झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और बीजेपी हिंदी पट्टी का एक और राज्य गंवा बैठी है। चुनाव से पहले सीएम रघुवर दास ने अबकी बार 65 पार का नारा दिया था, लेकिन पार्टी इसकी आधी सीटों तक भी नहीं पहुंच पाई। ऐसा तब हुआ, जब राज्य में पहली बार पूरे 5 साल तक एक ही सरकार रही। इसके बावजूद भगवा पार्टी की वापसी नहीं हुई। आइए, 5 पॉइंट्स में जानते हैं कि बीजेपी की हार के क्या-क्या कारण रहे?
गैर आदिवासी सीएम फेस: 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 37 सीटें जीती थीं। रघुवर दास ने 5 साल तक सीएम रहे, लेकिन अपने दम पर बीजेपी को दोबारा सत्ता में नहीं ला सके। ऐसा तब हुआ, जब उन्हें केंद्र की मजबूत सरकार का साथ हासिल था। इसकी पहली वजह मानी जा रही है कि झारखंड की जनता ने गैर आदिवासी चेहरे को नकार दिया। लोगों को लगने लगा कि गैर आदिवासी सीएम झारखंड के आदिवासियों के लिए कल्याण की बात नहीं कर सकता है।
आदिवासियों का गुस्सा: झारखंड में पिछले 5 साल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनके कारण लोग सीएम से नाराज हो गए थे। दरअसल, 15 नवंबर 2018 को झारखंड के स्थापना दिवस पर प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षकों पर लाठीचार्ज हुआ था, जिसमें कई टीचर घायल हो गए थे। वहीं, एक शिक्षक की मौत भी हो गई थी। इस घटना से रघुवर दास की छवि को काफी नुकसान हुआ। बता दें कि झारखंड में करीब 70 से 80 हजार पारा शिक्षक हैं। इसी साल सितंबर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। वहीं, हेमंत सोरेन ने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार इस मुद्दे को उठाया।
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केंद्र के मुद्दों पर राज्य के मुद्दों का हावी होना: सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की बहाली को लेकर पूरे 5 साल तक झारखंड में हंगामा होता रहा। राज्य सरकार ने हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति की तो दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को नौकरी मिलने का मामला विपक्ष ने जमकर उछाला। इस मुद्दे को लेकर राज्य के युवाओं में काफी नाराजगी रही। झारखंड में पिछले पांच साल में राज्य लोकसेवा आयोग की एक भी परीक्षा नहीं हुई। वहीं, जल-जंगल और जमीन के मुद्दे पर रघुवर सरकार लोगों को अपने पाले में नहीं खींच पाई।
आजसू जैसे छोटे दलों से गठबंधन न करना: झारखंड में बीजेपी और आजसू 5 साल तक सत्ता में रहे, लेकिन चुनाव लड़ते वक्त उनके रास्ते अलग हो गए। पिछले चुनाव में आजसू ने बीजेपी संग चुनाव लड़ा था और 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इस बार आजसू ने सीटों की डिमांड बढ़ा दी, जिसके चलते दोनों की राहें अलग-अलग हो गईं। बीजेपी भी ओवर कॉन्फिडेंस में थी और उसने आजसू को मनाने की कोशिश नहीं की। इस बार आजसू 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लिहाजा कई सीटों पर उसने बीजेपी के वोट काट दिए। आजसू के अलावा एनडीए के अहम सहयोगी रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने भी झारखंड में अलग चुनाव लड़ा। इसका असर भी वोटों पर पड़ा।
बगावत व भीतरघात पड़ी भारी: सरयू राय की बगावत ने बीजेपी की राह मुश्किल कर दी। दरअसल, सरयू राय को ईमानदार नेता माना जाता है। उन्होंने बिहार और झारखंड में कई घोटालों का पर्दाफाश किया है। चारा घोटाले को सामने लाने में सरयू राय की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वहीं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को जेल भिजवाने वाले भी सरयू राय ही हैं। सरयू राय की बगावत से जनता में संदेश गया कि बीजेपी एक ऐसे नेता को टिकट नहीं दे रही, जो करप्शन के खिलाफ मुहिम चलाता रहा है। वहीं, बीजेपी को बड़े पैमाने पर अपने ही नेताओं के असहयोग और भीतरघात का सामना करना पड़ा। चुनाव से पहले दूसरे दलों के 5 विधायक बीजेपी में आए, जिन्हें टिकट मिला। इससे पहले से मौजूद बीजेपी नेता बागी हो गए। कई ने निर्दलीय चुनाव लड़ा तो कुछ चुपके-चुपके दूसरे दलों को समर्थन देने लगे।