दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के लिए पिछला एक साल काफी चुनौतियों से भरा रहा है। जब से वे कथित शराब घोटाले में फंसे हैं, उनकी मुश्किलें बढ़ती गई हैं। इसी कड़ी में आज शुक्रवार को उनकी जमानत पर फैसला आने वाला है। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सिसोदिया को अभी भी जेल में रहना है या फिर उन्हें जमानत मिल जाएगी। वैसे पिछली सुनवाई के दौरान काफी कुछ हुआ था, ईडी पर भी तीखे सवाल उठाए गए थे।

सिसोदिया की किस्मत का फैसला

असल में पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का ऐसा मानना था कि ईडी को समय सीमा बतानी चाहिए कि आखिर कब तक वो ट्रायल पूरा कर लेगी। जज ने सुनवाई के दौरान पूछा था कि ईमानदारी से इस बात का जवाब दें कि कब तक आप ट्रायल पूरा कर पाएंगे, आपको याद दिला दें कि कुल 493 गवाह हैं। वैसे सुनवाई को दौरान ईडी का तर्क था कि देरी इसलिए हो रही है क्योंकि सिसोदिया द्वारा लगातार याचिका पर याचिका दायर की जाती है। उस वजह से केस आगे नहीं बढ़ पाता।

आखिर ये शराब घोटाला है क्या

केजरीवाल भी बुरा फंसे

अब आज सुप्रीम कोर्ट अपना अंतिम निर्णय सुनाने जा रहा है, वो ईडी के तर्कों से सहमत है या सिसोदिया को राहत देने का काम करेगा, यह साफ होने वाला है। इस मामले में अभी अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें भी कम नहीं हुई हैं, उन्हें भी ईडी वाले केस में तो जमानत मिल चुकी है, लेकिन सीबीआई केस में कोई राहत नहीं दी गई है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता लंबे समय से जेल में चल रहे हैं।

शराब घोटाला है क्या?

वैसे यह शराब घोटाला है क्या, इसे लेकर कई लोगों में अभी भी स्पष्टता नहीं है। असल में तीन साल पहले 17 नवंबर 2021 को राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने नई शराब नीति को लागू कर दिया था। इस नई नीति के मुताबिक दिल्ली को कुल 32 जोन में बांटा गया और कहा गया कि आप हर जोन में 27 शराब की दुकानें खोल सकते हैं। अगर इसी आंकड़े के हिसाब से टोटल किया जाए तो पूरी दिल्ली में 849 शराब की दुकानें खुलनी थीं। एक बड़ा बदलाव ये होने वाला था कि जो भी शराब की दुकाने खुलनी थीं, वो सारी प्राइवेट सेक्टर की थीं, सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था। दूसरे शब्दों में जिस शराब करोबार में पहले सरकारी की हिस्सेदारी रहती थी, नई नीति के तहत उसे ही खत्म कर दिया गया।

आखिर खेल क्या हुआ?

इसे और आसानी से ऐसे समझा जा सकता है कि नई नीति लागू होने से पहले तक दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी रहती थीं, वहीं 40 फीसदी प्राइवेट द्वारा ऑपरेट की जाती थीं। लेकिन नई नीति के बाद 100 फीसदी दुकानें प्राइवेंट करने की बात हुई। अब केजरीवाल सरकार ने अनुमान ये लगाया था कि इस नीति के बाद 3500 करोड़ का सीधा फायदा होगा।

सबसे बड़ा बदलाव

एक और बड़ा परिवर्तन ये देखने को मिला था कि नई नीति के बाद शराब की दुकान के लिए जो लाइसेंस लगता था, उसकी फीस कई गुना बढ़ गई थी। तकनीकी भाषा में उसे एल 1 लाइसेंस कहते हैं जिसके लिए कोई दुकानदार पहले 25 लाख रुपये देते थे, बाद में पांच करोड़ तक देने पड़ रहे थे। अब विवाद इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि नई नीति लागू होने के बाद राजस्व में भारी कमी के आरोप लगने लगे।