अवनीश कुमार
चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय के एक मौसम वैज्ञानिक का कहना है कि इस बार पूरे भारत में भीषण ठंड पड़ने की संभावना है। इसका मुख्य कारण ‘ला नीना इफेक्ट’ है। प्रशांत महासागर में ‘ला नीना’ की वजह से बदलाव की शुरुआत होती है। इसका असर दुनिया के कई हिस्सों में देखने को मिलता है जो असामान्य से लेकर मौसम में अत्यधिक बदलाव के रूप में दिखाई देता है। लिहाजा भारत में मानूसन की विदाई की बाद लोगों को बहुत जल्द काफी ठंड झेलनी पड़ सकती है।
प्रशांत महासागर का भूगोल
इस पूरे चक्र में प्रशांत महासागर के भूगोल की अहम भूमिका होती है जो अमेरिका के पूर्व से लेकर एशिया और आस्ट्रेलिया तक फैला है। ईएनएसओ प्रशांत महासागर की सतह पर पानी और हवा में असामान्य बदलाव लाता है। इसका असर पूरी दुनिया के वर्षा, तापमान और वायु संचार के स्वरूपों पर पड़ता है। जहां ‘ला नीना’ ईएनएसओ के ठंडे प्रभाव के रूप में देखा जाता है, वहीं ‘अल नीना’ गर्मी लाने वाले प्रभाव के रूप में देखा जाता है।
ये होते हैं प्रभाव
‘ला नीना’ से प्रभावित होने वाले साल में हवा सर्दियों में ज्यादा तेज बहती है। इससे भूमध्य रेखा और उसके पास का पानी सामान्य से ठंडा हो जाता है। इससे महासागर का तापमान पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित कर बदल देता है। भारत में भारी बारिश वाला मानूसन, पेरू और इक्वाडोर में सूखे, आस्ट्रेलिया में भारी बाढ़ और हिंद व पश्चिम प्रशांत महासागर उच्च तापमान की वजह ‘ला नीना’ ही है।
ठंड का प्रकोप अधिक रहेगा
जलवायु परिवर्तन में दिखाई देने वाले दुष्प्रभावों में से एक ‘ला नीना’ प्रभाव है। प्रशांत महासागर में ‘अल नीनो’ की वजह से बदलाव की शुरुआत होती है। इसका असर दुनिया के कई हिस्सों में देखने को मिलता है जो असामान्य से लेकर चरम मौसम के रूप में दिखाई देता है। मौसम विभाग का कहना है कि इस बार कुछ सालों की तुलना में ठंड का प्रकोप ज्यादा होने वाला है। आमतौर पर 15 अक्तूबर तक पूरे भारत से मानसून लौट जाता है, लेकिन इस बार देर हो गई।
चंद्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के मौसम वैज्ञानिक डा एसएन सुनील पांडेय ने बताया कि इसका असर भारत में लगातार कम तापमान के रूप में नहीं होगा, बल्कि बीच-बीच में आने वाली शीत लहर के रूप में होगा। ‘ला नीना’ और ‘अल नीनो’ का असर नौ से 12 महीनों के बीच में होता है। ये हर दो से सात साल में अनियमित रूप से दोबारा आते है। अल नीनो ‘ला नीना’ से ज्यादा बार आता देखा गया है।
सर्दी के मौसम में होता है ला नीना का असर
सीएसए मौसम विज्ञानी के अनुसार भारत में ‘ला नीना’ का असर देश के सर्दी के मौसम पर होता है। इस मौसम में हवाएं उत्तर पूर्व के भू भाग की ओर से बहती है, जिन्हें उच्च वायुमंडल में दक्षिण पश्चिमी जेट का साथ मिलता है। लेकिन अल नीनो के दौरान यह जेट दक्षिण की ओर धकेल दी जाती है। इससे ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ होते हैं जिससे उत्तर पश्चिम भारत में बारिश और बर्फबारी होती है। लेकिन ला नीना उत्तर और दक्षिण में निम्न दबाव का तंत्र बनाता है जिससे साइबेरिया की हवा आती है और शीतलहर और दक्षिण की ओर जाती है।
2020 अप्रैल तक बनी थी ला नीना की स्थिति
पिछली बार ‘ला नीना’ की स्थिति अगस्त-सितंबर 2020 से अप्रैल 2021 तक बनी थी और सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी और सर्दियां भी जल्दी शुरू हो गई थीं। साथ ही साथ कड़ाके की सर्दी भी पड़ी थी। मौसम विभाग के अनुसार ‘ला नीना’ की स्थिति इस साल सितंबर से नवंबर के बीच रहेगी, इससे इस साल की सर्दियों के दौरान कड़ाके की ठंड पड़ेगी।
यह है ला नीना शब्द का मतलब
‘ला नीना’ स्पेनी भाषा का शब्द है। इसका मतलब छोटी बच्ची होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया अल नीनो ‘सदर्न आसिलेशन’ चक्र का हिस्सा होता है जो प्रशांत महासागर में घटित होती है। इसका पूरी दुनिया के मौसम पर असर होता है। इस प्रक्रिया के दूसरे हिस्से को अल नीनो कहते हैं (स्पेनिश भाषा में छोटा बच्चा) जिसका ला नीना के मुकाबले बिलकुल विपरीत असर होता है।