बिहार विधानसभा के इस चुनाव पर पूरे देश की नजर है। नरेंद्र मोदी की अगुआई वाला एनडीए जहां ‘परिवर्तन’ की बात कह कर वोट मांग रहा है, वहीं नीतीश कुमार वोटर्स को बता रहे हैं कि उनके राज में बिहार कहां से कहां पहुंच गया, यह तो देखें। भाजपा का कहना है कि आपने लालू-नीतीश को 25 साल दिए, अब परिवर्तन का वक्त आ गया है।
नीतीश और विकास करने का निश्चय व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन सीवान में न भाजपा है और न नीतीश। सीवान जिले के रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां आज भी शहाबुद्दीन ही चुनाव की दिशा तय करने की हैसियत में लगते हैं।
12 साल हो गए, जब शहाबुद्दीन जेल गए थे। 2003 में। आठ केस में दोषी ठहराए जाने और एक साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा पाने के बाद राजद के पूर्व सांसद को जेल जाना पड़ा था। लेकिन उनका रुतबा आज भी कायम है। सीवान जिले में वह आज भी मुस्लिम मतों के इकलौते मालिक माने जाते हैं। ‘साहेब’ का फरमान आज भी इस इलाके में कानून से बढ़ कर माना जाता है। जमीन अधिग्रहण से लेकर डॉक्टर की फीस तक उनके आदेश से तय होने की बात यहां आम है।
वर्ष 2009 से ही लगभग हर नगरपालिका से लेकर सासंद तक के चुनाव में शहाबुद्दीन के उम्मीदवार की हार होती रही है। हारने वालों में उनकी पत्नी भी रही हैं। फिर भी इस विधानसभा चुनाव में सीवान के ‘साहेब’ यानी शहाबुद्दीन केंद्र में हैं। इस चुनाव में नीतीश खेमा एक तरह से शहाबुद्दीन के पाले से ही जुड़ा है, तो भाजपा उम्मीदवार का संबंध भी शहाबुद्दीन से होने के चलते वह इस चुनाव के केंद्र में आ गए हैं। असल में नीतीश भले ही महागठबंधन के नेता हैं, लेकिन सीवान में महागठबंधन की चुनावी राजनीति जेल में बैठे शहाबुद्दीन के जरिए ही संचालित हो रही है। रघुनाथपुर से महागठबंधन ने हरिशंकर यादव (आरजेडी) को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन, माना जाता है कि यादव शहाबुद्दीन की ही पसंद हैं।
सीवान में अगर नीतीश बौने साबित हो रहे हैं तो भाजपा भी एक तरह से शहाबुद्दीन की छत्रछाया में ही चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने रघुनाथपुर से मनोज सिंह को टिकट दिया है। सिंह को लोग यहां शहाबुद्दीन का पुराना ‘शूटर’ बताते हैं। भाजपा में भी उनके विरोधी खुल कर यह जानकारी लोगों के साथ साझा करते हैं।
सीवान में राजनीतिक चर्चा का विषय क्या है, इसका अंदाज लगाने के लिए रघुनाथपुर के दोनों प्रमुख उम्मीदवार अपने और एक-दूसरे के बारे में क्या कहते हैं, यह पढ़िए:
रघुनाथपुर के निखटी खुर्द गांव में जनसंपर्क के दौरान हमने भाजपा उम्मीदवार मनोज सिंह से बात की। उनकी कही गई बातों के कुछ अंश ये हैं-
– मैं कह नहीं सकता कि आर.के. सिंह (आरा से भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय कैबिनेट सचिव) ने मेरी उम्मीदवारी का विरोध क्यों किया था। पांच साल तक जो मेरी पार्टी से विधायक रहे (विक्रम कुंवर) उन्होंने केवल पैसा कमाने पर ध्यान दिया। नतीजतन उनकी लोकप्रियता जाती रही। इस चुनाव से पहले पार्टी ने सर्वे किया और मुझे टिकट देने का फैसला किया। मुझ पर टिकट खरीदने का आरोप लगाया गया। आपको आर.के. सिंह से पूछना चाहिए कि क्या 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने खुद का टिकट खरीदा था? यहां बता दें कि विक्रम कुंवर की जगह मनोज सिंह को टिकट देने का आर.के. सिंह ने खुले आम विरोध किया था और बयान दिया था कि पार्टी में टिकट बेचा जा रहा है। विक्रम कुंवर भी आरोप लगाते रहे हैं कि मनोज सिंह ने ढाई करोड़ रुपए में भाजपा का टिकट खरीदा है।
– आरजेडी में जो मेरे प्रतिद्वंद्वी हैं, वह कोई लड़ाकू योद्धा नहीं हैं। उनकी उम्र 72-75 साल हो गई है। उन्हें इसलिए टिकट दे दिया गया है क्योंकि वह शहाबुद्दीन साहेब के कैंडिडेट हैं। 1990 (जब शहाबुद्दीन पहली बार विधायक बने) से 2009 (जब शहाबुद्दीन को कोर्ट ने चुनाव लड़ने से रोक दिया) तक यहां कत्ल-ए-आम हुआ। नरसंहार हुआ। अनेक यादव मार डाले गए। लेकिन लालू-राबड़ी यहां तभी आए जब एक मुस्लिम की हत्या हुई। अगर उन्हें लगता है कि वे अब भी एम-वाई (मुस्लिम-यादव) वोट हासिल कर सकते हैं, तो यह उनकी गलतफहमी है। लोग यादवों का कत्ल-ए-आम भूले नहीं हैं। पाकिस्तान ने हथियार दिए। वह (शहाबुद्दीन) आईएसआई एजेंट है। पिछले साल भाजपा सांसद के प्रवक्ता श्रीकांत भारती को उत्तर प्रदेश के भाड़े के हत्यारों ने मार डाला। कुछ ही महीने पहले एसिड हमले के प्रत्यक्षदर्शी राजीव रोशन की जान ले ली गई।
