TDP-BJP Alliance: लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही एनडीए के कुनबे में और बढ़ोतरी हो सकती है। बीजेपी लगातार क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन और सीट शेयरिंग पर बातचीत कर रही है। इसी बीच, तेलुगु देशम पार्टी भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल होने के करीब है। साल 2018 में टीडीपी अलायंस से बाहर हो गई थी।

टीडीपी के चीफ चंद्रबाबू नायडू गुरुवार को दिल्ली पहुंचे। सूत्रों ने बताया कि यहां पर उन्होंने गठबंधन करने के लिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को मनाया। देर रात तक हुई मीटिंग में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। सूत्रों ने यह भी बताया कि एक्टर से राजनीति में आए पवन कल्याण ने भी इस मीटिंग में हिस्सा लिया था। सूत्रों ने यह भी बताया कि दोनों पार्टियां अब गठबंधन करने को लेकर सहमत हो गई हैं और सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर काम कर रही हैं।

बीजेपी और टीडीपी गठबंधन क्यों करना चाहते हैं?

भारतीय जनता पार्टी आंध्र प्रदेश में अभी तक अपनी जड़े नहीं जमा पाई है और राज्य में पिछले चुनाव में हार गई थी। टीडीपी-जेएसपी के साथ गठबंधन करने से उसे पीएम मोदी द्वारा तय किए गए टारगेट 370 सीटों तक पहुंचने में मदद मिल सकेगी। अब टीडीपी की बात की जाए तो बीजेपी की संगठनात्मक ताकत को देखते हुए गठबंधन उसकी चुनावी मशीनरी को मजबूत करेगा। टीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इसके अलावा, गठबंधन सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को यह भी सकेंत देगा कि अब बीजेपी के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं और केंद्र हमारे पक्ष में है।

पिछले साल सितंबर महीने में टीडीपी चीफ आंध्र प्रदेश कौशल विकास निगम घोटाले में गिरफ्तार हो गए थे। इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि वह केंद्र से सुरक्षा की मांग चाहते हैं। जेएसपी-टीडीपी गठबंधन की घोषणा तब की गई जब नायडू जेल में थे।

बातचीत में पवन कल्याण की क्या भूमिका है?

टीडीपी और जेएसपी के सूत्रों ने बताया कि यह कल्याण ही थे जिन्होंने नायडू और भाजपा नेतृत्व को बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर किया। भाजपा टीडीपी के साथ गठबंधन करने के लिए बिल्कुल भी इच्छुक नहीं थी। इसकी राज्य इकाई का एक वर्ग नायडू को एक ‘गद्दार’ और ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। कल्याण को उम्मीद है कि आंध्र प्रदेश में बीजेपी-टीडीपी-जेएसपी का अच्छा प्रदर्शन यह तय करेगा कि उनकी पार्टी की बात तेलंगाना में भी सुनी जाए।

बीजेपी-टीडीपी का लोकसभा में प्रदर्शन

1996 में टीडीपी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए में शामिल हो गई। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में उसने भाजपा के साथ गठबंधन चुनाव लड़ा था। इसमें टीडीपी ने राज्य की 25 सीटों में से 15 सीटें जीतीं थी। इसका वोट शेयर 40% से ज्यादा रहा था और बीजेपी ने 7% वोट शेयर के साथ 2 सीटें जीतीं। वहीं, पांच साल बाद यानी साल 2019 में, जब टीडीपी के एनडीए छोड़ने के बाद दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं, तो टीडीपी का वोट शेयर लगभग बरकरार ही रहा, लेकिन उसकी सीटें घटकर सिर्फ 3 रह गईं। बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली और उसे केवल 0.98% वोट मिले।

विधानसभा चुनावों में टीडीपी और बीजेपी का प्रदर्शन

दोनों पार्टियों ने मार्च-अप्रैल में 2014 का विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा था। इस चुनाव में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के विधायकों को चुना गया था। चुनाव के बाद तेलंगाना अलग हो गया। चुनावों के बाद टीडीपी आंध्र प्रदेश में सत्ता में आई, जिसने 44.9% वोट शेयर के साथ राज्य की 175 सीटों में से 102 सीटें जीतीं। इसने 14.7% वोट शेयर के साथ तेलंगाना की 119 सीटों में से 15 सीटें जीतीं। बीजेपी ने आंध्र में 2% वोट हासिल किए और 4 सीटें जीतीं, जबकि तेलंगाना में उसे कोई सीट नहीं मिली।

वहीं, अब बात की जाए साल 2019 की तो टीडीपी और बीजेपी अलग-अलग लड़े थे। टीडीपी का लगभग सफाया हो गया और राज्य की 175 विधानसभा सीटों में से केवल 23 पर जीत हासिल हुई। बीजेपी को कोई झटका नहीं लगा और उसे 1 फीसदी से भी कम वोट मिले।

क्या हो सकता है सीट शेयरिंग के लिए संभावित फॉर्मूला?

टीडीपी के एक नेता ने कहा कि गुरुवार को शाह और नड्डा से मुलाकात के बाद नायडू शुक्रवार दोपहर को दूसरी बैठक करेंगे और उसके बाद या शनिवार को (गठबंधन के संबंध में) घोषणा किए जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने 7-8 लोकसभा सीटें और 15 विधानसभा सीटें मांगी हैं। हमने उन्हें 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों की पेशकश की। इस संबंध में चर्चा की जाएगी। टीडीपी के एक सूत्र ने कहा कि भाजपा विशाखापत्तनम, अराकू , विजयवाड़ा , राजमुंदरी , राजमपेट, तिरूपति और हिंदूपुर लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है। उन्होंने कहा कि वे विधानसभा सीटों की संख्या कम करने को तैयार हैं, लेकिन लोकसभा सीटों पर जोर दे रहे हैं।