राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के भीतर पावर गेम को लेकर चर्चा अभी भी जारी है, यह तब और ज़्यादा बढ़ गयी जब छगन भुजबल का एक भाषण सामने आया।  जिसमें उन्होने कहा है कि राज्य में पार्टी का नया प्रमुख एक ओबीसी होना चाहिए। उनका यह बयान अजित पवार के उस बयान से जोड़ कर देखा जा सकता है जिसमें छोटे पवार ने एनसीपी में पद मिलने की उम्मीद जताई है। 

 छगन भुजबल प्रदेश के एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं। चर्चा यह है कि वह अपना नाम आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं, इस नई चर्चा को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि शरद पवार और अजित पवार के बीच की रस्साकशी में वह शरद पवार की तरफ ही दिखाई दिए हैं। 

छगन भुजबल की बात में कितना दम है? 

एक तरह से देखा जाए तो छगन भुजबल के इस बयान में काफी दम है। राकांपा अपने गठन के 24 साल बाद भी मराठा समर्थक पार्टी होने की छवि से बच नहीं पाई है। महाराष्ट्र की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 40% है, जो मराठों की 33% से भी ज़्यादा है। हर पार्टी ओबीसी वोट को लुभा रही है, कांग्रेस के राज्य प्रमुख (नाना पटोले) और भाजपा के (चंद्रशेखर बावनकुले) दोनों ओबीसी हैं।  छगन भुजबल ने अपनी राजनीति में बिताए अपने सालों में ओबीसी के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है और अपनी पहचान बनाई है। 

बेबाकी से बात करने के लिए जाने जाने वाले भुजबल ने एनसीपी को “सोशल इंजीनियरिंग” को ध्यान में रखने के बारे में आगाह किया। उन्होंने कहा, ”यदि आपके पास नेता प्रतिपक्ष के रूप में मराठा है, तो राज्य पार्टी अध्यक्ष ओबीसी से होना चाहिए।” भुजबल ने कहा: “मैं प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी काम करना चाहूंगा।

अजित पवार के बयान में क्या खास था? 

 अजित पवार ने इस सप्ताह की शुरुआत में शरद पवार की मौजूदगी में मुंबई में आयोजित पार्टी सम्मेलन में एक नया मुद्दा उठाया। उन्होने कहा, “मैं विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका के लिए कभी उत्सुक नहीं था। पार्टी के विधायकों के हस्ताक्षर अभियान के रहते मैंने इसे स्वीकार किया… मैं पद छोड़ने को तैयार हूं… मुझे संगठन के लिए काम करने में ज़्यादा खुशी होगी।

इसके बाद चर्चा शुरू हुई की अजित पवार क्या चाहते हैं, षड अजित पवार यह संकेत दे रहे थे कि महाराष्ट्र में पार्टी को चलाने के लिए उन पर छोड़ दिया जाना चाहिए।