दिल्ली की राजनीति में कुछ तो बड़ा होने की सुगबुगाहट हो रही है। मनीष सिसोदिया को जब से कथित शराब घोटाले में जमानत दी गई है, आम आदमी पार्टी के अंदर में पावर डायनैमिक्स बदल चुके हैं। यह नहीं भूलना चाहिए सिसोदिया के बाहर आने से आम आदमी पार्टी के ही कई दूसरे बड़े नेताओं की सियासी ताकत में कटौती हो जाएगी। यहां भी सबसे बड़ा नाम तो आतिशी का है जिनके पास शिक्षा मंत्रालय है जो एक समय मनीष सिसोदिया की पहचान बन चुका था।
केजरीवाल मतलब आम आदमी पार्टी!
लेकिन अब जब मनीष सिसोदिया बाहर आ गए हैं, उनकी ताकत में इजाफा होना तय माना जा रहा है। सवाल तो यह है कि क्या आम आदमी पार्टी की कमान भी सिसोदिया के पास ही चली जाएगी? ऐसा इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी जिस तरह से संचालित होती है वहां पर अरविंद केजरीवाल की ताकत सबसे ज्यादा है। प्रचार करने से लेकर रणनीति बनाने तक, पार्टी का जो भी काम रहता है, उसमें सीधी भागेदारी केजरीवाल की होती है। कहना गलत नहीं होगा कि पिछले 13 सालों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं।
जेल में बैठे केजरीवाल की मजबूरियां कईं
अब उस प्रकार की लोकप्रियता हासिल करने के बाद भी अरविंद केजरीवाल जेल में बैठे हैं। उनके पास कोई ताकत नहीं है, कहने को अभी भी दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन पार्टी रणनीति में, संगठन मजबूत करने में उनकी कोई हिस्सेदारी देखने को नहीं मिल रही। आम आदमी पार्टी में यह एक बड़ा वैक्यूम क्रिएट हो चुका है। कहने को संजय सिंह जैसे नेता पार्टी को दिशा दिखाने का काम कर रहे हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल को रिप्लेस करना आसान नहीं।
सिसोदिया के बाद केजरीवाल भी होंगे जेल से रिहा?
कट्टर ईमानदवार वाले खांचे में फिट बैठते सिसोदिया?
अब यही पर बात आती है मनीष सिसोदिया की जिन्हें जानकार भी अरविंद केजरीवाल के बाद दूसरा सबसे बड़ा लोकप्रिय चेहरा मानते हैं। अब इसे परसेप्शन माना जाए या फिर सत्यता, लेकिन बतौर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की काम की चर्चा सबसे ज्यादा रही है। कट्टर ईमानदार सरकार का दावा जो अरविंद केजरीवाल करते हैं, उसकी नींव सिसोदिया का काम ही है। दिल्ली मॉडल की ताकत ही यह दिखाई गई है कि इसमें बिना करप्शन के सच्ची नीयत के साथ सिर्फ लोगों की सेवा हुई है। सस्ते सफर से लेकर सस्ती बिजली तक सबकुछ जनता को दिया गया है।
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आम आदमी पार्टी में नंबर 2 की हैसियत
अब जब सिसोदिया की इस तरह की छवि बनी हुई है, कहना गलत नहीं होगा कि केजरीवाल के बाद पार्टी में नंबर 2 की हैसियत भी वही रखते हैं। अगर अरविंद केजरीवाल कट्टर ईमानदार वाली छवि पर खेलते हैं, सिसोदिया की भी वही यूएसपी मानी जाती है। ऐसे में केजरीवाल को अगर इस मुश्किल समय में रिप्लेस कोई कर सकता है तो वे मनीष सिसोदिया हैं।
सिसोदिया करेंगे पदयात्रा, AAP का बनेंगे नया चेहरा?
मनीष सिसोदिया को लेकर कहा जाता है कि वे सरकारी कामकाज को बेहतर तरीके से समझते हैं। दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल की ताकत यह है कि वे जनता से कनेक्ट करना जानते हैं, वे पार्टी को बेहतर तरीके से आगे ले जा पाते हैं। लेकिन अब हो यह रहा है कि मनीष सिसोदिया को केजरीवाल के रास्ते पर चलना पड़ेगा, जो काम अभी तक तक वे करने से बच रहे थे, अब पूरी तरह उसी काम में उन्हें अपनी सक्रियता दिखानी पड़ेगी। इसी कड़ी में सिसोदिया को ही 14 अगस्त से पूरी दिल्ली में एक पदयात्रा शुरू करनी है। विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी की यह पहली बड़ी रणनीति है।
केजरीवाल को ‘साइडलाइन’ करना सिसोदिया के लिए जरूरी?
