कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हार के बाद भाजपा अपनी रणनीति में बदलाव के लिए मजबूर दिखाई दे रही है। पार्टी के नेतृत्व की एक शीर्ष स्तरीय बैठक के बाद कई तरह की अटकलों का दौर शुरू हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी प्रमुख जे पी नड्डा और महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के बीच सोमवार देर शाम और मंगलवार को बैठक हुई। कहा जा रहा है कि यह बैठक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव में पार्टी की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए की गयी थी। बैठक का एक अहम मुद्दा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी के साथ एक गठबंध और इससे जुड़ी योजना भी बताया जा रहा है।
अलग-अलग प्रदेशों में बड़ा बदलाव संभव
भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व की लगातार जारी इन बैठकों के बाद कई तरह की सियासी चर्चाएं चल रही हैं। इस तरह की अफवाह भी सामने आ रही है कि भाजपा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना अलावा कई राज्यों के प्रभारियों सहित पार्टी संगठन में बड़े बदलावों करने वाली है। राजस्थान में पहले की बदलाव हो चुका है। इसके अलावा मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों में भी बड़े बदलाव की संभावना है।
तेलंगाना और मध्यप्रदेश पर क्यों है ज़्यादा ध्यान?
भाजपा मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे चुनावी राज्यों में अपने संगठन को मजबूत करने का प्रयास कर रही है। इसका एक बड़ा कारण पार्टी के भीतर जारी मन-मुटाव को भी बताया जा रहा है। इसके साथ ही भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती पार्टी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का विस्तार है। जिसे हाल के वर्षों में जनता दल (यूनाइटेड) और अकाली दल जैसे पारंपरिक भाजपा सहयोगियों ने छोड़ दिया है। भाजपा के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 के आम चुनाव में खुद को बरकरार रखना है लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद भाजपा ने इस ओर काम करने के लिए तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं।
भाजपा के मध्य प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो गया है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं दिखाई देते हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पार्टी मध्यप्रदेश में भी एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। अंदेशा यह भी है कि मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले बड़ा बदलाव हो सकता है।
इसके अलावा तेलंगाना की भाजपा लीडरशिप के लिए भी माहौल बहुत अच्छा नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसी खबरे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार की नेतृत्व के खिलाफ आम कार्यकर्ताओं ने बड़े स्तर पर शिकायत दर्ज कराई है।