जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राम मंदिर निर्माण के बाद सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना बाकी रह गया है, जो भाजपा के घोषणापत्र में किए गए वादों का हिस्सा है। हालांकि, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू करने की राह पार्टी के लिए बेहद मुश्किल लग रही है। विपक्ष की ओर से इसका कड़ा विरोध किया जा रहा है और पार्टी भी इस बात से अवगत है कि इसे लागू करने की राह उसके लिए इतनी आसान नहीं होने वाली है।
वैश्विक मंच पर किसी विवाद का हिस्सा नहीं बनना चाहेगी सरकार
सितंबर तक देश में जी-20 देशों की विभिन्न बैठकें होनी हैं। ऐसे में मोदी सरकार नहीं चाहेगी कि वह किसी विवाद में फंसे। इसके बाद सरकार के पास इसे लागू कराने के लिए संसद के शीत सत्र का आखिरी मौका होगा, लेकिन उस समय मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं और ऐसे में सरकार के इस कदम का असर इन राज्यों में रहने वाली आदिवासी आबादी पर पड़ सकता है क्योंकि वह ऐसी किसी भी पॉलिसी का स्वागत नहीं करेगी, जो उनकी परंपराओं के खिलाफ हो।
एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की आदिवासी जनता को नाराज नहीं करेगी भाजपा
कुछ महीनों में मिजोरम में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां साल की शुरुआत में ही यूसीसी को लागू करने के किसी भी कदम का विरोध करते हुए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया था। प्रस्ताव में कहा गया कि यूसीसी को लागू करने के लिए उठाया गया कोई भी कदम अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों, उनके कल्चर और परंपरा को खत्म कर देगा। वहीं, मणिपुर में जारी संघर्ष को देखते हुए सरकार इसे लाकर पूर्वोत्तर की आदिवासी जनता को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती है।
विभिन्न आदिवासी परंपराओं के लिए खतरा हो सकता है यूसीसी
उधर, साल 2016 में राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने आदिवासियों की परंपरा, रीति रिवाजों और अधिकारों की रक्षा का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद 11 करोड़ आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने का दावा करता है। संगठन ने अदालत में अपनी बहुविवाह और बहुपति जैसी प्रथाओं की रक्षा के लिए याचिका दाखिल की थी। यूसीसी लागू होने के बाद इन प्रथाओं पर खतरा हो सकता है। परिषद ने कहा कि आदिवासी समुदायों के अपने कानून हैं और वह हिंदुओं में शामिल नहीं हैं क्योंकि वह मूर्ति पूजा की जगह प्रकृति की पूजा करते हैं और मृतकों को जलाने के बजाय दफनाते हैं। परिषद में कोर्ट ने कहा कि उनके रीति रिवाज हिंदुओं से अलग हैं इसलिए उन्हें डर है कि उनकी परंपराओं को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
राजनीतिक दलों को भी नाराज नहीं करेगी पार्टी
आदिवासियों की प्रतिक्रिया के डर के अलावा, भाजपा उन दलों की इच्छाओं का भी ध्यान रखना चाहती होगी, जिन्हें वह लोकसभा चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, बीजू जनता दल (BJD) से यूसीसी पर पॉजिटिव सिग्नल मिल गया है। भाजपा के लिए संसद में बिल को पास कराने के लिए बीजेडी का समर्थन काफी हो सकता है, लेकिन अकाली दल और आंध्र प्रदेश की YSRCP ने इस पर अपना रुख साफ कर दिया है कि वह इस कदम में भाजपा के साथ नहीं है। वहीं, सरकार इस बात को लेकर आश्वस्त है कि जब भी बिल संसद में लाया जाएगा वह समर्थन के साथ पास हो जाएगा। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि सरकार को इस बात का विश्वास है कि अगर बिल लाया जाएगा, तो उसे समर्थन मिलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार बिल पर कानून आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।
हाल में राजद्रोह के मसले पर लॉ कमिशन द्वारा बीजेपी के विचारों से मिलता स्टैंड लेने के बाद से सरकार में शामिल लोगों को विश्वास है कि रिपोर्ट उनके पक्ष में रहेगी। सूत्रों ने कहा कि सरकार एक ऐसा विधेयक लाकर बीच का रास्ता भी निकाल सकती है जो स्वदेशी समुदायों और उनकी प्रथाओं एवं रीति-रिवाजों को लेकर रियायतें देता है।
क्या कोई बीच का रास्ता निकाल सकती है सरकार
आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर काम करने वाले संघ परिवार के एक वरिष्ठ नेता ने भी यही संकेत दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि वह एक कानून के बारे में अटकलों पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते। उन्होंने कहा कि एक मसौदा सामने आने दो यूसीसी को लेकर जिन भी चिंताओं के बारे में हम जो कुछ भी सुन रहे हैं वह सिर्फ अटकलें हैं। किसको पता है कि क्या पता विधेयक में आदिवासी समूहों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को दूर करने के प्रावधानों को शामिल किया गया हो।
इसी तरह की बातें यूसीसी के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा नियुक्त रंजना देसाई के नेतृत्व वाली विशेषज्ञ समिति में भी देखने को मिली हैं। वह हाल ही में केंद्र सरकार के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करने के लिए दिल्ली में थीं। सूत्रों के अनुसार, रंजना देसाई पैनल की रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर यूसीसी बिल के लिए एक मॉडल हो सकती है। समिति की प्राथमिकताओं में लैंगिक समानता, महिलाओं की विवाह योग्य आयु को 21 वर्ष करना, पैतृक संपत्तियों में बेटियों के लिए समान अधिकार, LGBTQ जोड़ों के लिए कानूनी अधिकार और जनसंख्या नियंत्रण को शामिल किया गया है।