मौजूदा दौर में सबसे बड़ी बहस अगर कोई है तो वो सुप्रीम कोर्ट के जजों का रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद लेना है। पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई और रिटायर्ड जस्टिस एस अब्दुल नजीर को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। माना जा रहा है कि इन दोनों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद नहीं लेना चाहिए था। लेकिन इस फेहरिस्त में कई और भी रिटायर्ड जस्टिस शामिल हैं। बीते पांच सालों में 28 जज रिटायर हुए। इनमें से 21 फीसदी ने कोई न कोई संवैधानिक या फिर दूसरी कोई नियुक्ति लेने में देर नहीं लगाई। हालांकि निशाने पर रंजन गोगोई और अब्दुल नजीर ही चल रहे हैं, क्योंकि रिटायरमेंट से पहले दोनों ही उस अहम बेंच का हिस्सा थे जिसने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

रिटायरमेंट के दिन ही जस्टिस गोयल बन गए NGT के चेयरमैन

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल सुप्रीम कोर्ट से 6 जुलाई 2018 को रिटायर हुए। उसी दिन उन्हें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यनल का चेयरमैन बना दिया गया। NGT पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई करके फैसले लेता है। जूडिशियल सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के बाद NGT को सबसे ज्यादा ताकतवर माना जाता है।

दूसरे जजों की बात की जाए तो जस्टिस अरुण मिश्रा 2 सितंबर 2020 को रिटायर हुए। साल भर से भी कम समय के भीतर 2 जून 2021 को उन्हें नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन का चेयरमैन बना दिया गया। ये नियुक्ति भी खासी भारी भरकम मानी जाती है।

जस्टिस अशोक भूषण 4 जुलाई 2021 को रिटायर हुए। इसी साल 8 नवंबर को उन्हें नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के चेयरमैन की कुर्सी मिल गई। जस्टिस हेमंत गुप्ता भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं। वो 16 अक्टूबर 2022 को रिटायर हुए थे। इसी साल 22 दिसंबर को उन्हें नई दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (NDIAC) के चेयरमैन की कुर्सी मिल गई। एस अब्दुल नजीर 4 जनवरी 2023 को रिटायर हुए। 12 फरवरी को वो आंध्र प्रदेश के गवर्नर नियुक्त हो गए। पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई 17 नवंबर 2019 को रिटायर हुए थे। 19 मार्च 2020 को वो राज्यसभा सदस्य मनोनीत किए गए।

जस्टिस सुब्रमण्यम ने ठुकरा दिया था CJI चंद्रचूड़ का ऑफर

हालांकि इन सबसे अलग सुप्रीम कोर्ट के एक और जस्टिस भी हैं। वी राम सुब्रमण्यम जब रिटायर हुए तो उन्होंने एक वाकया सुनाया। उनका कहना था कि CJI डीवाई चंद्रचूड़ चाहते थे कि वो रिटायरमेंट के बाद किसी ट्रिब्यूनल के चेयरमैन बन जाए। लेकिन उन्होंने सिरे से इनकार कर दिया। सुब्रमण्यम का कहना था कि वो अपनी आजादी से समझौता नहीं करना चाहते। इसी वजह से उन्होंने चंद्रचूड़ की बात को सिरे से नकार दिया था।