Manmohan Singh Passes Away: पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार 26 दिसंबर 2024 को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। मनमोहन सिंह ने दिल्ली स्थित एम्स में अंतिम सांस ली, जहां उन्हें गुरुवार शाम भर्ती कराया गया था। मनमोहन सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरशरण कौर और उनकी तीन बेटियां हैं।
मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनावों के बाद 22 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और 22 मई 2009 को दूसरे कार्यकाल के लिए पद की शपथ ली थी। सौम्य और मृदुभाषी स्वभाव वाले मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले शीर्ष अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री के तौर पर लगातार दो बार गठबंधन सरकार चलाने वाले कांग्रेस के पहले नेता के तौर पर याद किए जाएंगे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को दुनिया भर में उनकी आर्थिक विद्वता तथा कार्यों के लिए सम्मान दिया जाता था।
10 साल तक रहे देश के प्रधानमंत्री
उन्होंने भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2004 से 2014 तक 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया। कभी अपने गांव में मिट्टी के तेल से जलने वाले लैंप की रोशनी में पढ़ाई करने वाले मनमोहन सिंह आगे चलकर एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद बने। मनमोहन सिंह की 1990 के दशक की शुरुआत में भारत को उदारीकरण की राह पर लाने के लिए सराहना की गई, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में 10 साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों पर आंखें मूंद लेने के लिए भी उनकी आलोचना हुई।
ग्रामीण परिवारों को दी 100 दिन रोजगार की गारंटी
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA, साल 2005) शामिल था। इस कानून ने ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 100 दिन के वेतन रोजगार की गारंटी दी। उनकी सरकार ने 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम भी लागू किया, जिसने नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा रखी गई जानकारी तक पहुंचने का अधिकार दिया और शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत किया।
दो-तिहाई आबादी के लिए भोजन का अधिकार
साल 2013 में उनकी सरकार ने भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी को सब्सिडी वाला खाद्यान्न सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (इसे खाद्य अधिकार अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है) लागू किया। मनमोहन सिंह ने तब ‘पोषण और स्वास्थ्य में सुधार के लिए कृषि का लाभ उठाना’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि ऐसे मुद्दे ‘सामयिक’ हैं क्योंकि दुनिया बढ़ती खाद्य कीमतों का सामना कर रही है और यह मान्यता बढ़ रही है कि जलवायु परिवर्तन कई विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
नोटबंदी की खुलकर की थी आलोचना
अपने लंबे राजनीतिक जीवन में मनमोहन सिंह 1991 से राज्यसभा के सदस्य थे। वह राज्यसभा में 1998 से 2004 के बीच नेता प्रतिपक्ष भी रहे। उन्होंने इस साल (3 अप्रैल) को राज्यसभा में अपनी 33 साल लंबी संसदीय पारी समाप्त की। मनमोहन सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने साइप्रस (1993) में राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक और 1993 में वियना में मानवाधिकारों पर विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। मनमोहन सिंह नोटबंदी के मुखर आलोचक थे और उन्होंने इसे ‘संगठित और वैध लूट’ कहा था।
छोटे से गांव से कैम्ब्रिज तक का सफर
अविभाजित भारत (अब पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर 1932 को गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर जन्में मनमोहन सिंह ने 1948 में पंजाब में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उनका शैक्षणिक करियर उन्हें पंजाब से ब्रिटेन के कैम्ब्रिज तक ले गया जहां उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी ऑनर्स की डिग्री हासिल की।
मनमोहन सिंह ने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नाफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में ‘डी.फिल’ की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित ‘दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ के संकाय में अध्यापन से की। उन्होंने ‘यूएनसीटीएडी’ सचिवालय में भी कुछ समय तक काम किया। बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में ‘साउथ कमीशन’ के महासचिव बने।
जब मनमोहन सिंह बोले- मैं एक्सिडेंटल पीएम नहीं, एक्सीडेंटल फाइनेंस मिनिस्टर भी था
इन पदों को भी किया सुशोभित
वर्ष 1971 में मनमोहन सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने जिन कई सरकारी पदों पर काम किया उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद शाामिल हैं।
साल 1991 रहा करियर का अहम मोड़
उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ 1991 में नरसिंह राव सरकार में भारत के वित्त मंत्री के रूप में नियुक्ति था। आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को अब दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है। बाद में मनमोहन सिंह को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व करने के लिए चुना गया जब सोनिया गांधी ने इस भूमिका को संभालने से इनकार किया और अपनी जगह उनका चयन किया।
1991 में ही कर दी थी यह भविष्यवाणी
मनमोहन सिंह ने जुलाई, 1991 के बजट में अपने प्रसिद्ध भाषण में कहा था, ‘पृथ्वी पर कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है। मैं इस प्रतिष्ठित सदन को सुझाव देता हूं कि भारत का दुनिया में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उदय होना चाहिए, यह एक ऐसा ही एक विचार है।’
इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा: मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह को विवादास्पद मुद्दों पर अपनी सरकार के रिकॉर्ड और कांग्रेस के रुख का बचाव करते देखा गया। हालांकि, उन्होंने कहा था कि वह एक कमजोर प्रधानमंत्री नहीं थे। मनमोहन सिंह ने तब कहा था, ‘मैं ईमानदारी से उम्मीद करता हूं कि समकालीन मीडिया या उस मामले में संसद में विपक्षी दलों की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।’