जम्मू-कश्मीर में सबसे पहले 10 हजार जवान भेजे गए। इसके बाद 25 हजार अर्द्धसैनिक बलों की पलाटून तैनात कर दी गई। अमरनाथ यात्रा को अचानक रोक दिया और सैलानियों को जल्द से जल्द घाटी छोड़ देने का आदेश जारी किया गया। पूरे जम्मू-कश्मीर में तनाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि महबूबा मुफ्ती, शाह फैसल और सज्जाद लोन ने दिन निकलने तक का इंतजार नहीं किया। उन्होंने 2 अगस्त को आधी रात में ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात की और कश्मीर घाटी में डर की स्थिति को लेकर चिंता जताई। मलिक ने मामलों का घालमेल न करने और शांति बनाए रखने का अनुरोध किया, लेकिन कश्मीर में पेट्रोल पंप से लेकर एटीएम और राशन की दुकानों पर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं। हर किसी के मन में सिर्फ एक ही सवाल है…क्या वाकई कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है….और कब?

जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा अटकलें 35ए हटाने को लेकर लग रही हैं। सोशल मीडिया पर चर्चा है कि मोदी सरकार अपने एजेंडे के तहत आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35A को खत्म करने की कवायद कर रही है। इसके खिलाफ घाटी में होने वाले विरोध को दबाने के लिए अतिरिक्त फोर्स की तैनाती की जा रही है। महबूबा मुफ्ती कश्मीर में डर की दलीलें पेश कर रही हैं तो उमर अब्दुल्ला भी इन्हें हवा दे रहे थे।

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उमर ने अपने एक ट्वीट में लिखा है, “गुलमर्ग के होटलों में ठहरे दोस्तों को वहां से जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। राज्य सड़क परिवहन की बसों से पहलगाम और गुलमर्ग से लोगों को निकाला जा रहा है। अगर अमरनाथ यात्रियों पर खतरा है तो गुलमर्ग क्यों खाली कराया जा रहा है?” उन्होंने एक और ट्वीट किया है, इसमें उन्होंने कहा है “सेना और वायुसेना को अलर्ट पर क्यों रखा गया है? यह 35A और परिसीमन को लेकर तो नहीं। अगर ऐसा अलर्ट जारी किया गया है तो फिर यह बहुत कुछ अलग है।’’

सोशल मीडिया में तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कोई कह रहा है कि जम्मू-कश्मीर तीन हिस्सों में बांट दिया जाएगा तो किसी का दावा है 15 अगस्त को पीएम मोदी तिरंगा फहराने कश्मीर जा सकते हैं। कश्मीरी हिंदुओं को दोबारा बसाने की बातें भी सोशल मीडिया पर आम हैं। सियासी गलियारों की मानें तो चुनाव आयोग दिसंबर तक जम्‍मू-कश्‍मीर में विधानसभा चुनाव करा सकता है। ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्र हर तैयारी सुनिश्चित करने की कोशिश में है।

दरअसल, कश्मीर में चल रही तमाम हलचलों की शुरुआत उसी दिन हो गई थी, जब अमित शाह ने मोदी सरकार 2.0 में गृह मंत्री की कुर्सी संभाली थी। शाह ने साफ कहा था कि उनके एजेंडे पर जम्मू-कश्मीर सबसे ऊपर है। बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ लेने के दो दिन बाद ही यानी की 1 जून 2019 को अमित शाह ने गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। इसके महज तीन दिन बाद यानी 4 जून को उन्होंने गृह सचिव राजीव गौबा, अडिशनल सचिव (कश्मीर) ज्ञानेश कुमार समेत कई अफसरों के साथ मीटिंग की। बताया जा रहा है कि इस मीटिंग का मुख्य मुद्दा कश्मीर ही था।

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6 जून को भी अमित शाह ने एक और मीटिंग की, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजीत डोभाल और गृह सचिव राजीव गौबा शामिल हुए थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस मीटिंग का मुख्य मुद्दा भी आंतरिक सुरक्षा और सीमा सुरक्षा ही था।

 

महज 20 दिन बीते ही थे कि 26 जून को अमित शाह श्रीनगर पहुंच गए। जम्मू-कश्मीर के 2 दिवसीय दौरे के बाद उन्होंने अलगाववादियों को नरमी नहीं बरतने का साफ संदेश भी दिया। उन्होंने एक बयान में यह भी कहा कि शांति और सामान्य स्थिति के विरोधी लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा।

अमित शाह के दौरे के करीब एक महीने बाद 24 जुलाई को एनएसए अजीत डोभाल ‘सीक्रेट मिशन’ के तहत श्रीनगर गए। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने खुफिया एजेंसियों के आला अधिकारियों के साथ कई मीटिंग कीं और कश्मीर के मौजूदा हालात की जानकारी ली।

करगिल विजय दिवस से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि राज्य से न सिर्फ आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा, बल्कि कश्मीर मुद्दे का भी समाधान होगा। राजनाथ ने जम्मू-कश्मीर को जल्द ही ‘आतंकवाद मुक्त राज्य’ बनाने की घोषणा भी की थी।

क्या वाकई कश्मीर में लिए गए फैसलों के पीछे की वहज आतंकी हमले की आशंका है या मोदी सरकार लोकसभा चुनाव में किए अपने कश्मीर वादे को पूरा करने की तैयारी में जुट गई है…इन सवालों के जवाब मिलना अभी मुश्किल है।