2024 के आम चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है, लेकिन जिस तरह से उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व कांग्रेस की सक्रियता देखी जा रही है, उसे देखते हुए लगता है कि संसदीय चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं। भारतीय जनता पार्टी सभी सीटों जीत का दावा कर रही है ।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीतियों का जन-जन को फायदा मिला है और इसी के भरोसे संसदीय चुनाव के समय भाजपा के उम्मीदवारों को जीत मिलेगी।संसदीय चुनाव से पहले भाजपा ओबीसी मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए हर विधानसभा में ओबीसी सम्मेलन करने जा रही है। भाजपा नेता ऐसा मानकर के चल रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की जिस तरह से लोकप्रियता में इजाफा होता चला जा रहा है उससे हर हाल में 2024 में उनकी ही सरकार बनेगी।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मुख्य ध्यान इस समय दलित वर्ग को अपने पाले में करने पर है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का ऐसा मानना है कि दलित मतदाताओं के साथ ओबीसी मतदाताओं का इस्तेमाल भाजपा कर रही थी लेकिन यह वर्ग अब उससे पूरी तरह से अलग हो चुका है।
समाजवादी पार्टी उनके बीच जाकर के भाजपा की जनविरोधी नीतियों की कलई खोल करके अपने साथ खड़ा करने की तैयारियों में जुट गई है। 2019 के संसदीय चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मिलकर लड़े थे। इसका फायदा बसपा को मिला था, लेकिन समाजवादी पार्टी को नुकसान हुआ था। बसपा को 10 सीटें मिली थीं। सपा के कई प्रमुख स्तंभ हार गए थे। सपा से डिंपल यादव, अक्षय यादव व धर्मेंद्र यादव जैसे दिग्गज हार गए थे।
2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सपा बसपा गठबंधन का फायदा खासी तादात में मिला जिसके प्रतिफल में समाजवादी पार्टी की सीटें बढ़ कर के 47 से एक सैकड़ा की संख्या पार कर गई। समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी अपनी स्थापना के बाद पहली दफा 36 फीसदी के आसपास मिला। बहुजन समाज पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने समाजवादी पार्टी की ना केवल सदस्यता ग्रहण कर ली है बल्कि आज वह समाजवादी पार्टी के प्रमुख नीतिकार और रणनीतिकार बने हुए नजर आ रहे हैं।
समाजवादी पार्टी पिछड़ी जातियों की गणना को मुद्दा बनाने के साथ ही ओबीसी की छोटी जातियों को आरक्षण के दायरे में लाने को आंदोलनरत है। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी दलित वोट बैंक के सहारे पर संसदीय चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। उन्हें भरोसा है कि उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को खांसी कामयाबी मिलेगी।
2019 में सपा और बसपा के हुए गठबंधन को लेकर ऐसा माना जाने लगा था यह गठबंधन बड़ा ही प्रभावी रहेगा लेकिन उम्मीद के अनुसार नतीजे ना आने पर एक बार फिर से सपा बसपा के बीच दूरी बन गई। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती के बारे में आम धारणा जाहिर हो चुकी है इसलिए उसे लगातार नुकसान होता जा रहा है। इसके ठीक विपरीत समाजवादी पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करती हुई नजर आ रही है।
कांग्रेस पार्टी की स्थिति संसदीय चुनाव में कैसी रहेगी फिलहाल इस पर स्पष्ट रूप से कोई रायशुमारी नहीं की जा सकती है उनकी पार्टी के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने जरूर कांग्रेस पार्टी ने कहीं ना कहीं जोश पैदा किया है लेकिन मानहानि के मामले को लेकर के उनकी संसद सदस्यता चले जाने के बाद कांग्रेस पार्टी के नेताओं में खांसी मायूसी देखी जा रही है।