Maha Kumbh Mela budget: प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से शुरू होने वाला महाकुंभ मेला, केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपराओं का जीता-जागता प्रतीक है। इस मेले में दुनियाभर से लगभग 40 करोड़ श्रद्धालु संगम पर पवित्र स्नान के लिए आएंगे, जहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों का संगम होता है। यह 56 दिनों तक चलने वाला आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक और प्रबंधन के लिहाज से भी एक अद्वितीय उदाहरण है।

महाकुंभ 2025 का बजट और योजना

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए 5,435.68 करोड़ रुपए का विशाल बजट निर्धारित किया है। यह 2019 में हुए कुंभ मेले के 4,200 करोड़ रुपए के बजट से कहीं अधिक है। कुल मिलाकर, आयोजन के लिए करीब 7,500 करोड़ रुपए का खर्च सामने आ रहा है। इस धनराशि में केंद्र सरकार का योगदान भी शामिल है, जिसने इस बार आयोजन के लिए 2,100 करोड़ रुपए का आवंटन किया है।

महाकुंभ के आयोजन के तहत 421 परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिनमें से 3,461.99 करोड़ रुपए की योजनाओं को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इनमें मेले के बुनियादी ढांचे का विकास, यातायात व्यवस्था, सुरक्षा और स्वच्छता से लेकर श्रद्धालुओं की सुविधाओं के प्रबंधन तक हर पहलू को शामिल किया गया है।

इतिहास और खर्च का तुलनात्मक विश्लेषण

महाकुंभ के आयोजन का बजट हमेशा से ही समय के साथ बढ़ता गया है। साल 1882 में महाकुंभ पर केवल 20,288 रुपए खर्च किए गए थे, जो आज के मूल्य के हिसाब से करीब 3.65 करोड़ रुपए होते हैं। उस समय महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर करीब 8 लाख लोगों ने स्नान किया था, जबकि भारत की कुल आबादी 22.5 करोड़ थी।

1894 के कुंभ में भारत की जनसंख्या बढ़कर 23 करोड़ हो गई थी, और लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। इस आयोजन पर 69,427 रुपए (आज के हिसाब से लगभग 10.5 करोड़ रुपए) खर्च हुए थे। 1906 में करीब 25 लाख लोग कुंभ में शामिल हुए, और उस पर 90,000 रुपए (आज के हिसाब से लगभग 13.5 करोड़ रुपए) खर्च किए गए।

2025 की तैयारियों का भव्य स्वरूप

1918 के महाकुंभ में संगम में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई थी। इस आयोजन का बजट 1.37 लाख रुपए (आज के हिसाब से लगभग 16.44 करोड़ रुपए) था। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि समय के साथ न केवल श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हुई है, बल्कि आयोजन का बजट और व्यवस्थाओं का स्तर भी बढ़ता गया है।

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2025 के महाकुंभ की तैयारियां अपने आप में अभूतपूर्व हैं। सरकार और प्रशासन इस आयोजन को इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे व्यवस्थित महाकुंभ बनाने में जुटे हैं। मेले का क्षेत्र पहले से कई गुना बड़ा हो गया है। श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सफाई, सुरक्षित स्नान घाट, अस्थायी आवास, चिकित्सा सुविधाएं, और परिवहन व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं।

मेले में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए संगम के करीब आधुनिक सुविधाओं से लैस टेंट सिटी बनाई गई है। बिजली, पानी, और स्वच्छता के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग हो रहा है। साथ ही ड्रोन और सीसीटीवी के जरिए मेले की निगरानी की जा रही है, ताकि सुरक्षा चाक-चौबंद रहे।

आयोजन का आर्थिक महत्व

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी बड़ा बढ़ावा देता है। इस आयोजन से पर्यटन, परिवहन, खाद्य और पेय व्यवसाय, होटल और अस्थायी आवास, और स्थानीय हस्तशिल्प उद्योगों को जबरदस्त लाभ होता है।

सरकार का अनुमान है कि महाकुंभ 2025 के दौरान करोड़ों लोगों की आवाजाही से स्थानीय व्यापार और रोजगार में भारी वृद्धि होगी। छोटे दुकानदार, टैक्सी और रिक्शा चालक, गाइड, और स्थानीय कारीगरों के लिए यह मेला आय का एक बड़ा स्रोत है। इतने बड़े आयोजन के साथ चुनौतियां भी आती हैं। इतने बड़े स्तर पर भीड़ का प्रबंधन, सफाई और स्वच्छता बनाए रखना, बिजली और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना, और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकताएं हैं।

2025 के आयोजन में विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि किसी भी श्रद्धालु को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसके लिए सरकार और प्रशासन ने सैकड़ों टीमों का गठन किया है। साथ ही कुंभ के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं को भी अत्यधिक सुदृढ़ किया गया है, ताकि आपातकालीन स्थितियों में तुरंत सहायता मिल सके।

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महाकुंभ न केवल आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं को भी दर्शाता है। श्रद्धालु संगम पर स्नान करने के लिए लंबी यात्राएं करते हैं, साधु-संतों का जमावड़ा लगता है, और योग, ध्यान, और प्रवचन जैसे कार्यक्रमों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

महाकुंभ के आयोजन के दौरान देश-विदेश के कई प्रमुख संत, राजनेता, और हस्तियां संगम में डुबकी लगाती हैं। यह आयोजन केवल धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी इसका बड़ा महत्व है। महाकुंभ 2025 का आयोजन केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का संगम है। इसके आयोजन पर होने वाला खर्च, व्यवस्थाओं का विस्तार, और इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियां इसे एक असाधारण आयोजन बनाती हैं। इस बार का महाकुंभ न केवल श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि दुनिया के लिए यह संदेश देगा कि किस तरह भारत अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को जीवंत रखता है और उन्हें आधुनिकता के साथ जोड़कर एक नए स्वरूप में प्रस्तुत करता है।