सुप्रीम कोर्ट के सामने एक अजीबोगरीब मामला सामने आया। एक महिला वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी जिसमें 55 वकीलों को सीनियर की लिस्ट में शुमार किया गया था। महिला का दावा था कि ये फैसला गलत है। उसने सुप्रीम कोर्ट से दरखास्त की कि ये फैसला रद्द किया जाए। लेकिन अदालत ने महिला ही याचिका को ही खारिज कर दिया।
मामले के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट ने 237 वकीलों में से 55 को सीनियर की लिस्ट में शामिल किया था। लेकिन याची महिला वकील को लगता है कि हर तरह से लायक होने के बावजूद उसे सीनियर बनाने के काबिल नहीं समझा गया। वकील हरविंदर चौधरी का कहना था कि दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर वकीलों का चयन करते समय इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले पर भी गौर नहीं किया।
खुद को सीनियर वकील के तमगे के काबिल बताने के लिए हरविंदर चौधरी ने दलील दी कि वो 26 साल पहले अपने पति को खो चुकी है। बावजूद इसके उसने अपनी बेटी को पाल पोषकर डॉक्टर बनाया। उसने कभी किसी क्लाइंट से 10 हजार रुपये से ज्यादा फीस नहीं ली। AOR एग्जाम भी उसने पास किया है। हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि कोई याची कोर्ट से दुखी होकर न जाए।
हरविंदर चौधरी का कहना था कि 10 से ज्यादा पब्लिकेशन वो जारी कर चुकी हैं। महिलाओं से जुड़े मसलों को वो संजीदगी से उठाती हैं। 2 लाख से ज्यादा किसानों की आवाज बनने के साथ उन्होंने कई मामलों में सरकार का पक्ष भी कोर्ट में रखा। लेकिन उसके व्यक्तित्व की सभी चीजों को हाईकोर्ट ने नजरंदाज कर दिया।
सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि महिला वकील की दलील है कि हाईकोर्ट ने कमेटी भी ठीक से नहीं गठित की। इंटरव्यू के लिए कम समय दिया गया। केवल 1 या 2 सवाल ही पूछे गए। लेकिन हमें नहीं लगता कि इस मामले में दखल देने की कोई जरूरत है।