देश की राजधानी दिल्ली और पड़ोसी नोएडा में किडनी रैकेट का दिल्ली पुलिस ने भंडाफोड़ किया है। इस मामले में पुलिस ने एक सर्जन सहित 10 आरोपियों की गिरफ्तारी की थी। हालांकि कई को इसमें जमानत मिल गई है। द इंडियन एक्सप्रेस ने इस मामले को लेकर एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट की। रिपोर्ट के पहले पार्ट में बताया गया कि किस प्रकार से किडनी रैकेट पिछले तीन वर्षों से फल फूल रहा था।

पुलिस पूछताछ में हुए बड़े खुलासे

एक आरोपी जो की बांग्लादेश का नागरिक है और उसका नाम रसेल है, उसने पुलिस पूछताछ में कई बड़े खुलासे किए हैं। शाहीन बाग में अल शिफा हेल्थ केयर सर्विसेज की एक बिल्डिंग है, जिसकी पहली मंजिल पर एक साधारण कार्यालय है। यहां के पड़ोसी कहते हैं कि कार्यालय के दरवाजे एक महीने से अधिक समय से बंद है। इंडियन एक्सप्रेस की जांच के अनुसार देश की चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र में अस्पताल और छोटी स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के बीच गठजोड़ इसलिए होता है कि व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके। (इन्वेस्टिगेशन का पहला पार्ट यहां पढ़ें)

अल शिफा ने दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो और नोएडा में अपोलो अस्पताल के लिए ‘मार्केटिंग पार्टनर’ के रूप में काम किया, जो अपोलो समूह का हिस्सा है, जिससे मरीजों की संख्या बढ़ाने में मदद मिली। लेकिन उसका इन अस्पतालों के साथ कोई औपचारिक समझौता नहीं था। इसके बजाय अल शिफ़ा ने हैदराबाद स्थित मेडिजर्न सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (MSPL) के साथ एक कानूनी समझौता किया था, जो दोनों अस्पतालों की एक ‘Extended Business Development Arm” है। रिकॉर्ड बताते हैं कि भुगतान अल शिफ़ा को कमीशन के रूप में MSPL के माध्यम से किया गया था।

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रिकॉर्ड बताते हैं कि अल शिफ़ा ने रसेल को ट्रांसलेटर के रूप में नियुक्त किया था, लेकिन उसके साथ कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ था। रसेल को कथित तौर पर इंद्रप्रस्थ अपोलो द्वारा ‘अधिकृत समन्वयक’ के रूप में एक आधिकारिक आईडी कार्ड जारी किया गया था, जिससे उन्हें अस्पताल परिसर तक पहुंच और दूतावास की मंजूरी और मरीज के दस्तावेज़ सहित प्रमुख प्रक्रियाओं में शामिल होने की अनुमति मिली।

अल शिफा की प्रतिक्रिया

अल शिफा के निदेशक मोहम्मद अफजल सिद्दीकी और अब्दुल हफीज ने कथित तौर पर जांच के दौरान पुलिस को बताया, “रसेल बांग्लादेश से केवल एक ट्रांसलेटर था। उन्होंने हमसे कभी बातचीत नहीं की। हमारा कार्यालय उससे बात करता था।” इंद्रप्रस्थ अपोलो के अधिकारियों ने कथित तौर पर पुलिस को बताया कि आईडी कार्ड अल-शिफा के अनुरोध पर जारी किए गए थे और इसका उद्देश्य “बांग्लादेश से आने वाले मरीजों की भाषा का समन्वय और व्याख्या करना था।

दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो और नोएडा में अपोलो अस्पताल ने इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया। इंडियन एक्सप्रेस ने टिप्पणी के लिए अल शिफ़ा के मैनेजमेंट से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन हो नहीं पाया। एक स्टाफ सदस्य ने फोन पर कहा, “मालिक यात्रा कर रहें हैं और फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं।”

केस रिकॉर्ड के अनुसार रसेल सिर्फ एक ट्रांसलेटर से कहीं अधिक था। उसने कथित तौर पर पुलिस के सामने खुलासा किया कि वह प्रत्यारोपण के लिए बांग्लादेश हाई कमीशन से तेजी से मंजूरी प्राप्त करने में शामिल था। उसने यह भी दावा किया कि डॉ. राजकुमारी के सचिव विक्रम ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से हाई कमीशन में मरीजों की फाइलें पहुंचाने का काम सौंपा था।

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जल्द फाइलों को मिली मंजूरी

रिकॉर्ड बताते हैं कि जांच के दौरान अस्पताल द्वारा प्रदान किए गए कम से कम 12 ईमेल एक्सचेंजों में हाई कमीशन से मंजूरी उसी दिन प्राप्त हो गई, जिस दिन संबंधित रोगी की फाइलें जमा की गई थीं। इनमें से पांच एनओसी 11 मिनट के भीतर, तीन 90 मिनट के भीतर और चार जमा करने के चार घंटे के भीतर प्राप्त हुईं। रिकॉर्ड बताते हैं कि दिल्ली पुलिस ने मामले के संबंध में अधिक जानकारी के लिए बांग्लादेश हाई कमीशन से संपर्क किया है। हाई कमीशन ने द इंडियन एक्सप्रेस की टिप्पणी का जवाब नहीं दिया।

