महाराष्ट्र की सियासत में उस समय सबसे बड़ा भूचाल आया था जब अजित ने चाचा शरद पवार से अलग होकर एनडीए से हाथ मिलाया और शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम की शपथ भी ले ली। शुरुआती दिनों में अजित इस तरह से आक्रमक दिखाई दे रहे थे कि मानो कि उनकी तरफ से तुरंत सदन में बहुमत साबित कर दिया जाएगा और वे एनसीपी पर अपना कब्जा जमा लेंगे। लेकिन अब उस घटना को भी समय बीत गया है, हर बीतते दिन के साथ चाचा-भतीजे में चल रही तल्खी सिर्फ कम होती दिखी है। इसके ऊपर दोनों गुटों के नेता जिस तरह से एक दूसरे से मिल रहे हैं, कार्यकर्ता कन्फ्यूज हैं कि उन्हें किस तरफ जाना है।
पहले आक्रमक, अब नरम, क्या मायने?
अब ये महाराष्ट्र की टिपिकल पॉलिटिक्स है जहां पर समीकरण, समय और स्थिति देखकर बयान दिए जा रहे हैं। जिस समय बगावत की, तब मामला गर्म था, ऐसे में तेज-तेज सियासी हथोड़े मारे गए। अजित की तरफ से तो यहां तक कह दिया गया कि शरद पवार को अब रिटायर हो जाना चाहिए। उनकी तरफ से एनसीपी अध्यक्ष के पद से भी उन्हें हटा दिया गया था।
अब जिस समय अजित आक्रमक दिख रहे थे, शरद पवार ने भी वैसे ही तेवर दिखाए। सबसे पहले उन्होंने एक बड़ी रैली को संबोधित किया, अपनी सियासी ताकत का अहसास सभी को करवाया। उसके बाद प्लान बनाया गया कि पूरे राज्य में जनसंपर्क अभियान चलाया जाएगा। ये अलग बात है कि वो अभियान अभी तक शुरू नहीं हो पाया है और उस बीच अजित और शरद पवार के बीच दो बार मुलाकात हो चुकी है। एक मुलाकात को शिष्टाचार बताया गया तो दूसरी तो एक तय रणनीति के तहत मनाने के लिए की गई।
कार्यकर्ता कन्फ्यूज, दोनों गुटों में बातचीत जारी
इस बीच महाराष्ट्र विधानसभा की एक तस्वीर ने भी सभी का ध्यान खींचा। उस तस्वीर में एनसीपी के दूसरे विधायक तो नदारद दिखे, लेकिन जयंत पाटिल और अजित गुट के नेता सुनील तत्कारे की बातचीत और फिर गले मिलना ने काफी कुछ बता दिया। ये बता दिया कि नाराजगी है, लेकिन सुलह का रास्ता खुला हुआ है। अब गुटों के बीच सुलह होती दिख रही है, लेकिन क्या चाचा-भतीजे भी साथ आ रहे हैं?
अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है, लेकिन जिस तरह से एक दूसरे पर हमले करना बंद कर दिया गया है, ये बताने के लिए काफी है कि रिश्तों में सुधार की पूरी गुंजाइश है। अगर ऐसा होता है तो उस स्थिति में एनसीपी तो फिर एकजुट हो सकती है, लेकिन फिर सवाल ये रहेगा कि जाना किसके साथ है- बीजेपी या फिर महा विकास अघाड़ी?