वैज्ञानिकों ने एनएच-7 राजमार्ग पर 247 किलोमीटर लंबे मार्ग के लिए प्रति किलोमीटर 1.25 बार हिमस्खलन आने का जोखिम दर्ज किया है। यह अध्ययन भूस्खलनों के व्यवस्थागत सर्वेक्षण और सांख्यिकीय माडल पर आधारित है जिसका मकसद उच्च स्थानिक ‘रेजोल्यूशन’ में एनएच-7 पर भूस्खलन की संवेदनशीलता का पता लगाना है।

सितंबर और अक्तूबर 2022 में अत्यधिक बारिश के बाद इस ‘कारिडोर’ पर 300 से अधिक भूस्खलनों की सूची पर आधारित अध्ययन में बड़ी घटनाओं को नियंत्रित करने वाले मुख्य कारकों की पहचान की गई है। पोट्सडैम विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान और भूगोल संस्थान के लेखक जर्गन मे ने कहा, ‘सबसे अधिक भूस्खलन लिथोजोन 2 के भीतर ऋषिकेश और श्रीनगर के बीच तथा लिथोजोन 1 के तहत पिपलकोटी और जोशीमठ के बीच हुआ। लिथोजोन एक जैसे शैल लक्षण की चट्टानें होती हैं। हमने उत्तराखंड के भौगोलिक मानचित्र से शैल लक्षण का पुन:समूह बनाया।’

पंजाब के रोपड़ में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की सहायक प्रोफेसर रीत कमल तिवारी ने कहा, ‘हां, ये चट्टानें भारी बारिश के लिहाज से कमजोर है लेकिन हिमालय के कई हिस्सों में ऐसे ही तत्व हैं इसलिए ऐसे क्षेत्रों को नजरअंदाज करना मुश्किल है। हालांकि, स्थिरता के उचित उपायों के जरिए ऐसे ढलान सुरक्षित बनाए जा सकते हैं।’

अध्ययन में कहा गया है कि टेक्टोनिक गतिविधि ने कम घर्षण के कोणों के साथ तीखे मोड़ बनाकर चट्टान की ताकत में कमी लाने में योगदान दिया है। इसमें कहा गया है कि वनस्पतियों को हटाकर और मिट्टी तथा चट्टानों की खुदाई करके, संभवत: अस्थिर ढलान बनाकर सड़कों को चौड़ा किया गया जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ा है। तिवारी ने कहा, ‘अगर भूमि का इस्तेमाल मौजूदा प्रवृत्ति के अनुसार बदलता रहता है तो हम भविष्य में भूस्खलन में वृद्धि देखेंगे। हमें इन प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।’

उन्होंने कहा, ‘अगर भारी बारिश की घटनाएं जारी रहती है तो हिमालयी क्षेत्र में भविष्य में हम और भूस्खलन देखेंगे।’ अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में नुकसान होने तथा लोगों के हताहत होने की आशंका बढ़ सकती है। इसमें कहा गया है कि सड़क निर्माण और अधिक यातायात से ऐसे लोग अधिक आकर्षित होते हैं जो सड़क किनारे स्थित स्थलों पर नए आर्थिक अवसर तलाशने की कोशिश करेंगे। ये स्थल भूस्खलन के लिहाज से अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि निर्माण के कारण अक्सर वनस्पतियों को हटाया जाता है तथा ढलान को अस्थिर किया जाता है। अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि भूस्खलनों के लिए ढलाव कोण, बारिश और शैल लक्षण मुख्य कारक हैं।