मामले के रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि रसेल ने कथित तौर पर विदेशी मरीजों के लिए मध्यस्थ के रूप में काम किया और अस्पतालों के साथ उनके वित्तीय लेनदेन को संभाला। उसने दिखाया कि दो बैंक खातों से यूपीआई के माध्यम से अपोलो अस्पताल को भुगतान किया। इन खातों से न्यूनतम 2,000 रुपये से लेकर अधिकतम 1 लाख रुपये तक की राशि में कुल 17,06,421 रुपये अस्पताल में ट्रांसफर किए गए, जिसमें एक से 28 यूपीआई लेनदेन और दूसरे से 37 लेनदेन शामिल थे।

रिकॉर्ड बताते हैं कि रसेल ने पुलिस को बताया कि अल शिफ़ा ने कथित तौर पर उसे 25 प्रतिशत कमीशन दिया था। रसेल ने कथित तौर पर पुलिस को बताया, “मैंने 1 करोड़ रुपये कमाए, ढाका में 12 लाख रुपये का एक प्लॉट खरीदा और घर बनाने में 40 लाख रुपये खर्च किए।” हालांकि अल शिफ़ा मैनेजमेंट ने खुद को रसेल से दूर कर लिया। अल शिफा ने कथित तौर पर पुलिस को बताया, “अल शिफ़ा ट्रांसलेटर द्वारा भेजे गए मरीजों से भी नहीं मिलती है। विदेशी मरीजों के आने पर अस्पताल को बताते हैं और दस्तावेज़ (टिकट और पासपोर्ट) प्रदान करते हैं, जिन्हें बाद में अस्पताल को भेज दिया जाता है। अपोलो ने मेडिजर्न के साथ अपने समझौते की शर्तों के अनुसार अल शिफा को भुगतान किया है और ट्रांसलेटर को भुगतान करने के बाद अल शिफा के पास कुल कमीशन का केवल 1% बचा है।”

CDR से हुआ बड़ा खुलासा

केस रिकॉर्ड में 1 जनवरी से 17 जून, 2024 तक के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) भी शामिल हैं। रसेल, सर्जन के सचिव विक्रम और एक अन्य आरोपी शारिक के बीच की कॉल रिकॉर्ड है। पुलिस के अनुसार रसेल ने कथित तौर पर उन्हें बताया कि हिंदी और अंग्रेजी में बोलने के कारण उसका विक्रम से सीधा संपर्क था, लेकिन डॉक्टर से नहीं। इसके बजाय उसने कथित तौर पर पुलिस को बताया कि शारिक उनकी ओर से डॉ. राजकुमारी से बात करेगा।

कथित तौर पर कॉल रिकॉर्ड के अनुसार, “रसेल को विक्रम के नंबरों से 140 कॉल और उसके दूसरे नंबर से 40 कॉलें आईं और उसने विक्रम के पहले नंबर पर 43 और उसके दूसरे नंबर पर 29 कॉलें कीं। विक्रम को डॉ. राजकुमारी से 113 कॉल आईं और उन्होंने विक्रम को 17 कॉलें कीं। रसेल को शारिक से 279 कॉल आई और उसने उसे 157 कॉल की। शारिक को डॉ. राजकुमारी से 55 कॉल आईं और उन्होंने उन्हें 14 कॉल कीं।

रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि रसेल के पास कथित तौर पर डॉक्टरों के कथित लेटरहेड और लैब जांच रिपोर्ट तक पहुंच थी, जिसका इस्तेमाल वीजा बढ़ाने के लिए किया गया था। पुलिस ने इंद्रप्रस्थ अपोलो के अधिकारियों को पांच ऐसे दस्तावेज़ दिखाए जो उन्होंने जब्त किए थे। अस्पताल से एक कथित खाली लेटरहेड, 2 अप्रैल, 2024 को डॉ. राजकुमारी के लेटरहेड पर रसेल के लिए विदेशियों के रजिस्ट्रेशन कार्यालय को संबोधित एक कथित वीज़ा विस्तार पत्र, एक वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट के लेटरहेड पर रसेल के लिए 17 मई, 2024 का एक कथित ओपीडी पत्र, एक आर्थोपेडिक सर्जन के लेटरहेड पर रसेल के लिए 17 मई, 2024 का एक और कथित ओपीडी पत्र और 7 मई 2024 लैब जांच रिपोर्ट जब्त की गई। अस्पताल ने पुलिस को बताया कि ये सभी दस्तावेज़ जाली और नकली थे।