इस लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणापत्र 2019 से ही तैयार हो रहा था। राहुल गांधी ने प्रत्यक्ष रूप से यह देखने और जानने-समझने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ऐतिहासिक पदयात्रा की थी कि आम लोग कैसे और किन परिस्थितियों में रह रहे हैं और उनकी आकांक्षाएं क्या हैं। उदयपुर सम्मेलन एक ऐसा अवसर बना था, जिसमें कांग्रेस पार्टी के नेताओं को तीन दिनों तक एक साथ रहने और देश के सामने आने वाली चुनौतियों और उन पर संभावित प्रतिक्रियाओं को लेकर विचार-विमर्श करने का मौका मिला था। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआइसीसी) के रायपुर सम्मेलन के बाद पार्टी नीतियों का एक ऐसा व्यापक और विश्वसनीय मंच तैयार करने में सक्षम हुई थी, जो राज्यों के साथ-साथ राष्ट्रीय चुनावों में भी भाजपा को चुनौती दे सकता है।
नव संकल्प आर्थिक नीति की रचना उदयपुर में की गई थी। ‘केंद्र में गरीब’ विषय पर रायपुर में विचार-विमर्श किया और उसे अपनाया गया था। कांग्रेस का घोषणापत्र 5 अप्रैल को जारी हुआ था, जिसे ‘न्याय पत्र’ नाम दिया गया। इस दस्तावेज के छियालीस पृष्ठों को जो एक सूत्र पिरोता है, वह है ‘न्याय’, जिससे लोगों के एक बड़े वर्ग को वंचित कर दिया गया था। ‘न्याय’ शब्द में सामाजिक न्याय, युवाओं के लिए न्याय, महिलाओं के लिए न्याय, किसानों के लिए न्याय और श्रमिकों के लिए न्याय शामिल हैं।
लोगों के बड़े वर्ग के साथ भेदभाव किया गया और उन्हें देश की तेज या धीमी विकास गाथा में भागीदारी के उचित अवसर से वंचित किया गया। कांग्रेस का घोषणापत्र ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे पर से पर्दा हटाने और देश के शासकों को आईना दिखाने वाला है। इसने समता और न्याय के साथ वृद्धि और विकास का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कांग्रेस के घोषणापत्र को 2024 के चुनावों का ‘हीरो’ बताया।
शुरू में, मोदी जी और भाजपा ने कांग्रेस के घोषणापत्र को नजरअंदाज करने का फैसला किया। मीडिया ने भी इस दस्तावेज पर बहुत कम ध्यान दिया। मगर जैसे-जैसे इसके अनूदित संस्करण राज्यों तक पहुंचे, और उम्मीदवारों और प्रचारकों ने गांवों और कस्बों में इसके मुख्य संदेश पहुंचाए, कांग्रेस का घोषणापत्र लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया। (पढ़ें : कांग्रेस के घोषणापत्र का पुनर्लेखन, जनसत्ता, 28 अप्रैल, 2024) पांच अप्रैल के नौ दिन बाद भाजपा ने अपना घोषणापत्र जारी किया। इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
इस मोदी-पूजक दस्तावेज के गुणों की प्रशंसा खुद मोदी जी ने भी नहीं की, जिसका शीर्षक है ‘मोदी की गारंटी’। सात दिन बाद, 21 अप्रैल को 102 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ। उसकी ‘खुफिया जानकारी’ जाहिर तौर पर भाजपा के लिए बुरी खबर थी। यह स्पष्ट हो गया कि मतदाताओं ने घोषणापत्र में किए गए ‘वादों’ के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों को वोट दिया है, जैसे कर्नाटक और तेलंगाना में ‘गारंटी’ के लिए वोट किया था। इससे मोदी को एक रास्ता मिल गया और 21 अप्रैल को उन्होंने अपनी रणनीति बदल ली।
भाजपा ने अपने नेताओं और सदस्यों के लिए जो पटकथा तैयार की, उससे शायद ‘गोएबल्स’ को गर्व महसूस हुआ होगा। वह पटकथा थी: झूठ, और ज्यादा झूठ और उससे भी ज्यादा झूठ; अगर सत्य कहीं झूठ का प्रतिकार करता हो, तो सत्य को नजरअंदाज कर दो। यहां पिछले चौदह दिनों में फैलाए गए झूठों का एक नमूना पेश है।
