बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की कवायद का नतीजा सोमवार को सामने आ गया। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने घोषणा की कि नीतीश कुमार जद (एकी)- राजद गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। राजद नेता लालू प्रसाद ने इस पर यह कह कर सहमति की मुहर लगाई कि वे सांप्रदायिकता के नाग को कुचलने के लिए हर तरह का जहर पीने को तैयार हैं।

इस घोषणा के साथ ही राज्य में विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देने के लिए जद (एकी) और राजद गठबंधन के सामने खड़ी एक बड़ी बाधा का समाधान निकल गया है। मुलायम ने कहा- मैं लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के बीच एकजुटता को लेकर काफी खुश हूं। कुमार बिहार में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। लालू जी ने नीतीश कुमार का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया है। लालूजी ने कहा है कि वे प्रचार करेंगे। उन्होंने कहा कि कोई मतभेद नहीं है और हम कोई मतभेद पैदा नहीं होने देंगे।

सपा प्रमुख ने कहा कि वे दोनों सांप्रदायिक ताकतों को उखाड़ फेंकने के लिए मिलकर लड़ेंगे। दोनों दलों के गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ने पर सहमत होने के एक दिन बाद सोमवार को मुलायम सिंह यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में यह घोषणा की जिसमें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और जद (एकी) प्रमुख शरद यादव ने हिस्सा लिया। लालू ने राज्य में इस शीर्ष पद के लिए नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव किया।

इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए लालू प्रसाद ने कहा कि वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ सकते और उनकी पार्टी या परिवार से मुख्यमंत्री पद का कोई दावेदार नहीं है। उन्होंने कहा- हमारे बीच (उनके और नीतीश) कोई मतभेद नहीं हैं। इस बयान के साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किए जाने को लेकर कुछ राजद नेताओं के असंतोष प्रकट करने की खबरों को ज्यादा महत्त्व नहीं देने का प्रयास किया।

एक समय लालू और नीतीश एक दूसरे के धुर विरोधी रहे। लेकिन अब जनता परिवार के लिए उनके करीब आने को मजबूरी के तौर पर देखा जा रहा है। दोनों दलों को पिछले साल लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था और भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने 40 में से 31 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।

लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर मजबूरी में स्वीकार किया। यह मजबूरी भाजपा को सबसे बड़े खतरे के रूप में देखते हुए उससे निपटने की मानी जा रही है, जिसके लिए जनता परिवार काफी समय से कोशिश में लगा हुआ था। भाजपा के मुकाबले नीतीश को चुनने की उनकी मजबूरी उनके उस बयान से भी झलकती है, जिसमें लालू ने कहा कि मैं हर तरह का जहर पीने को तैयार हूं। उन्होंने कहा- लेकिन हम सांप्रदायिकता के नाग को कुचल देंगे। हम मिलकर उन्हें समाप्त कर देंगे। हम भाजपा को बिहार से उखाड़ फेकेंगे।

भाजपा की ओर से उन पर जद (एकी) से समझौता नहीं करने के दबाव की अटकलों को खारिज करते हुए लालू ने कहा कि राजनीति में उनकी पहचान सांप्रदायिक ताकतों का दमन करने के कारण है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय की ताकतों को बांटकर सांप्रदायिक ताकतें दिल्ली की गद्दी पर बैठी हैं। उल्लेखनीय है कि लालू ने अयोध्या आंदोलन के चरम के दौरान 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। लालू ने कहा कि इस घटना के कारण मंडल बनाम कमंडल की राजनीति शुरू हो गई। उन्होंने कहा कि इसके बाद से वे लगातार भाजपा के निशाने पर रहे हैं।

उन्होंने कहा- मैं और नीतीश एक ही परिवार से हैं। हमारे अपने अपने संघर्ष हैं और मतभेद हैं और हमने एक दूसरे पर आरोप भी लगाए हैं। इसके बावजूद जब बिहार में राज्यसभा चुनाव के समय जद (एकी) बंटा हुआ था तब मैंने नीतीश कुमार से बात की थी ताकि भाजपा को रोका जा सके। मैंने इन ताकतों को रोकने के लिए उनका समर्थन भी किया। लालू ने कहा कि कुछ लोगों के मन में भ्रम है। मैं सभी तरह के भ्रमों को दूर करना चाहता हूं। लालू चुनाव नहीं लड़ सकता है। मैं उम्मीदवार (सीएम पद का) नहीं हूं। मेरे परिवार से कोई नहीं, मेरी पत्नी या मेरे बच्चों की इसमें रुचि नहीं है। बच्चे अभी काफी युवा हैं। मेरी पार्टी की ओर से कोई उम्मीदवार नहीं है और न ही मेरे परिवार से ही।

राजद प्रमुख ने कहा- लेकिन सांप्रदायिक ताकतें मीडिया के माध्यम से बोलती हैं। सभी तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। वे कह रहे हैं कि हम एक साथ नहीं आ सकते। मैं मुलायम जी का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने घोषणा की कि नीतीश हमारे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।