Lok Sabha Elections: चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक दलों के बीच सवा दो महीने तक शह-मात का सियासी खेल चलेगा। कोशिश सबकी एक-दूसरे को शिकस्त देने की रहेगी। इसी बीच, बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर कौन कहां से लड़ेगा आखिर तय हो ही गया। एनडीए ने सीट शेयरिग के फॉर्मूले पर डील फाइनल कर ली है।

भाजपा 17 सीटों पर, जेडीयू 16 सीटों पर और एलजेपी (रामविलास) पांच सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, बची हुई दो सीटों में से एक पर जीतनराम मांझी की हम चुनावी मैदान में उतरेगी। साथ ही, एक सीट उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दी गई है। ऐसा पहली बार है जब बीजेपी ने जेडीयू से ज्यादा सीटें ली हैं। 2019 के चुनावों के दौरान भाजपा और जदयू दोनों ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उस समय एलजेपी के पास 6 सीटें थी। जब तक पार्टी में कोई भी टूट नहीं थी। लेकिन राम विलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी में फूट पड़ गई। एक धड़ा चिराग पासवान के साथ चला गया और दूसरा धड़ा चाचा पशुपति पारस के पास चला गया।

पशुपति पारस को किया दरकिनार

इन सब में चौंकाने वाली बात यह है कि सीट शेयरिंग फॉर्मूले में चाचा पशुपति पारस को बिल्कुल दरकिनार कर दिया गया। यह माना जा रहा है कि यह सारा खेल केवल एक सीट की वजह से ही बिगड़ गया। पशुपति पारस जिद करके बैठे हुए थे कि उन्हें केवल हाजीपुर की ही सीट चाहिए। वहीं, चिराग पासवान भी वही सीट मांग रहे थे। हाजीपुर वही हाईप्रोफाइल सीट है जिस पर रामविलास पासवान 9 बार लोकसभा सांसद चुने गए थे। साल 2019 के लोकसभा इलेक्शन में पशुपति पारस ने हाजीपुर से चुनाव जीता।

रामविलास पासवान 9 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद रहे थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में की थी और 1969 में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए थे। लोक दल का गठन होने पर पासवान में इसमें शामिल हो गए थे और पार्टी में महासचिव बनाए गए थे। साल 1977 में वह पहली बार हाजीपुर से चुनाव जीते थे और उस समय उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। इसके बाद वह 1980, 1989, 1991 (रोसड़ा), 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में फिर से सांसद चुने गए थे।

2000 में उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया और इसके प्रमुख बने। 2004 में वह यूपीए सरकार में शामिल हो गए थे और रसायन और उर्वरक मंत्रालय और इस्पात मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बने। आखिरी बार रामविलास पासवान ने 2014 में यहां से चुनाव लड़ा था। इसके बाद वह राज्यसभा में चले गए। इस सीट से बाद में पशुपति पारस ने जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचे।

हाजीपुर सीट इतनी खास क्यों

हाजीपुर सीट इसलिए हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है क्योंकि चिराग पासवान के पिता रामविलास नौ बार सांसद रहे हैं। हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान की पहचान जुड़ी हुई है। रामविलास पासवान खुद को दलितों के नेता के रूप में पेश करते थे। इसी बलबूते पर उन्होंने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया। रामविलास ने अपने आप को केवल बिहार तक ही सीमित नहीं रखा। उन्होंने अपनी पहुंच दिल्ली तक बढ़ाई। जब वे रेल मंत्री थे तो उन्होंने हाजीपुर में रेलवे का रीजनल ऑफिस बनवाया था। इसके बाद उनकी छवि एक काम की राजनीति करने वाले नेता के रूप में उभर कर सामने आई।

हालांकि, जब रामविलास पासवान का निधन हो चुका है तो हाजीपुर की सीट को लेकर चाचा पशुपति पारस और चिराग पासवान ने दावा ठोक दिया। चिराग अभी वर्तमान समय में जमुई सीट से सांसद हैं। वहीं,हाजीपुर सीट से पशुपति पारस सांसद हैं। अब दोनों ही मंशा रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने की है। अब एनडीए में सीट शेयरिंग के बाद पशुपति को यह सीट नहीं मिली है। अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि वह मोदी कैबिनेट से जल्द ही इस्तीफा दे सकते हैं। हाजीपुर सीट के लिए पशुपति पारस कह चुके हैं कि वह कोई भी समझौता नहीं करेंगे।

चिराग पासवान को क्यों मिली तवज्जो

अब बात करते हैं कि चाचा पशुपति पारस की जगह चिराग को ज्यादा तवज्जों क्यों मिली तो हमे थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा। साल 2021 में जब एलजेपी में टूट हुई थी तो चिराग बिल्कुल अलग पड़ गए थे। पशुपति पारस को दलित वोटर्स से उम्मीद थी। लेकिन फिर चिराग पासवान ने जन आशीर्वाद यात्रा निकालकर दांव चला और उनकी यात्रा को काफी समर्थन भी मिला। इस यात्रा के दौरान चिराग पासवान ने खुद को अपने पिता का राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया। उन्होंने पार्टी तोड़ने वालों को विश्वासघाती करार दिया। इसके अलावा चिराग भले ही एनडीए के साथ नहीं थे, लेकिन उन्होंने बीजेपी को टारगेट करने से परहेज किया। उन्होंने खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताया। पिछले साल जुलाई माह में चिराग पासवान ने दोबारा एनडीए का दामन थाम लिया था और बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने सबसे पहले हाजीपुर की सीट को लेकर दावा किया था।

हाजीपुर का सियासी गणित क्या है

रामविलास पासवान को दलितों का बड़ा नेता माना जाता था। उनके बेटे को आशीर्वाद यात्रा के दौरान जिस तरह का समर्थन मिला था। उससे यही माना जाता है कि एलजेपी का कोर वोटर अभी भी उन्हें छोड़कर कहीं नहीं गया है और उनके साथ है। बिहार की जातिगत जनगणना के मुताबिक, यह सीट पर हिंदू बहुल है। मुस्लिम 9 प्रतिशत और जैन 3 प्रतिशत हैं। जातीय आधार पर इस क्षेत्र में पासवान और रविदास की संख्या ज्यादा है। पासवान वोटर्स ही एलजेपी का कोर वोटर रहा है। दलितों की दूसरी जातियों का वोट ना पहले कभी रामविलास को मिला था और ना ही चिराग को मिलने की संभावना है।

लेकिन चिराग के एनडीए में आ जाने के बाद उसे 5 से 6 फीसदी वोट मिलने की संभावना है। कहीं न कहीं बीजेपी के आलाकमान को भी इस बात का अनुमान लग गया था कि पशुपति के मुकाबले चिराग को तवज्जो देना ज्यादा बेहतर रहेगा। इसी वजह से उन्हें अहमियत दी गई है। अब तय है कि हाजीपुर से चिराग पासवान चुनाव लड़ेगे।