बॉम्बे लायर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके एक अनूठी मांग सामने रखी है। वकीलों की संस्था का कहना है कि किसी भी रिटायर्ड जस्टिस को हाईप्रोफाइल नियुक्ति तुरंत नहीं मिलनी चाहिए। रिटायरमेंट के बाद कम से कम दो साल का कूलिंग पीरियड रखा जाना चाहिए। यानि इस समय के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस सरकार से कोई भी राजनीतिक नियुक्ति नहीं ले सकते।
बॉम्बे लायर्स एसोसिएशन का कहना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ये कदम उठाया जाना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना चाहिए कि रिटायरमेंट के दो साल के बाद ही कोई रिटायर जस्टिस राजनीति नियुक्ति ले सकता है। संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है। वकीलों की संस्था का कहना है कि अगर दो साल का कूलिंग पीरियड नहीं होगा तो कोई भी जस्टिस सरकारी पद की चाह में सरकार के मुताबिक फैसले देने से नहीं हिचकेगा। ये प्रथा कम से कम सुप्रीम कोर्ट य़ा फिर न्यायपालिका की साख को प्रभावित ही करने जा रही है।
2014 के बाद से रंजन गोगोई समेत तीन जस्टिसों ने लिया राजनीतिक पद
ध्यान रहे कि भारत के पूर्व CJI रंजन गोगोई को रिटायरमेंट के चार माह बाद ही मोदी सरकार ने राज्यसभा में भेज दिया। गोगोई राम मंदिर का फैसला सुनाने वाली बेंच के अहम सदस्य थे। एक दूसरे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर को सेवानिवृत्ति के 1 माह बाद ही आंध्र प्रदेश का गवर्नर बना दिया गया। वो भी राम मंदिर का फैसला देने वाली बेंच के सदस्य थे। वो उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने 2016 की नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई की थी। बेंच ने उन तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया था जो नोटबंदी को चुनौती दे रही थीं। 2014 के बाद से मोदी सरकार ने तीन पूर्व जस्टियों को सरकारी नियुक्ति दी। जस्टिस पी सठाशिवम को भी केरल का राज्यपाल बनाकर भेजा गया था।
CJI रह चुके मोहम्मद हिदायतुल्ला ने 9 साल तक नहीं लिया था कोई पद
याचिका में कहा गया है कि इस मामले में भारत के CJI रह चुके मोहम्मद हिदायतुल्ला का उदाहरण देखा जाना चाहिए। उन्होंने रिटायरमेंट के 9 साल बाद देश का उप राष्ट्रपति बनना स्वीकार किया। उन्होंने रिटायरनमेंट के तुरंत बाद कोई राजनीतिक पद लेने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था।