झूठ: कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुसलिम लीग की छाप है। सच्चाई: छियालीस पन्नों में से किसी पर भी ‘मुसलिम’ शब्द नहीं आया है। अल्पसंख्यकों को धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के रूप में परिभाषित किया गया है और कांग्रेस ने वादा किया है कि ‘भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत के संविधान के तहत जो मानव और नागरिक अधिकार दिए गए हैं, कांग्रेस उन अधिकारों को बनाए रखने और उनकी रक्षा करने का वचन देती है।’ एससी, एसटी और ओबीसी के कई संदर्भ हैं, लेकिन किसी भी धार्मिक समुदाय का कोई संदर्भ नहीं है।
झूठ: अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो शरीअत कानून वापस लाएगी। सच्चाई: घोषणापत्र में कहा गया है, ‘हम व्यक्तिगत कानूनों में सुधार को प्रोत्साहित करेंगे। ऐसा सुधार संबंधित समुदायों की भागीदारी और सहमति से किया जाना चाहिए।’ झूठ: कांग्रेस के घोषणापत्र में मार्क्सवादी और माओवादी आर्थिक सिद्धांतों की वकालत की गई है।
सच्चाई: दस पृष्ठों के अर्थव्यवस्था वाले खंड के परिचय में कांग्रेस ने कहा है: कांग्रेस की आर्थिक नीति पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुई है। 1991 में कांग्रेस ने उदारीकरण के युग की शुरूआत की और देश को नियामक निरीक्षण के साथ एक खुली, स्वतंत्र और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर किया। देश को धन-सृजन, नए व्यवसायों और उद्यमियों, एक विशाल मध्यवर्ग, लाखों नौकरियों, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में महत्त्वपूर्ण नवाचारों और निर्यात के मामले में भारी लाभ मिला। लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया। हम एक खुली अर्थव्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं, जिसमें आर्थिक विकास निजी क्षेत्र द्वारा संचालित होगा और एक मजबूत और व्यावहारिक सार्वजनिक क्षेत्र का पूरक होगा।
झूठ: चुनाव जीतने पर कांग्रेस एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण खत्म कर देगी। सच्चाई: घोषणापत्र में कहा गया है कि ‘कांग्रेस गारंटी देती है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की तय पचास फीसद की सीमा बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन करेगी। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दस फीसद का आरक्षण बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों और समुदायों के लिए लागू किया जाएगा। हम एक वर्ष की अवधि के भीतर एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित पदों पर सभी लंबित रिक्तियों को भर देंगे। एससी, एसटी और ओबीसी के हितों को आगे बढ़ाने के लिए और भी कई वादे किए गए हैं।
झूठ: कांग्रेस विरासत कर लगाएगी। सच्चाई: कराधान और कर सुधारों पर 12-बिंदु अनुभाग में कांग्रेस ने प्रत्यक्ष कर संहिता बनाने का वादा किया है; पांच वर्षों के लिए स्थिर व्यक्तिगत आयकर दरें बरकरार रहेंगी; पांच फीसद पर उपकर और अधिभार की सीमा; जीएसटी का दूसरा चरण लागू होगा; और एमएसएमई और छोटे खुदरा व्यवसायों पर करों का बोझ कम करेंगे। इसमें विरासत कर का कोई जिक्र नहीं है। झूठ को सामने रखकर और कांग्रेस के घोषणापत्र की सच्चाई चुनावी बहस में लाने में सक्षम बनाकर तथा भाजपा के घोषणापत्र का कोई संदर्भ न देकर, मोदी जी ने स्टालिन का समर्थन किया है। उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि कांग्रेस का घोषणापत्र 2024 के लोकसभा चुनावों का असली नायक है।