माना तो यह जा रहा है कि पदयात्रा के जरिए सिसोदिया के ही कद को बढ़ाने का काम होने वाला है। अब जब सामने से मनीष सिसोदिया लीड करेंगे, मैसेज साफ जाएगा कि उनके नेतृत्व में पार्टी आगे बढ़ने वाली है। यह मैसेज ही सिसोदिया के करियर में एक टर्निंग प्वाइंट बन सकता है। अब सामने से जरूर एकजुटता दिखाने की बात हो रही है, केजरीवाल के समर्थन में भी सिसोदिया नारे लगा रहे हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि राजनीति और उससे जुड़े सियासी फायदों के लिए अपनों को ही नीचे धकेल देना या नजरअंदाज कर देना कोई बड़ी बात नहीं।
सिसोदिया का नहीं करता कोई विरोध, पार्टी एकजुट
इसी वजह से कहा जा रहा है कि अगर मनीष सिसोदिया को ज्यादा महत्वता दी जा रही है, अगर पार्टी के तमाम नेता इस समय उनकी अगुवाई में काम करने को तैयार हैं, इसे पूर्व डिप्टी सीएम के लिए सबसे ज्यादा मुफीद स्थिति माना जाएगा। अभी तक तो आम आदमी पार्टी के अंदर में अरविंद केजरीवाल ही सबकुछ रहे हैं, यह बड़ी बात है कि इतने सालों के बाद भी अभी तक आप में अलग-अलग पावर सेंटर नहीं बने, सभी केजरीवाल की अगुवाई में ही काम कर रहे थे। लेकिन जब उनका सबसे बड़ा नेता ही जेल जा चुका है, ऐसे में सिसोदिया के लिए वो स्पेस खाली पड़ी है।
जमानत पर सिसोदिया, सुनीता केजरीवाल का भविष्य क्या?
जिस प्रकार के रुझान चल रहे हैं, सिसोदिया को आने वाले दिनों में और कई बड़ी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं, इसमें सीएम कुर्सी तक शामिल है अगर केजरीवाल लंबे समय तक बाहर नहीं आए। वैसे एक सवाल तो यह भी आता है कि सिसोदिया के बाहर आने के बाद सुनीता केजरीवाल का क्या होगा? असल में अभी तक तो सुनीता ही आम आदमी पार्टी का चेहरा बन चुकी थीं, केजरीवाल की अनुपस्थिति में हर बड़ी बैठक से लेकर रैली को उन्होंने ही संभालने का काम किया।
केजरीवाल हाथ में कैसे रख पाएंगे सत्ता?
ऐसी भी खबरें चलीं कि सुनीता को बाद में सीएम तक बनाया जा सकता है। ऐसा होने से केजरीवाल के हाथ में ही पार्टी की कमान रहती और आसानी से वे वापस अपनी सत्ता वापसी कर सकते थे। लेकिन अगर मनीष सिसोदिया और ज्यादा ताकतवर बन जाते हैं, उस स्थिति में सुनीता को पीछे होना पड़ेगा और उनका पीछे होना केजरीवाल की सत्ता पर भी सीधा असर रखेगा। अब सारी स्थिति देखकर लगता जरूर है कि मनीष सिसोदिया के लिए आगे सबकुछ ठीक रहने वाला है, लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा।
मनीष सिसोदिया के सामने चुनौतियां अनेक
पिछले 17 महीनों में दिल्ली की राजनीति पूरी तरह बदल चुकी है। इन 17 महीनों में ही कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ा गया है, इन्हीं 17 महीनों में ओल्ड राजेंद्र नगर में तीन छात्रों की मौत हुई है, इन्हीं 17 महीनों में आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं। ऐसे में पार्टी की छवि को फिर पटरी पर लाना उनके लिए आसान नहीं रहने वाला। इसके ऊपर संगठन और सरकार के बीच में तालमेल बैठाना भी सिसोदिया के लिए बड़ी चुनौती रहने वाला है। उनका सारा अनुभव सरकार चलाने में रहा है, ऐसे में हर गुट के नेता को साथ लाना उनके लिए उतना सरल नहीं।