बसपा से स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दे दिया है। मायावती ने उन पर आरोप लगाया कि वे अपने बेटा-बेटी के लिए विधानसभा टिकट मांग रहे थे। मौर्य के सामने राजनीति का लंबा समय बाकी है। वे उत्तर प्रदेश में बसपा का ओबीसी चेहरा और अघोषित प्रवक्ता रहे हैं, मगर अब पार्टी से बाहर होने पर उनके सामने चुनौती बड़ी हो गई है। बसपा के इतिहास को देखें तो पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं का राजनीतिक करियर डांवाडोल ही रहा है। ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है तो बसपा से निकले तो गुमनाम हो गए। ऐसे ही कुछ चेहरों पर एक नजर:
बाबू सिंह कुशवाहा
पिछली बसपा सरकार में मायावती से सबसे खास माने जाते थे। NRHM घोटाले में जेल जाने के बाद बीएसपी ने पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद इन्होंने जन अधिकार मंच बनाया। कुशवाहा की पत्नी ने सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर जीत नहीं पाई। कुशवाहा इस समय जमानत पर बाहर है, लेकिन उनका रसूख पहले जैसा नहीं रहा।
मसूद अहमद
टांडा के डॉ. मसूद अहमद ने कांशीराम के साथ पार्टी की स्थापना की। वे 1985 से 1993 तक बसपा के पूर्वी यूपी प्रभारी रहे। अहमद सपा-बसपा की साझा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। इसी दौरान बसपा से मतभेद हो गया और पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया। मसूद ने कुछ दिन अपनी पार्टी चलाई, मगर फिर वे सपा, उसके बाद कांग्रेस में चले मगर कोई चुनाव नहीं जीत पाए। वर्तमान में वे रालोद में हैं।
रामाधीन अहिरवार
अस्सी के दशक में कांशीराम के संपर्क में आए रामाधीन ने 1984 व 1989 में जालौन से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। 1995 में उनका मायावती से विरोध शुरू हुआ तो पार्टी से बाहर कर दिया गया। वह फिलहाल कांग्रेस में हैं।
राज बहादुर
राज बहादुर सन 1973 में कांशीराम से जुड़े थे। 1993 में सपा-बसपा सरकार में समाज कल्याण मंत्री बने। बाद में राजबहादुर बागी हो गए और उन्होंने बीएसपी (रा) के नाम से पार्टी बना ली। कुछ समय बाद वह सपा और फिर कांग्रेस में चले गए। इस समय वह कांग्रेस में हैं पर बसपा छोड़ने के बाद वह कोई चुनाव नहीं जीत पाए।
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दीनानाथ भास्कर
बसपा के शुरुआती दिनों का हिस्सा रहे भास्कर सपा-बीएसपी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे थे। मायावती के खिलाफ बगावत कर 1996 में बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था। 2009 में वह फिर बसपा में शामिल हो गए थे। इस समय भाजपा में हैं।
आरके चौधरी
आरके चौधरी बसपा बनने के बाद पार्टी के अग्रणी नेताओं में शामिल रहे। प्रदेश में बसपा की सरकार बनी तो चौधरी परिवहन मंत्री बने, लेकिन 2001 में मायावती से अनबन के चलते पार्टी से बाहर हो गए। 2004 में राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी का गठन किया। 2012 में खुद विधानसभा चुनाव नहीं जीत सके। अब वे वापस बसपा में लौट आए हैं।