पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में कुड़मियों ने एसटी का दर्जा पाने के लिए पिछले चार सालों में चौथी बार अपना आंदोलन फिर से शुरू कर दिया है। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए तृणमूल कांग्रेस सरकार को निशाना बनाकर किए जा रहे इस नए आंदोलन का चुनावों पर असर पड़ने की संभावना है।

आदिवासी कुड़मी समाज ने कुर्मी समुदाय को ओबीसी से हटाकर एसटी में शामिल करने की मांग की है। इसको लेकर उन्होंने शनिवार को रेल और सड़क जाम करने की अपील की थी। इस अपील का असर झारखंड और पश्चिम बंगाल में देखा गया। वहीं कलकत्ता हाई कोर्ट ने 18 सितंबर को कुड़मियों के विरोध कार्यक्रम को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

यह नया आंदोलन क्यों?

आदिवासी कुड़मी समाज ने झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया। उन्होंने 20 सितंबर से पश्चिम बंगाल के झारग्राम, बांकुरा, पश्चिम मेदिनीपुर और पुरुलिया जिलों में अनिश्चितकालीन रेल और सड़क जाम करने की घोषणा की। इससे पहले भी कुड़मी समुदाय ने 2022 और 2023 में ऐसे आंदोलन किए थे। 2023 में, 5 अप्रैल से 10 अप्रैल तक, उन्होंने एसटी दर्जा और अपनी भाषा ‘कुरमाली’ को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर सड़कों और रेलवे स्टेशनों को जाम कर दिया था। 17 मई 2024 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुड़मी समुदाय के नेताओं से मुलाकात की और उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया।

इस नए आंदोलन के बारे में आदिवासी कुड़मी समाज के प्रदेश युवा अध्यक्ष परिमल महतो ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया , “आज के इस आंदोलन का आह्वान पांच महीने पहले किया गया था। इसमें कुछ भी नया नहीं है और यह 1950 से चल रहे आंदोलन का ही हिस्सा है।” महतो ने कहा कि वे पिछले छह महीनों से राज्य सरकार को पत्र लिख रहे हैं। आदिवासी कुड़मी समाज का दावा है कि 1931 में कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन 1950 में बिना किसी अधिसूचना के उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर कर दिया गया।

झारखंड में, बीजेपी की सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन ने इस आह्वान का समर्थन किया और पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो और पार्टी के अन्य नेता शनिवार को झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में आंदोलन में शामिल हुए। सुदेश महतो रांची जिले के मुरी स्टेशन पर रेल रोको आंदोलन में शामिल हुए।

1950 में अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर कर दिया गया

1931 की जनगणना में कुड़मियों को एसटी के रूप में वर्गीकृत समुदायों में शामिल किया गया था और 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर कर दिया गया था। 2004 में झारखंड सरकार ने सिफारिश की कि समुदाय को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने के बजाय एसटी की लिस्ट में जोड़ा जाए।

कुड़मी एक कृषक समुदाय है। इसकी आबादी पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा के जंगल महल क्षेत्रों या छोटा नागपुर पठार और बिहार के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रित है। 1950 के बाद जब स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जनजाति की सूची तैयार की गई, तो कुड़मियों को उसमें जगह नहीं मिली। कुड़मियों का तर्क है कि ब्रिटिश काल में विभिन्न दस्तावेजों में उन्हें एक जनजाति और भारत के एक आदिवासी समुदाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और वे उस पहचान को बहाल करना चाहते हैं। साथ ही, वे अनुसूचित जनजातियों के धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने का दावा करते हैं।

इसका राजनीतिक प्रभाव क्या होगा?

पश्चिम बंगाल में आदिवासी कुड़मी समाज (AKS) अपने आंदोलन में तृणमूल कांग्रेस सरकार पर निशाना साध रहा है और उस पर कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगा रहा है। परिमल महतो स्वीकार करते हैं कि पश्चिम बंगाल में संगठन तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साध रहा था और इसका आगामी विधानसभा चुनावों पर असर पड़ेगा।

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2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के विश्लेषण से पता चलता है कि झारग्राम, बांकुरा, पश्चिम मेदिनीपुर और पुरुलिया जिलों की 40 विधानसभा सीटों में से टीएमसी और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है। टीएमसी ने 24 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी ने 16। भागमुंडी की एक सीट को छोड़कर, जहां बीजेपी की सहयोगी आजसू पार्टी दूसरे नंबर पर रही, बीजेपी उन सभी सीटों पर दूसरे नंबर पर रही जहां टीएमसी जीती थी। इसी तरह, जॉयपुर की एक सीट को छोड़कर, जहां कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही, टीएमसी उन सभी सीटों पर दूसरे नंबर पर रही जहां बीजेपी जीती थी।

गौरतलब है कि बीजेपी की 16 सीटों पर जीत का औसत अंतर केवल 6053 वोटों का था और ज्यादातर सीटों पर उसे मामूली अंतर से ही जीत मिली। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने 24 सीटें 17477 वोटों के बड़े औसत अंतर से जीतीं। कुड़मी वोटर्स का वोटिंग पैटर्न कम अंतर वाली ऐसी सीटों पर असर डाल सकता है। पश्चिम बंगाल में लगभग 50 लाख की आबादी के साथ, कुर्मी झारग्राम, बांकुरा, पश्चिम मेदिनीपुर और पुरुलिया जिलों की लगभग 30 विधानसभा सीटों पर अपना दबदबा होने का दावा करते हैं।

ये भी एक राजनीतिक पहलू

एक और राजनीतिक पहलू यह है कि राज्य के अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं। इस पहलू के चलते, अगर कुर्मी अनुसूचित जनजाति के दर्जे के मुद्दे पर वोट देते हैं, तो अन्य अनुसूचित जनजाति वर्ग अपनी मांगों का समर्थन करने वाली पार्टी के खिलाफ वोट कर सकते हैं।

झारखंड में, पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और कोल्हान क्षेत्रों में कुड़मी अच्छी संख्या में हैं। बिहार में, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जिलों में उनकी अच्छी खासी मौजूदगी है और झारखंड के ओबीसी कुड़मियों से उनके पारिवारिक संबंध हैं। बिहार के एक आरजेडी नेता ने बताया कि उनमें से 80 प्रतिशत खेती पर निर्भर हैं, जबकि लगभग 20 प्रतिशत आबादी नौकरी और व्यवसाय में लगी हुई है।