कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत परीक्षण (Floor Test) जल्द करानी की मांग की है। तीनों दलों ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के उस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है, जिसके तहत उन्होंने फडणवीस सरकार को 30 नवंबर तक फ्लोर टेस्ट की डेडलाइन दी है। हालांकि, यह जंग अब दो अहम पहलुओं पर निर्भर करने जा रही है, जिसका ख्याल अदालत में बहस करने वाले वकील भी रखेंगे, यानी प्रोटेम स्पीकर कौन बनेगा और किसे एनसीपी के विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता मिलेगी।
गौरतलब है कि बहुमत परीक्षण के दौरान राज्यपाल को विधानसभा का संक्षिप्त सत्र बुलाना पड़ता है और प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति करनी होती है। प्रोटेम स्पीकर की भूमिका नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने और मुख्यमंत्री द्वारा बहुमत साबित कराने में होती है। इसके बाद, सत्तारूढ़ दल विधानसभा के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।
परंपरागत रूप से देखा जाए तो वरिष्ठतम विधायक को प्रोटेम स्पीकर चुना जाता है। हालांकि, यह राज्यपाल के लिए कोई जरूरी शर्त नहीं है। फिलहाल, कांग्रेस के बालासाहेब थोराट सबसे वरिष्ठतम विधायक हैं, लेकिन माना जा रहा है कि चूंकि राज्यपाल इसके लिए बाध्यकारी नहीं है, लिहाजा कांग्रेस से किसी अन्य नाम को आगे बढ़ाया जा सकता है।
गौरतलब है कि 2018 में कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा नेता केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया, जबकि उस दौरान कांग्रेस आरवी देशपांडे सबसे वरिष्ठ विधायक थे। राज्यपाल ने कहा था कि उन्होंने राज्य विधानसभा के सचिव द्वारा सौंपे गए नामों की एक सूची से बोपैया को चुना। कांग्रेस की दलीलों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने बोपैया की नियुक्ति के संबंध में जरूरी मेरिट्स पर गौर नहीं किया। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा के सचिव को विश्वास मत का विभिन्न लोकल चैनलों द्वारा लाइव प्रसारण दिखाए जाने की अनुमति का निर्देश दिया।
वहीं, 2016 के दौरान उत्तराखंड में बहुमत परीक्षण के दौरान कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बहुमत साबित किया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को एक पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था।
महाराष्ट्र के वर्तमान सियासी उठापटक के बीच एनसीपी के विधायकों ने शनिवार को अजित पवार को विधायक दल के नेता के रूप में बर्खास्त कर दिया। पवार की जगह जयंत पाटिल को विधायक दल का नेता नियुक्त कर दिया गया। गौर करने वाली बात ये है कि चूंकि पाटिल की नियुक्ति अजीत पवार द्वारा बीजेपी को समर्थन देने के बाद हुई है। ऐसे में यदि विधानसभा स्पीकर उन्हें व्हीप जारी करने को बोलते हैं और अगर व्हीप की अवहेलना होती है तो स्पीकर विधायकों को निलंबित कर सकते हैं। एनसीपी के वकीलों ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि अजित पवार को पद से हटाने के दौरान 41 विधायक मौजूद थे।