एक जमाना था जब यमुना नदी दिल्ली की आन-बान-शान हुआ करती थी। लेकिन पिछले तीन दशकों में ये एक शानदार नदी से एक गंदे नाले में तब्दील हो गई। आलम ये है कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने इसे 2025 तक साफ करने की बीड़ा उठाया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तमाम मशक्कत करके सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट भी नदी की दशा सुधारने को लेकर खासा एक्टिव है। अलबत्ता फिर भी इसकी हालत में किसी तरह का सुधार नहीं दिख रहा। उलटे दिन ब दिन हालत बदतर होती जा रही है। प्रदूषण की वजह से उठते झाग आज यमुना की बदहाली को बयां करते हैं। ये इसकी पहचान बन गए हैं।

यमुना मॉनीटरिंग कमेटी की एक रिपोर्ट कहती है कि नदी को लेकर लोगों में एक उत्साह होना चाहिए था। लेकिन बात चाहे आम जन की करें या फिर नगर निकाय और लोकल प्रशासन की। सभी ने यमुना की तरफ से अपनी पीठ मोड़ ली है। यानि किसी को नदी की कोई सुध नहीं। जबकि लंदन की Thames नदी को देखा जाए तो यमुना की तुलना में ये आज भी आन-बान-शान से बलखाती हुई बहती है। लंदन के लोगों ने Thames नदीं को खुद से जोड़ लिया है। वो इसे लेकर संजीदा हैं। वो नदी की सेहत का खासा ख्याल रखते हैं। लेकिन यमुना के मामले में देखा जाए तो किसी को सरोकार ही नहीं है।

कभी लोग मनाने आते थे पिकनिक, धार्मिक गतिविधियां भी चलती थीं, आज सब कुछ ठप्प

यमुना खादर के इलाके में रहने वाले एक किसान रणधीर कहते हैं कि पिछले तीन दशकों में उन्होंने अपनी आंखों से नदी के तब्दील होते देखा है। पहले हम यमुना का पीना पीते थे। इसमें डुबकी लगाकर नहाते थे। लेकिन अब तो इसके पास जाने में भी डर लगता है। यमुना की उत्पत्ति उत्तराखंड के पश्चिमी गढ़वाल इलाके में मौजूद यमुनोत्री ग्लेशियर से होती है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली NCT, राजस्थान और उत्तराखंड के लिए ये संजीवनी है। दिल्ली के लिहाज से देखा जाए तो लोगों को पानी उपलब्ध कराने के साथ मछली पालन का भी अवसर मुहैया कराती रही है। लेकिन आज यमुना के होते हुए भी दिल्ली पानी की किल्लत से जूझता है तो जो लोग मछली पकड़कर अपनी रोजी रोटी कमाते थे वो अब इससे विमुख होते जा रहे हैं। कभी लोग नदी किनारे पिकनिक मनाने आते थे। धार्मिक गतिविधियों के लिए भी ये एक अनूठी जगह थी पर अब सब कुछ खत्म हो रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में 1979 में ही जता दिया गया था अंदेशा

2 जुलाई 1979 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में खतरे को बता दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगले 30 सालों में यमुना एक खुला सीवरेज बनकर रह जाएगी। रिपोर्ट झूठी नहीं थी। आज यमुना एक मृत नदी में तब्दील हो चुकी है। कभी एक सिक्का अगर नदी में डालते थे तो उसका भी अक्स दिखाई दे जाता था लेकिन आज नदी में झाग ही दिखते हैं। नदी की हालत किस कदर खराब हो चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 2020 की अपनी रिपोर्ट में यमुना मॉनीटरिंग कमेटी ने कहा था कि दिल्ली से गुजरने वाला यमुना का 22 किमी का हिस्सा कुल लंबाई का 2 फीसदी ही है। लेकिन इसमें मौजूद कुल का प्रदूषण 75 फीसदी है।

यमुना में सीवेज के साथ सॉलिड वेस्ट की भरमार, दिल्ली आते आते सूख जाती है नदी

अशोका यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अमित बविष्कर अपने रिसर्च पेपर What the Eye Does Not See: The Yamuna in the Imagination of Delhi में लिखती हैं कि नजरंदाज होने की वजह से नदी पूरी तरह से तब्दील हो चुकी है। इसके रिवरबैड पर अब बिल्डरों की नजर है। बहुत सा इलाका उनके कब्जे में भी आ चुका है। मिरांडा हाउस के एसोसिएट प्रोफेसर मीता कुमार कहती हैं कि यमुना के साथ दो तरह की दिक्कतें हैं। सॉलिड वेस्ट और सीवेज सीधा नदी में डाला जा रहा है। इससे भी बड़ी परेशानी ये है कि दिल्ली तक आते आते नदी का पानी ही सूख जाता है जिससे समस्या और बढ़ जाती है।