मद्रास हाई कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा जारी 2011 के फोन-टैपिंग आदेश को रद्द कर दिया। इसमें कहा गया कि निगरानी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करती है। अपने फैसले में जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि आज के कानून के अनुसार अपराधों का पता लगाने के उद्देश्य से गुप्त ऑपरेशन या गुप्त स्थितियों के उद्देश्य से टेलीफोन पर बातचीत या संदेशों की टैपिंग की अनुमति नहीं है।
गृह मंत्रालय के आदेश को दी गई चुनौती
94 पेज के आदेश में अदालत ने कहा कि फोन टैपिंग इस तरह से किसी व्यक्ति की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है, जब तक कि इसे कानून द्वारा उचित नहीं ठहराया जाता है। यह मामला याचिकाकर्ता पी किशोर (एवरॉन एजुकेशन लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक) से संबंधित है, जिन्होंने 12 अगस्त, 2011 के गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) और भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 के नियम 419-A के तहत उनके मोबाइल फोन को इंटरसेप्शन के लिए अधिकृत किया गया था। एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी को कथित तौर पर 50 लाख रुपये की रिश्वत से जुड़ी सीबीआई जांच के सिलसिले में निगरानी का आदेश दिया गया था।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि निगरानी के लिए राज्य का औचित्य (भ्रष्टाचार का पता लगाने की आवश्यकता) फोन टैपिंग के माध्यम से किसी व्यक्ति की गोपनीयता पर आक्रमण करने के लिए आवश्यक कानूनी सीमा को पूरा नहीं करता है। जस्टिस वेंकटेश ने 1997 के पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ के फैसले का हवाला देते हुए लिखा, “मौजूदा मामले में आरोपित (चुनौती के तहत) आदेश न तो सार्वजनिक आपातकाल के दायरे में आता है और न ही सार्वजनिक सुरक्षा के हित में, जैसा कि पीयूसीएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समझाया है।”
जस्टिस ने क्या कहा?
जस्टिस ने कहा कि निजता का अधिकार 2017 में के एस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में 9 न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के बाद मौलिक अधिकार बन गया है। जस्टिस ने कहा, “मामले के तथ्य बताते हैं कि यह एक गुप्त ऑपरेशन या अपराध का पता लगाने के लिए एक गुप्त स्थिति थी, जो किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए स्पष्ट नहीं होगी। वर्तमान कानून के अनुसार इस तरह की स्थिति अधिनियम की धारा 5(2) के दायरे में नहीं आती है, जैसा कि पीयूसीएल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या की गई है। इसे एस पुट्टस्वामी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंजूरी दी है।”
अदालत ने उन शर्तों को भी निर्धारित किया, जिनके तहत फोन टैपिंग वैलिड रूप से की जा सकती है। यह सार्वजनिक आपातकाल के दौरान या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में की जा सकती है।