महज पांच लाख की आबादी वाला देश मालदीव हिंद महासागर में अपनी भू-राजनीतिक स्थितियों के कारण एशियाई राजनीति के केंद्र में आ गया है। भारत के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता के कारण सदियों से मालदीव का बेहतर संबंध रहा है। हाल में चीनी दखल और वहां के विपक्ष पर बढ़ते प्रभाव के कारण मालदीव भारत के लिए बेहद नाजुक मसला बन गया है। वहां राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह भारत के नजदीकी दोस्त हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर की ताजा मालदीव यात्रा से पहले वहां की विपक्षी पार्टियों ने अपने भारत विरोधी अभियान के तहत बड़ी रैली का आयोजन किया था, जिस पर सोलिह की सरकार ने संसद की आपात बैठक बुलाकर रोक लगा दी। वहां की संसद ने विपक्ष की रैलियों पर रोक लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया। दरअसल, भारतीय विदेश मंत्री का दौरा तय होते ही पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की प्रोग्रेसिव पार्टी और उसके गठबंधन दल पीपुल्स नेशनल कांग्रेस ने विरोध का एलान कर दिया था।
दोनों दलों की संभावित हरकतों के मद्देनजर मालदीव की सरकार ने 23 मार्च को संसद में आपातकालीन प्रस्ताव पेश किया जिसमें विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताया गया और प्रस्ताव पास हो गया। प्रस्ताव में साफ कहा गया कि विपक्ष की रैली से मालदीव और भारत के रिश्तों में खटास आएगी, इस कारण मालदीव के राष्ट्रीय सुरक्षा बलों को रैली और विरोध-प्रदर्शन के अन्य आयोजनों को रोकने का आदेश दिया गया।
इस देश में वर्ष 2005 में लोकतंत्र आया था। हिंद महासागर के रणनीतिक क्षेत्र में आने के कारण मालदीव एक-डेढ़ दशक से काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है, जब से चीन ने समुद्री क्षेत्रों में अतिक्रमण करना शुरू किया। यही कारण है कि पिछले 10 साल से भारत और चीन के बीच मालदीव को अपने पाले में रखने की होड़ चल रही है।
दरअसल, मालदीव में चुनाव के दौरान विदेश नीति एक प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह है कि इस छोटे से देश का आर्थिक विकास, इसकी विदेश नीति पर बहुत हद तक निर्भर है। विस्तारवाद में जुटे चीन की नजर मालदीव पर है। वह पूर्व राष्ट्रपति यामीन को भारत के खिलाफ भड़काकर रखता है। हालांकि, मौजूदा सत्ताधारी दल एमडीपी भारत के समर्थन में है।
2018 के पिछले चुनाव में एमडीपी मालदीव की सत्ता में लौटा था। तब से भारत द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने की दिशा में लगातार कदम उठा रहा है। यामीन को भ्रष्टाचार के आरोप गिरफ्तार किया गया था, लेकिन मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में उन्हें रिहा करने का फैसला दिया। उनके जेल से निकलने के बाद से वहां भारत विरोधी गतिविधियों को हवा मिल रही है। 2024 में मालदीव में आम चुनाव होने वाले हैं, इसलिए भी विपक्ष भारत के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा है।
अतीत में जाएं तो लोकतंत्र की स्थापना के बाद मोहम्मद नशीद देश के राष्ट्रपति बने थे और भारत के साथ संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उसके बाद चीन का प्रभाव इस छोटे से देश पर बढ़ने लगा। नशीद के बाद यामीन सत्ता में आए और वे पूरी तरह से चीन के पक्षधर हो गए। नशीद सरकार में भारत की ओर से जितने भी वहां काम हो रहे थे, सबको यामीन ने रद्द कर दिया था। 2018 में यामीन की सरकार चली गई और इब्राहिम सोलिह सत्ता में आए। सोलिह को पूर्व राष्ट्रपति और भारत के दोस्त मोहम्मद नशीद की पार्टी ने भी समर्थन दिया।
टापू पर सैन्य ठिकाना
यामीन का आरोप है कि मालदीव के उथुरु थिलाफल्हू प्रवाल टापू पर भारत सैन्य ठिकाना बना रहा है, जबकि सोलिह की सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस टापू में भारतीय सेना का एक भी जवान नहीं होगा। यह टापू मालदीव के तटरक्षक बल के लिए बनाया जा रहा है, जिसमें भारत केवल रखरखाव और निगरानी के लिए तीन डोर्निअर विमानों में चालक दल के सदस्यों की मदद करेगा। इन विमानों से तट की रखवाली की जाएगी और बचाव तथा एअर एंबुलेंस का संचालन किया जाएगा।
फरवरी 2021 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की यात्रा के समय दोनों देशों के बीच इस टापू को बंदरगाह के रूप में विकसित करने को लेकर समझौता हुआ था। तब भारत ने मालदीव को पांच करोड़ डालर का क्रेडिट लाइन (वह धन जिसका इस्तेमाल भारत में सामान खरीदने में किया जाएगा) भी दिया था। दूसरी ओर, यामीन की सरकार के दौरान चीन ने खूब पैसा निवेश किया और मालदीव को कर्ज दिया। इस कारण यामीन पूरी तरह से भारत के खिलाफ हैं। हालांकि मालदीव की अधिकांश जनता भारत के साथ अपने को ज्यादा निकट मानती है।