एक अध्ययन के अनुसार पृथ्वी पर मानव निर्मित वस्तुओं का वजन धरती पर मौजूद सभी जीवित प्राणियों के वजन के बराबर हो चुका है। 2020 में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकशित एक गणनात्मक शोध के मुताबिक मनुष्य द्वारा बनाई गई वस्तुओं का कुल वजन 1.1 लाख करोड़ टन तक पहुंच गया, जो ग्रह पर मौजूद सभी जीवित प्राणियों के वजन को पार कर गया है। यानी पृथ्वी पर मौजूद ब्रह्मांड में उसकी खास पहचान, जीवन का दायरा ही सिकुड़ता गया है। यानी ‘जैवभार’ तुलनात्मक रूप से कम हो रहा है। कंक्रीट और कोलतार की सड़कें, फुटपाथ, कांच, धातु और कंक्रीट की गगनचुंबी इमारतों से लेकर प्लास्टिक की बोतलों, कपड़ों, कंप्यूटरों तक लोगों द्वारा बनाई गई हर चीज का भार अब पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवित प्राणियों के द्रव्यमान के बराबर हो चुका है। मानव निर्मित वस्तुओं का वजन तेजी से बढ़ रहा है, जो हर दो दशक में दो गुना हो जा रहा है, वहीं वैश्विक ‘जैवभार’ का वजन लगभग स्थिर बना हुआ है, जिसमें सबसे ज्यादा योगदान पेड़-पौधों का है। मानव निर्माण के संपूर्ण दायरे को एक साथ ‘टेक्नोस्फीयर’ के नाम से जाना जाने लगा है।

पृथ्वी की उम्र के लिहाज से हाल तक इस धरती पर मनुष्य और अन्य प्राणी विभिन्न रूपों में एक अदद जीव जैसे ही रहे, जो पूरी तरह यहां के विशाल पारिस्थितिकी तंत्र के अनाम हिस्से जैसा रहते आए हैं। पर शरीर में आए कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव ने मानव विकास को एक गति दी और देखते-देखते बहुत कम समय में मनुष्य धरती पर एक मुख्य जीव के रूप में उभरा, आग और खेती के विकास और पालतू जानवरों की मदद से अपने लिए एक नई दुनिया गढ़नी शुरू की और ज्ञान-विज्ञान के क्रांतिकारी विस्तार से न सिर्फ जीवित प्राणियों, बल्कि पूरी धरती का भाग्य विधाता बन बैठा। और ये सारे परिवर्तन अरबों वर्ष पुरानी पृथ्वी के लिहाज से एक लाख वर्षों में ही हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि पारिस्थितिकी तंत्र में एक जीव के रूप में मानव पर ठीक से नियंत्रण प्रणाली विकसित नहीं हो पाई, जैसे प्रकृति में अन्य प्राणियों के साथ हुआ। यहां तक कि आहार शृंखला के सिरमौर जीव शेर, बाघ, वेल, गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा नियंत्रित होते हैं, इसके उलट मनुष्य एक मनमौजी और उच्छृंखल जीव के रूप में पनपा, जो अपनी सुविधा के लिहाज से प्रकृति पर हावी होता चला गया।

पृथ्वी पर बड़े बदलाव की शुरुआत कृषि की शुरुआत से हो चुकी थी, पर औद्योगिक क्रांति के बाद निर्माण कार्य और धरती के स्वरूप में व्यापक स्तर पर परिवर्तन शुरू हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप मानव निर्माण अब समग्र जीवन तंत्र से भारी हो चला है। मानव निर्मित वस्तुओं से तात्पर्य उन सारी वस्तुओं से है, जिसका निर्माण पूर्णत: या आंशिक रूप से मनुष्य द्वारा हुआ है। इसमें कुछ पूर्णतया नई वस्तुएं शामिल हैं, जिनका अविष्कार मनुष्य ने किया है, जो पहले धरती पर अस्तित्व में ही नहीं थीं, जैसे प्लास्टिक और हजारों किस्म के नए रसायन, जिनमें कीटनाशक और दवाइयां भी शामिल हैं।

बाकी वस्तुओं का निर्माण पहले से मौजूद चीजों के स्वरूप में बदलाव कर हुआ है, जिसमें कंक्रीट, धातु, बजरी, ईंट, डामर यानी कोलतार आदि शामिल हैं। मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या और उपभोग करने की क्षमता में बेतहाशा वृद्धि व्यापक स्तर पर बढ़ रहे मानव निर्माण के मूल में है। वजन के हिसाब से मानव निर्मित सामान में सबसे पहले कंक्रीट है, जो आधुनिक विकास के मूल में है, उसके बाद क्रमश: धातु, मुख्य रूप से स्टील, बजरी, र्इंट, डामर का स्थान आता है, यहां तक प्लास्टिक का योगदान कम नहीं है। प्लास्टिक का इस्तेमाल इस कदर व्यापक हो चला है कि अब तक लगभग आठ अरब टन प्लास्टिक का निर्माण हो चुका है। मतलब, अभी मौजूद हर व्यक्ति के निमित्त लगभग एक टन तक प्लास्टिक इस धरती पर बन चुका है। हालांकि प्लास्टिक का कुल वजन मानव निर्माण का मात्र एक फीसद है, फिर भी एक अनुमान के मुताबित धरती पर मौजूद कुल प्लास्टिक का वजन सारे जानवरों के वजन का दो गुना हो चुका है।

