कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर के मामले को लेकर डॉक्टरों का प्रदर्शन जारी है। इस बीच प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक विशेष कानून लाने की मांग की है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ अधिकारियों ने संकेत दिया कि इससे वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अधिकारियों ने कहा कि प्रभावी सुरक्षा उपायों पर गौर करने के लिए एक पैनल का गठन किया जा रहा है। इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने केंद्र सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में सुरक्षा तैनाती में 25% की बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी। इसमें मार्शलों की तैनाती की भी अनुमति होगी।
अध्यादेश लाना डॉक्टरों का कोई समाधान नहीं- वरिष्ठ अधिकारी
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अध्यादेश लाना डॉक्टरों के साथ होने वाली हिंसा का कोई समाधान नहीं है। बंगाल सहित 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (कुल 36 में से) के पास स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए किसी न किसी प्रकार का कानून है। फिर भी हम हिंसा की घटनाओं के बारे में सुनते हैं। कहीं भी बलात्कार और हत्या को देश के कानून द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए। डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक कानून केवल डॉक्टरों और मरीजों और उनके परिवार के सदस्यों के बीच की घटनाओं को कवर कर सकता है। इसमें सब कुछ शामिल नहीं हो सकता है। बेहतर सुरक्षा समय की मांग है और उठाए जाने वाले कदमों पर गौर करने के लिए एक पैनल का गठन किया जा रहा है।”
यह पूछे जाने पर कि क्या पैनल प्रदर्शनकारी डॉक्टरों की मांग पर विचार करेगा, इसपर अधिकारी ने कहा कि वे सभी संभावित उपायों पर विचार करेंगे। पैनल में स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और राज्यों के सदस्य होंगे।
काम पर लौटे डॉक्टर
एक अधिकारी ने प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “हम राज्यों को साथ लाना चाहते हैं क्योंकि स्वास्थ्य आख़िरकार राज्य का विषय है। यदि राज्य इसका पालन नहीं करते हैं या नहीं कर सकते हैं तो केंद्र द्वारा सलाह जारी करने का कोई मतलब नहीं है। हम लघु, मध्यम और दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए सभी को एक साथ लाना चाहते हैं।”
बता दें कि 2019 में एक विधेयक का ड्राफ्ट तैयार किया गया था, लेकिन इसे संसद में कभी पेश नहीं किया गया था। 2019 के ड्राफ्ट में कड़े मानदंडों का प्रस्ताव किया गया था, जिसमें ड्यूटी पर डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के लिए 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा थी। महामारी के दौरान केंद्र ने महामारी रोग अधिनियम में बदलाव लाते हुए एक अध्यादेश भी जारी किया था, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया था, जिसमें सात साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।