राजस्थान का कोटा सुसाइड का एक नया अड्डा बन चुका है। देश के कई राज्यों से बच्चे यहां कोचिंग लेने आते हैं, आंखों में डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने होते हैं, लेकिन परिवार की उम्मीद, कोचिंग सेंटर्स की भारी-भरकम फीस और कई मामलों में अकेलेपन का दर्द छात्रों को अंदर तक तोड़ देता है, इतना ज्यादा कि वो आत्महत्या तक कर लेते हैं। इस साल अगस्त में अब तक 23 छात्रों ने सुसाइड कर लिया है। अकेले कुंडली में 8 छात्रों ने अपनी जान दे दी है।

भविष्य बनाने आ रहे छात्र क्या हो रहे परेशान?

कोटा में इस समय कुल 4000 के करीब हॉस्टल हैं, 40 हजार से ज्यादा पीजी संचालित हो रहे हैं और दो लाख के करीब छात्र अपने घर से दूर यहां भविष्य बनाने लगातार आ रहे हैं। लेकिन देश का ये भविष्य इस समय परेशान चल रहा है, आंखों में सपने होने के बावजूद मायूसी उन्हें जकड़ रही है। सभी की अपनी परेशानी है, अपना दर्द है, लेकिन सुसाइड करना तो उसका विकल्प नहीं? लेकिन ऐसा हो रहा है, कई सालों से लगातार, तमाम प्रयास फेल नजर आ रहे हैं। कोटा पुलिस का अपना एक आंकड़ा इस खतरनाक ट्रेंड की पुष्टि करता है।

आंकड़े दे रहे गवाही, क्या कदम उठाए गए?

साल 2015 में 17 छात्रों ने सुसाइड किया, 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4 और 2022 में 15। अब ये आंकड़ा बताता है कि पिछले कुछ सालों में एक बार फिर सुसाइड केस में वृद्धि देखने को मिल गई है। पुलिस द्वारा एक टीम का गठन किया गया है, वो लगातार जमीन पर जा छात्रों से बात कर रही है, उनकी परेशानियों को सुन रही है, हेल्पलाइन नंबर के जरिए भी मदद पहुंचाई जा रही है। लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद भी आत्महत्या हो रही हैं, छात्र अपना जीवन खत्म कर रहे हैं।

बच्चों के दर्द का क्या कारण, पुलिस जांच में पता चला

अब स्थानीय पुलिस अपनी जांच के बाद कुछ कारणों के साथ सामने आई है। उनके मुताबिक कोटा में देश की दूसरी किसी यूनिवर्सिटी जैसे हालात नहीं हैं। यहां भी छात्र परिवार की ज्यादा उम्मीदों से परेशान हैं, डिप्रेशन का शिकार हैं और कई बार पढ़ाई में पीछे छूटने का डर भी उन्हें सताता रहता है। इसके ऊपर घर की याद आना और रिलेशनशिप में चल रही दिक्कतें भी उनके तनाव को बढ़ाने का काम करती हैं। बताया जा रहा है कि पुलिस को रिफंड, सिक्योरिटी डिपोजिट जैसी शिकायतों को लेकर भी कॉल आते रहते हैं।

कैसे सुधरेंगे हालात, कब थमेंगे सुसाइड?

कोटा सिटी के एसपी शरद चौधरी कहते हैं कि राजस्थान में वैसे तो सिकार में भी छात्र कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने के लिए आते हैं, लेकिन वहां पढ़ रहे छात्र ज्यादातर राजस्थान के लोकल ही होते हैं। वहीं कोटा में यूपी और बिहार से कई बच्चे आ रहे हैं। अभी के लिए कुछ पहलुओं पर सुधार की बात की जा रही है। सबसे जरूरी ये है कि छात्र लगातार अपनी क्लास अटेंड करें। ये अपने आप में एक इंडिकेटर है कि सबकुछ ठीक चल रहा है। अगर बच्चा क्लास में आना बंद कर दे, ये समझा जा सकता है कि वो किसी दिक्कत से जूझ रहा है।

एसपी शरद चौधरी तो ये भी मानते हैं कि अब बाइमेट्रिक से अटेंडेंस का कोई मतलब नहीं है। छात्र किसी दूसरे बच्चे का आराम से कार्ड स्वाइप कर सकते हैं, ऐसे में कौन आ रहा है कौन नहीं आ रहा है, ये पता नहीं चल सकता। उनकी तरफ से फेस रिकग्निशन को ज्यादा बेहतर विकल्प माना जा रहा है।