मौजूदा तुलनात्मक अध्ययन के लिए मानव निर्मित वस्तुओं के साथ जीवन के सभी रूपों के वजन का अनुमान परोक्ष रूप से किया गया, जिसमें पेड़-पौधे, जीव-जंतु, फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस शामिल हैं। आधुनिक मानव विकास के कालक्रम को तीन प्रमुख कालखंडों में बांट कर समझा जा सकता है। पहला, जब कृषि का विकास हुआ और मानव बसावट बसी, सभ्यता विकसित हुई। दूसरा, जब मशीनों के इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा और तीसरा, सूचना और ज्ञान क्रांति हुई और मानव एक अदद संसाधनों के बड़े पैमाने पर उपभोग करने की इकाई बन कर रह गया। इसी दूसरे और तीसरे काल खंड में मानव निर्माण ने ज्यामितीय गति पकड़ी। पिछली सदी की शुरुआत तक मानव निर्मित वस्तुओं का अनुमानित वजन लगभग 35 अरब टन था, जो उस समय के सारे प्राणियों के वजन का मात्र तीन फीसद था, मगर नेशनल जियोग्राफी की एक रपट के मुताबिक केवल एक साल में हम 30 अरब टन निर्माण कर ले रहे हैं। मात्र सौ-सवा सौ सालों में मानव निर्माण पृथ्वी पर मौजूद कुल ‘जैवभार’ के बराबर जा पंहुचा। यह एक भयावह स्थिति है और अगर हम इसी तरह उपभोग करते रहे तो 2040 आते-आते पृथ्वी पर जीवन का दायरा सिकुड़ कर मानव निर्माण का एक-तिहाई ही रह जाएगा।

मानव के आधुनिक विकास का असर न केवल मानव निर्माण में झलकता है, बल्कि धरती के पारिस्थतिकी तंत्र और जंगली जानवरों की विविधता पर भी बड़े पैमाने पर पड़ा है। 2022 की ‘लिविंग प्लानेट’ रपट के अनुसार पिछले पचास वर्षों में पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जीवन के विविध रूपों में 69 फीसद तक गिरावट आई है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया क्षेत्र में यह गिरावट बहुत बड़े पैमाने पर हुई है। लैटिन अमेरिका में वन्य जीवों में यह कमी 94 फीसद तक हुई है। पिछले सौ-सवा सौ सालों में ही जंगली जानवरों (स्तनपायी) का वजन मनुष्य और पालतू जानवरों के मुकाबले 17 फीसद से घट कर मात्र 4 फीसद तक रह गया है। यही प्रवृत्ति समुद्र की जैव विविधता में भी दिख रही है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य का वजन 39 करोड़ मीट्रिक टन है, वहीं पालतू स्तनधारी जानवरों का वजन 63 करोड़ मीट्रिक टन है, जबकि वन्य प्राणी (स्तनधारी) धरती पर और समुद्री दोनों मिलाकर 6 करोड़ मीट्रिक टन ही बचे हैं।

इन आंकड़ों से जाहिर है कि पृथ्वी पर प्रकृति का दायरा तेजी से सिकुड़ रहा है, जिसमें पृथ्वी का प्राकृतिक स्वरूप, जंगल, नदी, पहाड़, झील, पेड़-पौधे, वन्य-जीव शामिल हैं। ये सारे भौतिक परिवर्तन इतनी तेजी से हो रहे हैं, कि युगों में होने वाला बदलाव वर्षों में हो जा रहा है। बड़े पैमाने पर और तेजी से हो रहे ये परिवर्तन हमें जलवायु परिवर्तन, वैश्विक प्रदूषण और जैव विविधता ह्रास के ग्रहीय त्रिदुश्चक्र में धकेल रहे हैं।

पिछली सदी की शुरुआत तक मानव निर्मित वस्तुओं का अनुमानित वजन लगभग 35 अरब टन था, जो उस समय के सारे प्राणियों के वजन का मात्र तीन फीसद था, मगर नेशनल जियोग्राफी की एक रपट के मुताबिक केवल एक साल में हम 30 अरब टन निर्माण कर ले रहे हैं। मात्र सौ-सवा सौ सालों में मानव निर्माण पृथ्वी पर मौजूद कुल ‘जैवभार’ के बराबर जा पंहुचा। यह एक भयावह स्थिति है और अगर हम इसी तरह उपभोग करते रहे तो 2040 आते-आते पृथ्वी पर जीवन का दायरा सिकुड़ कर मानव निर्माण का एक-तिहाई ही रह जाएगा।