अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के बैनर तले दशनामी नागा साधुओं ने फैसला लिया है कि वे जम्मू-कश्मीर में जाकर उन हिंदू मठ मंदिरों की रक्षा करेंगे, जिनमें आतंकवाद के कारण पूजा-अर्चना नहीं हो रही है और अखाड़ों-आश्रमों और हिंदुओं की जिन संपत्तियों पर आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया है, उन्हें वे आतंकवादियों के कब्जे से छुड़ाएंगे। और अब लाखों नागा संन्यासियों का हुजूम कश्मीर की ओर कूच करेगा।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष, श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट हरिद्वार के अध्यक्ष तथा पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने दशनामी नागा साधुओं के अखाड़ों के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि कश्मीर में हिंदू मठ और मंदिरों की रक्षा के लिए नागा साधुओं ने कश्मीर कूच का फैसला किया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर आदि जगतगुरु शंकराचार्य की तपस्थली रहा है। और हम नागा साधुओं का कर्तव्य है कि हम कश्मीर में हिंदू मठ मंदिरों की रक्षा करें।

जम्मू-कश्मीर की ओर कूच करने का फैसला

उन्होंने कहा कि 2500 साल पहले सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने दशनाम नागा संन्यासी परंपरा शुरू की थी और नागा साधुओं के साथ अखाड़े स्थापित किए। इनमें श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा, पंचायती श्री महानिर्वाणी अखाड़ा, पंचायती श्री आनंद अखाड़ा, पंचायती श्री आवाहन अखाड़ा, श्री शंभू अटल अखाड़ा एवं श्री पंच अग्नि अखाड़ा शामिल है।

हरिद्वार के उपनगर कनखल स्थित जगतगुरु आश्रम की स्थापना के अवसर पर महंत रविंद्र पुरी महाराज की अध्यक्षता में संत-महंतों ने शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज, जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, श्री निरंजनी पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज की मौजूदगी में बैठक की। इसमें दशनाम नागा संन्यासियों ने जम्मू-कश्मीर की ओर कूच करने का फैसला किया है।

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श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में कश्मीर से धारा 370 हटाई गई ताकि वहां पर पूरे देश से लोग जाएं और वहां पर रहे और बसे ताकि वहां पर हिंदू भाइयों की रक्षा की जा सके और कश्मीर में शांति स्थापित हो सके। उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से अपील की है कि नागा संन्यासी जब जम्मू-कश्मीर की ओर कूच करेंगे तो उन्हें सरकार की ओर से सहयोग दिया जाए और साथ ही दशनामी संन्यासी अखाड़ों की जो मठ-मदिर बंद पड़े हैं, उन्हें खुलवाने में नागा साधुओं की मदद की जाए। साधु-संतों ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मिलकर कश्मीरी पंडितों पर हुए हमले के दौरान अखाड़ों की संपत्तियों पर किए गए कब्जे को मुक्त कराने की मांग करेंगे।

कश्मीर में फिर से स्थापित होगा सनातन धर्म

रविंद्र पुरी महाराज ने कहा कि बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य के संयोजन में लिया गया निर्णय जल्द पूर्ण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जूना पीठाधीश्वर की मौजूदगी में यह निर्णय लिया गया है कि जम्मू-कश्मीर के जितने भी हिंदू भाई बहनें आतंकवाद के समय कश्मीर से निकलकर दूसरे प्रदेशों में बस गए थे,उन्हें फिर से कश्मीर में बसाया जाए। नागा साधु इन विस्थापित कश्मीरी हिंदू भाइयों के साथ खड़े हैं और उनको कश्मीर में फिर से बसाने में पूरी मदद करेंगे।

उन्होंने कहा कि कश्मीर में हिंदू की संख्या अधिक होगी तो वहां पर सनातन धर्म फिर से स्थापित होगा। उन्होंने कहा कि अखाड़े अब अपनी संपत्ति का संरक्षण करते हुए कश्मीर में संत-महंत,आचार्य फिर से दीया-बाती जलाएंगे। जितने मंदिर और मठ हैं वहां पर जब संत पहुंचेंगे तो श्रद्धालु भी पहुंचेंगे। इससे वहां का संतुलन बनेगा। उन्होंने सभी 13 अखाड़ों से आह्वान किया कि वह इस मुहिम में शामिल होकर जम्मू-कश्मीर जाएं। जहां-जहां पर मठ-मंदिर सूने पड़े हुए हैं वहां फिर से हजारों की संख्या में संत भगवा पहनकर सनातन की रक्षा करने की शुरूआत करेंगे।

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निरंजनी पीठाधीश्वर आचार्य महामंडेलश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि है और हरिद्वार गंगा का उद्गम स्थल है। और हम सब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर को लेकर काम करने की अब आवश्यकता है। मठ मंदिर को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। उन्होंने कहा कि श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज इस पूरी मुहिम की अगुआई करेंगे और संत-महंत इसमें उनके साथ चलेंगे। आचार्य महामंडलेश्वर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। कश्मीर में जब संत-महंत अपनी गतिविधियों को बढ़ाएंगे तो निश्चित तौर पर वहां के वातावरण में भी अनुकूलता आएगी।

श्री जगत गुरु आश्रम कनखल की स्थापना दिवस के अवसर पर जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने निरंजनी पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद और रविंद्र पुरी महाराज समेत कई अखाड़ों के संत महंत और महामंडलेश्वर सोमवार को एक साथ दिखे। सभी ने कनखल स्थित आश्रम में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम के संयोजन में पहले हवन यज्ञ में आहूति डाली।

जगद्गुरु आश्रम के परमाध्यक्ष शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने कहा कि संत का प्रथम लक्षण ही समाज की चिंता करना है। अगर संत समाज की चिंता कर रहे हैं तो यह स्वाभाविक है। संत और सामान्य में यही अंतर है। संन्यास अर्थ ही त्याग है। उन्होंने कहा कि संन्यास की परंपरा के अनुसार जो आज संकल्प लिया गया है, उसको पूरा करने के लिए सभी साधु-संत तैयार हैं।