पांच दशक तक सांविधिक तौर पर मौत की सजा को बरकरार रखने की हिमायत करने के बाद सोमवार कोविधि आयोग ने सरकार से सिफारिश की है आतंकवाद से जुड़े अपराध और देश के खिलाफ जंग छेड़ने के जुर्म के लिए ही फांसी की सजा दी जाए।
इस बाबत सरकार को यह रिपोर्ट विधि आयोग के अध्यक्ष और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने पेश की है। आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा कि मृत्युदंड से अपराध निवारण के लिए कोई दंडात्मक लक्ष्य नहीं प्राप्त होता। आयोग का कहना है कि यह चिंता जताई जाती रही है कि आतंक से जुड़े मामलों, और देश के खिलाफ जंग छेड़ने के अपराध में मृत्युदंड खत्म करने से राष्ट्र की सुरक्षा पर असर पड़ेगा।
हालांकि विधि और न्याय मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्य- विधि सचिव पीके मल्होत्रा और विधायी सचिव संजय सिंह सहित आयोग के तीन सदस्यों ने मृत्युदंड खत्म करने की सिफारिश पर असहमति जताई है। विधि आयोग सदस्य और दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश उषा मेहरा ने भी सिफारिश पर असहमति जताई है।
केंद्रीय विधायी सचिव संजय सिंह ने कहा कि आयोग को कोई ऐसी सिफारिश नहीं करनी चाहिए जो देश को अपनी संप्रभुता और अंखडता के हित में कानून बनाने से रोके। न्यायममूर्ति शाह से यह पूछने पर कि दो सरकारी मनोनीत सदस्यों के असंतोष से इस मामले में सरकार के फैसले पर असर पड़ेगा, उन्होंने कहा कि यह रपट फौरन अमल के लिए नहीं दी गई है। इस पर चर्चा हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार, विधि आयोग ने सोमवार को बहुमत से आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में तेजी से मौत की सजा को खत्म करने की सिफारिश की। आयोग ने इस तथ्य पर गौर किया कि मृत्यदंड दंडात्मक लक्ष्य की पूर्ति नहीं करता है। उसकी तुलना में आजीवन करावास ज्यादा कारगर है। नौ सदस्यीय विधि आयोग की सिफारिश हालांकि सर्वसम्मत नहीं है। तीन सदस्यों ने मौत की सजा को बरकरार रखने का समर्थन किया।
अपनी अंतिम रिपोर्ट में 20 वें विधि आयोग ने कहा कि इस बात पर चर्चा करने की आवश्यकता है कि कैसे बेहद निकट भविष्य में यथाशीघ्र सभी क्षेत्रों में मौत की सजा को खत्म किया जाए। विधि आयोग ने मौत की सजा को समाप्त करने के लिए किसी एक मॉडल की सिफारिश करने से इनकार किया। उसने कहा, ‘कई विकल्प हैं, रोक से लेकर पूरी तरह समाप्त करने वाले विधेयक तक। विधि आयोग मौत की सजा को समाप्त करने में किसी खास नजरिए के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने की इच्छा नहीं रखता है। उसका सिर्फ इतना कहना है कि इसे खत्म करने का तरीका तेजी से और अपरिवर्तनीय हो। यह पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य हासिल करने के बुनियादी मूल्य के अनुरूप होना चाहिए।
आतंक के मामलों और देश के खिलाफ जंग छेड़ने के दोषियों के लिए मौत की सजा का समर्थन करते हुए ‘द डेथ पेनाल्टी’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंक से जुड़े मामलों को अन्य अपराधों से अलग तरीके से बरताव करने का कोई वैध दंडात्मक औचित्य नहीं है। लेकिन आतंक से जुड़े अपराधों और देश के खिलाफ जंग छेड़ने जैसे अपराधों के लिए मौत की सजा समाप्त करने से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होगी।
आयोग ने दोषियों को मौत की सजा देने में ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ सिद्धांत पर भी सवाल किया। रिपोर्ट में कहा गया है, कई लंबी और विस्तृत चर्चा के बाद विधि आयोग की राय है कि मौत की सजा ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ के सीमित माहौल के भीतर भी संवैधानिक तौर पर टिकने लायक नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत की सजा को लगातार दिया जाना बेहद कठिन संवैधानिक सवाल खड़े करता है। ये अन्याय, त्रुटि के साथ-साथ गरीबों की दुर्दशा से जुड़े सवाल हैं।
तीन पूर्णकालिक सदस्यों में से एक न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) उषा मेहरा और दो पदेन सदस्यों पीके मल्होत्रा और संजय सिंह ने मौत की सजा समाप्त करने पर असहमति जताई है। विधि आयोग में एक अध्यक्ष, तीन पूर्णकालिक सदस्य, सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले दो पदेन सदस्य और तीन अंशकालिक सदस्य होते हैं।
असहमति के स्वर भी
* विधि सचिव पीके मल्होत्रा, विधायी सचिव संजय सिंह और विधि आयोग सदस्य और दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश उषा मेहरा ने सिफारिश पर असहमति जताई है।
* संजय सिंह ने कहा कि आयोग को कोई ऐसी सिफारिश नहीं करनी चाहिए जो देश को अपनी संप्रभुता और अंखडता के हित में कानून बनाने से रोके।