महाराष्ट्र में भले ही भाजपा-शिवसेना गठबंधन बहुमत के आंकड़े को हासिल कर लिया हो लेकिन दोनों दलों के बीच सरकार बनाने को लेकर सहमति बनती नजर नहीं आ रही है। चुनाव परिणाम आने के 8 दिन बाद भी महाराष्ट्र की सियासत अधर में लटकी हुई है।

शिवसेना अपने नेताओं के बयानों व पार्टी के मुखपत्र सामना के जरिये लगातार भाजपा पर दबाव बना रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पार्टी भाजपा के साथ ही एनसीपी और कांग्रेस के संपर्क में हैं। ऐसे में भाजपा के पास शिवसेना को छोड़ कर सरकार बनाने का क्या विकल्प बचता है।

इस बीच कांग्रेस नेता व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का कहना है कि यदि शिवसेना की तरफ से उनके पास राज्य में सरकार बनाने का प्रस्ताव आता है तो वह इसे पार्टी हाईकमान के पास भेज सकते हैं। पार्टी के एक अन्य बड़े नेता व राज्य प्रदेशाध्यक्ष बालासाहेब थोराट ने भी पृथ्वीराज चव्हाण की बात का समर्थन किया है।

हालांकि, कांग्रेस में शिवसेना के समर्थन को लेकर अलग-अलग राय है। पार्टी के बड़े नेता सुशील कुमार शिंदे का कहना है कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों अलग-अलग विचारधारा की पार्टियां हैं। ऐसे में शिवसेना का समर्थन का सवाल ही नहीं उठता है।

भाजपा के पास सबसे पहला विकल्प राज्य में सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने के नाते सरकार बनाने का दावा पेश करने का है। दूसरे विकल्प के रूप में पार्टी बहुमत की संख्या जुटाकर सदन में शक्ति परीक्षण का सामना करे। इसके बाद पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में राज्य में 13 निर्दलीय विधायकों व 13 से अधिक सीट जीतने वाले छोटे स्थानीय दलों के समर्थन के जरिये सरकार बनाने का प्रयास कर सकती है। ऐसे में भाजपा को अल्पमत की सरकार चलानी पड़ सकती है।

भाजपा के पास चौथा विकल्प शिवसेना का बागी विधायकों के समर्थन का भी है। भाजपा पहले ही कह चुकी है कि शिवसेना के 45 विधायक उसके संपर्क में हैं। मालूम हो कि महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली हैं। वहीं, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटें जीती हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, समाजवादी पार्टी और प्रहार जनशक्ति पार्टी को 2-2 सीटें और बहुजन विकास अघाड़ी के खाते में 3 सीटें आई हैं। राज्य में छह क्षेत्रीय दल ऐसे हैं जिनके खाते में 1-1 सीटें आई हैं।