मुग्धा

रिश्ते-नातों से भरपूर होने का मतलब है अपने जीवन को आत्मविश्वास और सुरक्षित भाव से भरपूर जीना। सच यह है कि अच्छे रिश्ते ऊर्जा को सौ गुना कर देते हैं और जीवन में तरंग को बनाए रखते हैं। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि हम अपने रिश्ते किसी तरह खरामा-खरामा बस ढो रहे होते हैं। हालांकि हम उन रिश्तों में मजबूरन बोलते और हंसते भी हैं, लेकिन वह सब उदास ढंग से हो रहा होता है।

तब छटपटाहट से भरा दिल उस समय खोजने लगता है रिश्तों में उस गर्माहट को, जो कहीं दूर हो गई है। उसमें कितना अनूठा और अनुपम भाव है, वह महसूस नहीं होता, बस यह दर्द सालता रहता है। पर गौर से समझें तो यह कोई जटिल पहेली नहीं है। इसका जवाब एकदम सरल और सीधा यह है कि हम सब सामाजिक प्राणी हैं और हमारे जीवन की अधिकतर खुशियां दूसरों से जुड़ी हैं। हमारा गुस्सा और हमारी समस्या दूसरों से ही जुड़ी है। इसलिए हमारा समूचा दिन अगर केवल ‘मैं’ भाव पर केंद्रित रहेगा तो यह उदासी और बेचैनी खत्म नहीं होगी।

इसलिए एक सामान्य नियम पर चलना चाहिए कि रिश्तों में खुश रहने के लिए दूसरों की नहीं, अपनी पहल करके अच्छे संबंधों पर जोर देना जरूरी है। यह तो हम सब मानते ही हैं कि अच्छे संबंध हमारी सेहत और खुशी का मुख्य आधार हैं। एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए इस पहल वाले नियम को हमेशा ध्यान रखा जा सकता है। जो भी संपर्क में आए, उसके साथ खुद पहल करें और दूसरे के तेवर को ध्यान में रखकर व्यवहार करें।

इसे इस तरह समझा जा सकता है कि अगर हमारे किसी खास रिश्ते में किसी को अधिक बोलने या डींग हांकने की आदत है तो उन्हें हल्के-फुल्के अंदाज मे लेने से हमारी सेहत पर कुछ खास असर नहीं होगा, लेकिन कुछ मिनट का धीरज रिश्तों को बचा लेगा। हमारे जीवन में जो लोग अहमियत रखते हैं, उन्हें अपनी दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाएं।

उनसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हमें जरा-जरा-सी खुशी पर आनंद मनाना बेहद पसंद है तो औरों की मौज-मस्ती से मौके पर शामिल होना और शुभकामनाएं प्रेषित करना सीखना चाहिए। अगर अपने समय को लेकर हम सतर्क रहते हैं तो दूसरों के साथ भी यही बात लागू करें। दूसरों से ऐसे व्यवहार करें, जैसे उन्होंने बहुत-सा वजन उठाया हुआ है। दूसरों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करना जरूरी है।

अपने साथ जुड़े हर इंसान को खास महसूस कराना चाहिए। किसी करीबी संबंधी की आर्थिक स्थिति बहुत शानदार नहीं है तो हम अपनी कल्पना से कुछ ऐसे तरीके खोज सकते हैं, जिनसे हम उनको बहुत खास महसूस करा सकें। कुदरत ने हम सबको खास तरह से सृजित किया है। जब हम दूसरों को अच्छा महसूस कराते हैं, उसी वक्त हमें अपने लिए भी अच्छा लगता है। हम जिस समय दूसरों की हीन भावनाओं को दूर करते हैं, हमारी अपनी भी हीनता दूर होती है।

आज ही जीवन है, कल का पता नहीं। इस अनोखे विचार पर चल कर हम समझ जाएंगे कि हम अपने इस समय को अब कैसे बिताना चाहेंगे। एक से बढ़ कर एक बिंदु हमें झकझोर कर रख देगें कि अब तक के अपने जीवन को क्या आपने इस स्तर तक जिया है? हम क्या करना चाहते हैं? किससे मिलना चाहते हैं? क्या देखना चाहते हैं? किसके साथ अपना समय बिताना चाहते हैं? ऐसा करना हमें उन सबके करीब लाएगा, जिनसे हम बेकार में नाराज हैं। यह विचार हमें तो उत्साह और सकारात्मक भाव देगा ही, साथ ही उनके जीवन को खुशियों से भर देगा।

दरअसल, दूसरों के साथ हमारे अच्छे संबंध यह बताते हैं कि हम कितने मानवीय हैं। एक बार गौतम बुद्ध के पास एक व्यक्ति रिश्तों की सरलता समझने आया। बुद्ध ने उसे अपने साथ जंगल में ले जाकर कहा- ‘देखो, यह युवक नीचे गिरे पत्तों को एक बड़े बर्तन में जमा कर रहा है।’ उस युवक ने जब पत्तियां जमा कर लीं तो गौतम बुद्ध ने उसके नजदीक जाकर उससे बातचीत की।

युवक ने वहां एक-दो पेड़ों की तरफ संकेत करके बताया कि इनकी पत्तियां भोजन और जल, दोनों की कमी पूरी करती हैं। वह युवक चला गया, तब उस व्यक्ति ने पूछा कि तथागत, आपने उस साधारण सूखे पत्ते बटोरने वाले से बातचीत करके मुझे क्या संकेत दे रहे हैं? बुद्ध ने कहा कि क्या तुमने देखा कि वह कितना संतोषी है? उसने बस पेड़ों द्वारा त्याग दिए गए पत्तों के अलावा एक हरा पत्ता नहीं तोड़ा।

यही इसकी साधना है जो मेरे अंत:स्थल को छू गई। ‘आप’ क्या हैं, यह महत्त्वपूर्ण नहीं, पर औरों से लेने की हमारी नीयत में ‘क्या’ है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है! रिश्ते अजीब होते हैं। जब हम छीन-झपट कर कुछ लेना चाहते हैं, तब तनाव पैदा होता है। जबकि रिश्ते तब फलते-फूलते हैं, जब हम औरों को अपनी जगह पर रखने लगते हैं।