तरह लग रहा था। पिछले साल इसी विषय पर 13 अगस्त और तीन सितंबर को हुई बैठक में चुनाव आयोग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया था ना कि चुनाव आयुक्तों ने।
उधर, पीएमओ की चुनाव आयोग के साथ बैठक ने सियासी रंग ले लिया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जब प्रधानमंत्री कार्यालय में चुनाव आयुक्तों की बैठक होती है, तो चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजिमी है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि विधि मंत्रालय के अधिकारी की एक चिट्ठी के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में यह बैठक हुई। यह सामान्य घटना नहीं है। विधि मंत्रालय की ओर से लिखी गई चिट्ठी में कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ जो असामान्य हैं। खड़गे ने दावा किया कि चिट्ठी में लिखा गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा एक बैठक करने वाले हैं। इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त की उपस्थिति जरूरी है।