Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के एक दिन बाद बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मुस्लिम समाज को लेकर अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में बीएसपी का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। मायावती ने अपने बयान में कहा कि बीएसपी ने पिछले कई चुनावों में मुस्लिम समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया है, लेकिन मुस्लिम समुदाय उसे समझ नहीं पाया है। ऐसे में पार्टी भविष्य के चुनावों में उन्हें सोच-समझकर मौका देगी, ताकि भविष्य में पार्टी को इस चुनाव जैसी बुरी हार का सामना न करना पड़े।
मायावती के गुस्से की वजह यह थी कि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस के गठबंधन के प्रत्याशियों पर मुस्लिम समाज के लोगों ने ज्यादा भरोसा जताया है। इससे बीएसपी नेतृत्व परेशान हो गया क्योंकि मुसलमानों ने पार्टी को वोट नहीं दिया, जबकि पार्टी ने राज्य में 19 और देश भर में 37 टिकट दिए थे। मुसलमानों को सबसे ज़्यादा टिकट दिए थे।
मुस्लिम समुदाय से दिए थे कई टिकट
UP में BSP द्वारा मैदान में उतारे गए सभी 19 मुस्लिम उम्मीदवार हार गए और तीसरे स्थान पर रहे, जबकि मुस्लिम वोटों के लिए उसके प्रतिद्वंद्वी, एसपी ने इनमें से 12 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने एक सीट जीती। अन्य छह सीटें बीजेपी ने जीतीं। पिछली बार बीएसपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। तब भी वह सभी 19 सीटें हार गई थी।
मायावती ने उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, तो अन्य विपक्षी दलों ने बसपा पर बीजेपी की “B टीम” के रूप में काम करने का आरोप लगाया और कहा कि उनका उद्देश्य सपा के वोटों में सेंध लगाना और BJP की मदद करना है। बता दें कि मायावती ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद भी अपनी पार्टी की हार के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया था, उस दौरान पार्टी का वोट शेयर 12.88% तक गिर गया था। उस समय बीएसपी ने 88 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कोई भी नहीं जीता। उस चुनाव में बीएसपी को सिर्फ़ एक विधानसभा सीट मिली थी। उस समय भी, अधिकांश मुसलमानों ने एसपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया था।
मायावती को नहीं मिला उम्मीद के मुताबिक वोट
4 जून को घोषित नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि यूपी में जिन 79 सीटों पर बीएसपी ने चुनाव लड़ा, उनमें उसका कुल वोट शेयर 9.39% रहा, जो 19 सीटों पर पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों को मिले औसत वोट शेयर के अनुरूप है। यह अपने आप में राज्य में जाटव दलित मतदाताओं की संख्या से चार प्रतिशत कम है। जाटवों को बीएसपी का मुख्य वोटर माना जाता है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम वोटों के साथ-साथ बीएसपी को पूरे जाटव वोट भी नहीं मिले।
BSP का कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार दूसरे नंबर पर नहीं आ सका, इनमें से मशूद सबीहा अंसारी को आजमगढ़ में 17% वोट मिले – जो बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवारों में सबसे ज़्यादा है। वह एसपी के धर्मेंद्र यादव और बीजेपी के मौजूदा सांसद दिनेश लाल यादव के बाद तीसरे नंबर पर रहीं। दिलचस्प बात यह है कि अंसारी को 1.79 लाख वोट मिले, जो यादव की जीत के अंतर 1.61 लाख वोटों से ज़्यादा था।
अंबेडकर नगर में बीएसपी उम्मीदवार कमर हयात को एसपी के विजेता लालजी वर्मा और बीजेपी के मौजूदा सांसद रितेश पांडे, दोनों ही पूर्व बीएसपी नेता के मुकाबले 16.95% वोट मिले। कुल संख्या में हयात को 1.99 लाख वोट मिले, जो वर्मा के जीत के अंतर 1.37 लाख से ज़्यादा है।
गौरतलब है कि अफजाल अंसारी और दानिश अली दोनों ही 2019 में बीएसपी के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे। भले ही अफजाल औपचारिक रूप से सपा में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन बीएसपी नेतृत्व द्वारा उन्हें टिकट न देने के संकेत दिए जाने के बाद फरवरी में उन्हें पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया था। पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में दिसंबर 2023 में मायावती द्वारा निलंबित किए जाने के बाद दानिश कांग्रेस में शामिल हो गए। इमरान मसूद की बात करें तो मायावती ने अनुशासनहीनता के आरोप में पिछले साल अगस्त में पश्चिमी यूपी के प्रमुख मुस्लिम नेता को पार्टी से निष्कासित कर दिया था।