– मैं भी उसी गांव का हूं, जहां के शहाबुद्दीन हैं। मैं अपने साथ तीन बंदूकधारी रखता हूं, क्योंकि वह कभी भी मेरी हत्या करवा सकता है। उसके पास अपराधियों की फौज है। देश भर के अपराधी उसके पास आते हैं।
– मैं शहाबुद्दीन के साथ था। हमने पढ़ाई भी साथ ही की है। मैं कॉमर्स पढ़ता था और वह आर्ट्स का छात्र था। मैंने उसे विधायक बनने में मदद की। उसके बाद एक घटना घटी। शहाबुद्दीन का शूटर रियाजुद्दीन मारा गया। वह मेरे ही गांव का था। चंद्रशेखर (आइसा-माले कार्यकर्ता और जेएनयू का छात्र नेता) को उसी ने मारा था। शहाबुद्दीन को लगा कि रियाजुद्दीन को मैंने मारा है। इसके बाद ही हम दोनों के बीच मतभेद हो गए। साल 2005 में उसने मेरे भाई का कत्ल करवा दिया। उन दिनों वह लोकसभा की कार्यवाही में शामिल होने के लिए 10 दिन की बेल पर जेल से बाहर आया था।
– मेरे विरोधी कहते हैं कि मैं शहाबद्दीन का शूटर था। पर मुझे तो शूट करना आता ही नहीं। जो आदमी मेरे बारे में ऐसा बोलता है, सिटिंग बीजेपी एमएलए विक्रम कुंवर, जिसे इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया, वह खुद लालू प्रसाद के मंत्रिमंडल में शहाबुद्दीन कोटा से मंत्री बना था। बाद में भाजपा विधायक के तौर पर भी उन्होंने शहाबुद्दीन के लोगों की मदद की, उन्हें टेंडर दिलवाए। सब कुछ मुस्लिम वोट की खातिर किया।
– शहाबुद्दीन का आदमी हर गांव में है। वे अभी भी लगातार उनके संपर्क में रहते हैं। वे यह कह कर विरोधियों को धमकाते भी हैं कि साहेब को बता देंगे। हमें सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा चाहिए। पर इस चुनाव में सीवान का मुख्य मुद्दा सुरक्षा है। हम जिंदा रहेंगे, तब ही न ये सब चाहिए।
महागठबंधन की ओर से आरजेडी के टिकट पर लड़ रहे हरिशंकर यादव से भी जब हमने मुलाकात की तो वह हसनपुरवा गांव में जनसंपर्क कर रहे थे। उन्होंने क्या कहा, पढ़िए-
– मनोज सिंह ने अंतिम क्षणों में ढाई करोड़ रुपए देकर टिकट खरीदा है। महागठबंधन ने लालू जी, नीतीश जी और शहाबुद्दीन साहेब द्वारा सर्वेे करने के बाद मुझे टिकट दिया है। सीवान में आरजेडी से टिकट किसे मिलेगा, यह शहाबुद्दीन साहेब ही तय करते हैं। लालू जी उनकी सलाह लेते हैं।
– साहेब पहले विधायक थे। फिर सांसद बने। इसलिए इलाके के लोगों ने तय किया कि उनकी पत्नी हीना शहाब (जो दो बार एमपी का चुनाव हार गई हैं) को विधायक बनाया जाए। लेकिन इस बार उन्होंने मुझे टिकट दिया।
– मैं 30 साल मुखिया रहा हूं। चूंकि अब वह सीट महिलाओं के लिए सुरक्षित हो गई, इसलिए मेरी पत्नी मुखिया हैं। मैं पूर्व मुखिया हूं।
– टिकट बंटवारे से पहले पार्टी में मंथन हुआ। पार्टी के कार्यकर्ता जेल जाकर साहेब से मिलते थे। अब वे भागलपुर (जहां चुनाव आयोग के आदेश पर शहाबुद्दीन को स्थानांतरित किया गया है) जाकर जेल में उनसे मिलते हैं। दो लोग हर सोमवार उनसे मिलने जाते हैं। मैं उनसे नहीं मिला हूं। उन्होंने मुझे मना कर दिया था। कहा था कि आपको क्षेत्र में रहना चाहिए।
– मनोज सिंह शहाबुद्दीन साहेब के साथ रहते थे। उन पर कई केस दर्ज हैं। जब सिंह कोऑपरेटिव चेयरमैन हुआ करते थे तब एक खाद माफिया और जमीन माफिया का मर्डर करने और मर्डर में शामिल होने का आरोप भी उन पर लगा है।
– दूसरे लोग शहाबुद्दीन साहेब के नाम पर क्या-क्या कर रहे थे, इस बारे में उनको जानकारी नहीं थी। जब उनको पता चला तो उन्होंने मनोज सिंह को बाहर फेंक दिया। साहेब को झूठे केस में फंसाया गया है। मनोज सिंह भी इस साजिश में शामिल रहे हैं, क्योंकि साहेब ने उन्हें अपने गुट से निकाल बाहर किया था।
– इस चुनाव में विकास मुद्दा है। खेती में बेहतरी चाहिए। सड़क, बिजली चाहिए। लेकिन मुख्य मुद्दा अमन-चैन है। हम जानते हैं कि भाजपा-आरएसएस ने किस तरह तनाव बढ़ाया है।
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