Chirag Paswan Nitish Kumar Bihar: पिछले कुछ दिनों में केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कई बार विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। यह माना जा रहा है कि वह राज्य की राजनीति में ‘किंग’ नहीं तो ‘किंग मेकर’ जरूर बनना चाहते हैं। बीजेपी नेतृत्व चिराग की रणनीति और कदमों पर नजर बनाए हुए है।
चिराग कई बार कह चुके हैं कि वह बिहार की राजनीति में वापस आना चाहते हैं। सूत्रों का कहना है कि वह आरक्षित सीट के बजाय किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी नेतृत्व का मत है कि पासवान एनडीए के सीट बंटवारे में उन्हें मिली किसी भी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की सक्रियता ऐसे वक्त में बढ़ी है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक विरोधी ऐसा मानते हैं कि बिहार में उनका वक्त अब खत्म होने वाला है। चिराग मानते हैं कि वह राज्य की राजनीति में बड़े राजनीतिक दलों को एकजुट करने वाला चेहरा बन सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी को 6.47% वोट मिले थे और उसने 5 सीटें जीती थी लेकिन यह नीतीश कुमार की जेडीयू से काफी पीछे रही थी। जेडीयू को चुनाव में 18.52% वोट मिले थे।
CM की कुर्सी पर है चिराग पासवान की नजर; NDA जीता तो नीतीश फिर बन पाएंगे मुख्यमंत्री?
आधार बढ़ाना चाहते हैं चिराग पासवान
बिहार बीजेपी के एक सीनियर नेता और पूर्व सांसद कहते हैं, “चिराग खुद को सिर्फ पासवान समुदाय के नेता तक सीमित नहीं रखना चाहते हालांकि उनका समुदाय उनके साथ है लेकिन वह आधार बढ़ाना चाहते हैं।”
बीजेपी नेतृत्व का एक वर्ग ऐसा मानता है कि पार्टी बिहार में अपने नेताओं को तैयार नहीं कर सकी और पासवान इसका फायदा उठा रहे हैं। एक नेता कहते हैं कि अगर बीजेपी नेतृत्व ने इस मामले में स्टैंड लिया होता तो यह स्थिति नहीं बनती।
एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा, “चिराग का सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का संकेत यह बताता है कि वह बिहार की राजनीति में अगले नीतीश कुमार बनना चाहते हैं। नीतीश ने दो दशकों तक बिहार की राजनीति में बिना स्पष्ट बहुमत के भी शासन किया है और 20% से ज्यादा वोट हासिल किया है। बीजेपी इन दिनों नेता नहीं कार्यकर्ता तैयार करती है।”
बिहार में कौन है जनता का पसंदीदा CM फेस? जानिए कौन मार रहा बाजी
बीजेपी नेता और Broken Promises: Caste, Crime and Politics in Bihar किताब के लेखक मृत्युंजय शर्मा कहते हैं, “चिराग पासवान अपनी पार्टी को केवल पासवान जाति तक सीमित नहीं रखना चाहते, वह युवाओं और महिलाओं को इससे जोड़ना चाहते हैं और इसीलिए वह सामान्य सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं।”
शर्मा यह भी कहते हैं कि चिराग को अपने आधार का विस्तार करना होगा और ऐसा आने वाले 5 से 10 सालों में कर पाना बहुत मुश्किल होगा। शर्मा ने बताया कि 2005 में अविभाजित लोजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था जब उसने 29 सीटें जीती थी।
नीतीश को लेकर क्या फैसला करेगी बीजेपी?
मौजूदा राजनीतिक हालात में बीजेपी के बड़े नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार को ही चेहरा बनाए रखने के अलावा उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। राष्ट्रीय राजनीति में खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए बीजेपी के लिए बिहार बेहद महत्वपूर्ण है।
जाति जनगणना की घोषणा को बिहार में बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत करने से जोड़कर देख रही है। बताना होगा कि जाति जनगणना कांग्रेस और विपक्षी दलों का मुख्य मुद्दा रहा है। जेडीयू और लोजपा (रामविलास) जाति जनगणना के पक्ष में थे। अगर पार्टी का यह कदम सफल हुआ तो उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा।
यह भी पढ़ें- बिहार में चिराग पासवान की आक्रामक ‘तैयारियों’ से JD(U) में बेचैनी