बिहार के दरभंगा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायमूर्ति यू सी बनर्जी आयोग का जिक्र किया था। 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जांच की थी। पीएम ने कहा कि तत्कालीन रेल मंत्री (लालू प्रसाद) ने ट्रेन अग्निकांड के आरोपियों को बरी करने के लिए केंद्र में यूपीए-1 सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया।

लालू का नाम लिए बगैर पीएम मोदी ने कहा, “जब गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था, तब रेल मंत्री (लालू प्रसाद) इस शहजादे (तेजस्वी यादव की ओर स्पष्ट इशारा करते हुए) के पिता थे। आरोपियों को बचाने के लिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इसका नाम बेन-राजी समिति था। (प्रधानमंत्री ने यूसी बनर्जी नाम को तोड़-मरोड़कर कहा यह दर्शाने के लिए कि यह एक येस मैन समिति थी) सोनियाबेन का राज था और इसलिए उन्होंने बेन-राजी कमेटी बनाई। उन्होंने उनके (बनर्जी) जरिए एक रिपोर्ट लिखवाई जिसमें कहा गया कि जिन लोगों ने 60 कारसेवकों को जिंदा जला दिया, वे निर्दोष हैं और उन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए।”

इस रिपोर्ट का पीएम मोदी ने किया जिक्र

27 फरवरी 2002 को, 59 यात्री (जिनमें से ज़्यादातर कारसेवक थे जो राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा थे और अयोध्या से लौट रहे थे) गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के S6 कोच में आग लगने से मारे गए थे। इस घटना ने गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया था। 2004 में लालू के तहत रेल मंत्रालय ने आग लगने की जांच के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश उमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। समिति का गठन रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 114 के तहत किया गया था, जो किसी ट्रेन दुर्घटना की जांच करने का आदेश देता है। 17 जनवरी 2005 को समिति ने एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि आग आकस्मिक थी, न कि जानबूझकर किया गया प्रयास था।

दिसंबर 2005 में बनर्जी समिति को जांच आयोग अधिनियम के तहत रेल मंत्रालय द्वारा एक ‘आयोग’ में अपग्रेड कर दिया गया था क्योंकि उसने कहा था कि वह कुछ महत्वपूर्ण गवाहों से सहयोग की कमी के कारण अपनी जांच पूरी नहीं कर सका। इसके बाद आयोग ने गुजरात पुलिस के कई अधिकारियों को गवाह के रूप में बुलाया। तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार ने शुरू में अधिकारियों को गवाही देने की अनुमति नहीं दी, लेकिन बाद में उन्हें गवाही देने की अनुमति दे दी।

भाजपा ने 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायमूर्ति बनर्जी की कड़ी आलोचना की थी। बनर्जी आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट 3 मार्च 2006 को पेश की। आयोग ने अपने निष्कर्ष पर कायम रहते हुए कहा कि आग दुर्घटनावश लगी थी। कुछ हफ्ते बाद, गुजरात हाई कोर्ट की एक पीठ ने उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को संसद में पेश करने या इसके प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी गई थी।

मोदी ने भी बैठाई थी जांच

गुजरात सरकार द्वारा मार्च 2002 में गठित एक आयोग द्वारा एक और जांच की गई थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। इस आयोग में जस्टिस जी डी नानावटी और के जे शाह शामिल थे। इससे पहले तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार ने इस घटना की जांच के लिए गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना के नेतृत्व में एक एसआईटी भी नियुक्त किया था। इसके अनुसार ट्रेन में आग एक साजिश का नतीजा था।