पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने तेजी से अपने पैर मजबूत किए हैं। जो पार्टी कभी इस राज्य में अपना खाता भी नहीं खोल पाती थी, उसने ना सिर्फ जमीन पर अपना संगठन मजबूत किया, बल्कि लेफ्ट को उखाड़ फिर मुख्य विपक्षी पार्टी का तमगा भी हासिल कर लिया। बीजेपी के उदय से बंगाल में सबसे ज्यादा सिरदर्दी टीएमसी की बढ़ी। इसका असर पिछले लोकसभा चुनाव में भी दिख गया जब पहली बार 40 में से 18 सीटें जीतकर बीजेपी ने सभी को हैरान कर दिया।
लेकिन अब ये बात पांच साल पुरानी होने जा रही है। जमीन पर समीकरण फिर बदल गए हैं, एक बार फिर बीजेपी के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा है, बंगाल जैसे राज्य में खुद को एक विकल्प के तौर दिखाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। बीजेपी ने जो मजबूती खुद को दी थी, पिछले पांच सालों मे वो काफी हद तक खो दी गई है। इसके दो सबसे बड़े प्रमुख कारण दिखाते देते हैं- एक बीजेपी छोड़कर लगातार जाते नेता, दूसरा ये कि ममता बनर्जी पर पार्टी का सीधा हमला करना यानी कि पर्सनल अटैक।
अब 2019 के बाद से कई बड़े चेहरों ने बीजेपी का दामन छोड़ फिर टीएमसी का रुख किया है। मुकुल रॉय तो इसमें सबसे बड़ा उदाहरण रहे जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई। लेकिन बाद में वे फिर टीएमसी के साथ चले गए। इसी तरह सोमेन रॉय, कृष्णा कल्याणी, बिस्वजीत दास, तनमय घोष ने भी कुछ समय बीजेपी में रहने के बाद पार्टी बदल ली। मतलब साफ है कि बीजेपी ने तेजी से और जोरदार अंदाज में अपनी दस्तक दी, लेकिन बाद में वो लय टूट गई और नेताओं का जाना लगा रहा।
पंचायत चुनाव के नतीजे ये भी साफ बताते हैं कि महिलाओं के बीच में ममता बनर्जी की जैसी पकड़ है, उसका कोई मुकाबला नहीं। ग्रामीण इलाकों में ममता की कई योजनाओं का ऐसा कमाल है कि एकतरफा वोट टीएमसी को पड़ जाता है। जहां भी महिलाएं ज्यादा वोट करती हैं, वहां पर टीएमसी उम्मीदवार बड़े अंतर से जीत दर्ज कर लेते हैं। यानी कि देश में अगर पीएम मोदी के लिए महिला वोटर ज्यादा वोट करती हैं तो बंगाल में वो स्थिति ममता बनर्जी के साथ है। बीजेपी के सामने चुनौती ये है कि वो अभी तक इसे पकड़ नहीं पाई है।
बीजेपी के कमजोर होने का एक दूसरा कारण ये भी है कि राज्य में पार्टी अब मुद्दों से ज्यादा ममता पर हमलावर है। निजी हमले कर आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिल रहा है, असल मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं। ममता बनर्जी जमीन से निकली हुईं नेता हैं, उनकी तरफ से आंदोलन कर लोगों के हक के लिए लड़ा गया है। ऐसे में एक सेंटिमेंट हमेशा उनके पक्ष में रहता है। अब बीजेपी निजी हमले कर उसी सेंटिमेंट को लगातार चोट पहुंचा रही है। जानकार मानते हैं उस वजह से भी टीएमसी को फायदा हो रहा है।
अब इस फायदे को बल देता है हाल ही में किया गया एक चुनावी सर्वे। ये सर्वे सीएनएक्स ने किया है जिसमें साफ बताया गया है कि लोकसभा चुनाव में बंगाल इस बार बीजेपी पर पहले की तरह मेहरबान नहीं रहने वाला है। इस बार उसकी झोली में सीटें काफी कम हो जाएंगी। सर्वे कहता है कि आगामी चुनाव में बीजेपी को 12 सीटें मिल सकती हैं, वहीं इंडिया गठबंध 30 सीटें जीतने में कामयाब हो सकता है। यानी कि बीजेपी को 6 सीटों का नुकसान, वहीं टीएमसी को 8 सीटों का सीधा फायदा।