BJP Congress Manmohan Singh Memorial Politics: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर काफी विवाद हुआ। कांग्रेस ने मांग की कि मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए केंद्र सरकार को दिल्ली में जगह देनी चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि निगम बोध घाट पर मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार करना देश के पहले सिख प्रधानमंत्री का अपमान है। मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री का स्मारक शांति वन में जवाहरलाल नेहरू के बगल में जहां संजय गांधी का स्मारक है, वहां बनाया जा सकता है।

मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर हुए विवाद के बीच कई बड़ी जानकारियां लोगों के सामने आई। जैसे- संजय गांधी का तो दिल्ली में स्मारक है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का स्मारक भारत में कहीं भी नहीं है। जबकि संजय गांधी किसी भी बड़े ओहदे पर नहीं रहे थे।

दिल्ली में यमुना नदी के किनारे महात्मा गांधी की समाधि राजघाट है। जनवरी, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनकी समाधि बनाई गई थी। मई, 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद दिल्ली में शांति वन में उनका स्मारक बनाया गया। यह राजघाट से सटा हुआ है। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की याद में भी राजघाट के पास विजय घाट में स्मारक बनाया गया।

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14 सितंबर, 2014 को नई दिल्ली में अपनी बेटी दमन सिंह की किताब का विमोचन करते मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर। (Express archives)

अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने वाले गुलजारी लाल नंदा का स्मारक अहमदाबाद में बनाया गया जिसे अभय घाट कहा जाता है। अहमदाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की समाधि है जिसे नारायण घाट कहा जाता है। मोरारजी देसाई गुजरात से ही आते थे और 1977 में केंद्र में बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने काम किया था।

मोरारजी देसाई के बाद प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह की मृत्यु मई,1987 में हुई थी। दिल्ली में जिस जगह उनका अंतिम संस्कार हुआ उसे किसान घाट का नाम दिया गया है।

जून, 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में दिल्ली में मृत्यु हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार स्मृति वन स्मारक परिसर में किया गया और यहां संजय गांधी की समाधि बनाई गई। उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी।

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शक्ति स्थल और वीर भूमि

अक्टूबर, 1984 में प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। इंदिरा गांधी का अंतिम संस्कार राजघाट के पास किया गया था जिसे शक्ति स्थल का नाम दिया गया। मई, 1991 में राजीव गांधी की एक आतंकवादी बम धमाके में मौत हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार राजघाट के पास ही किया गया। इस स्मारक को वीर भूमि का नाम दिया गया।

देश के एक और प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जुलाई 2007 में निधन हुआ था तब उनका अंतिम संस्कार एकता स्थल परिसर में ही किया गया था। 2015 में मोदी सरकार ने मोदी सरकार ने उनके स्मारक का नाम बदलकर जननायक स्थल कर दिया था।

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पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल की स्मृति में स्मृति स्थल परिसर में एक स्मारक बनाया गया है। बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी के अगस्त, 2018 में निधन के बाद मोदी सरकार ने वाजपेयी की याद में दिल्ली में एक स्मारक बनाया और इसका नाम सदैव अटल रखा।

कांग्रेस की सरकार में नहीं बना राव का स्मारक

हैरान करने वाली बात यह है कि इन सब नेताओं को तो अंतिम संस्कार के बाद उनकी यादगार के रूप में स्मारक मिला लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जो पांच साल तक चलने वाली किसी कांग्रेसी सरकार के पहले गैर-गांधी प्रधानमंत्री थे, दिल्ली में उनके स्मारक के लिए कोई जगह नहीं दी गई। 2004 में जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ तो केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी।

यहां तक कि नरसिम्हा राव के शव को कांग्रेस दफ्तर में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखने की अनुमति भी नहीं दी गई। नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया गया। वह संयुक्त आंध्र प्रदेश में जन्मे थे। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो 2015 में उनकी सरकार ने नरसिम्हा राव के लिए दिल्ली में ज्ञान भूमि नाम से स्मारक बनाया।

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‘राष्ट्रीय स्मृति स्थल’ का प्रस्ताव

इस तरह दिल्ली के बिलकुल बीच में स्मारकों के लिए लगभग 245 एकड़ जमीन दी जा चुकी थी। इसे देखते हुए 2013 में मनमोहन सिंह सरकार ने फैसला लिया था कि अब दिवंगत नेताओं के लिए अलग से किसी तरह का स्मारक नहीं बनाया जाएगा। सरकार ने कहा था कि भविष्य में नेताओं के लिए स्मारक बनाने के लिए यमुना नदी के किनारे एक ‘राष्ट्रीय स्मृति स्थल’ बनाया जाएगा और यहीं पर सभी नेताओं का साझा परिसर या कॉमन कॉम्प्लेक्स होगा।

कॉमन कॉम्प्लेक्स को लेकर 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए चर्चा हुई थी लेकिन मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी थी।

दिल्ली में पूर्व राष्ट्रपतियों के भी हैं स्मारक

इन पूर्व प्रधानमंत्रियों के अलावा दिल्ली में पूर्व राष्ट्रपतियों के भी स्मारक हैं। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह (एकता स्थल), शंकर दयाल शर्मा (कर्म भूमि), आर. वेंकटरमन का भी स्मारक है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का पटना में स्मारक है जिसे महाप्रयाण घाट कहा जाता है। राजेंद्र प्रसाद मूल रूप से बिहार से ही थे। संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर का चैत्य भूमि नामक स्मारक मुंबई में दादर चौपाटी के बगल में स्थित है।

इन तमाम जानकारियों को पढ़ने के बाद यही सवाल मन में आता है कि तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों और पूर्व राष्ट्रपतियों के अलावा संजय गांधी का भी दिल्ली में स्मारक है लेकिन यह निश्चित रूप से हैरान करने वाली बात है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह जिनके प्रधानमंत्री रहते हुए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया और यह भारत की राजनीति में एक बहुत बड़ा घटनाक्रम था, उनका कहीं कोई स्मारक नहीं है। इस बात की पुष्टि उनके बेटे अजय ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में की कि उनके पिता का देश भर में कहीं भी कोई स्मारक नहीं है।

बहुत हैरान करने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस की सरकारों के दौरान नरसिम्हा राव के स्मारक के लिए दिल्ली में जगह नहीं दी गई और नरेंद्र मोदी सरकार ने राव के स्मारक के लिए जगह दी।

क्लिक कर पढ़िए, कहानी पाकिस्तान के उस गांव की गलियों की, जहां बचपन में घूमा करते थे मनमोहन सिंह।