उत्तर प्रदेश भाजपा में असंतोष का बिगुल बजाया है उपमुख्यमंत्री और पिछड़ों के नेता केशव मौर्य ने। अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष की मौजूदगी में प्रदेश कार्यसमिति की लखनऊ में हुई बैठक में मौर्य ने दो टूक कहा कि वे कार्यकर्ता की अनदेखी नहीं होने देंगे।

अबकी बार…

प्रशांत किशोर ने अब चुनावी रणनीतिकार का चोला उतार दिया है। पिछले एक साल से अपने संगठन जनसुराज के माध्यम से प्रशांत किशोर बिहार में गांव-गांव घूमकर लोगों को समझा रहे हैं कि मौजूदा स्थापित राजनीतिक दल उनका भला कतई नहीं करने वाले। बिहारियों को सबल बनना होगा। प्रशांत किशोर एलान कर चुके हैं कि बिहार विधानसभा के अगले चुनाव में वे सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। महिलाओं और अति पिछड़ों को तरजीह देंगे। आगामी गांधी जयंती पर अपने राजनीतिक दल का एलान करेंगे। प्रशांत किशोर कमोबेश सभी दलों के चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं। शुरुआत 2014 में भाजपा के लिए रणनीति बनाने के साथ शुरू की थी। भाजपा सरकार की जगह अबकी बार मोदी सरकार उन्हीं का दिया नारा था। अब प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के पीछे पड़े हैं। भले नीतीश ने उन्हें एक वक्त मंत्री जैसा दर्जा दिया था। प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी की है कि अगले चुनाव में अगर भाजपा ने बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश अपने साथ भाजपा को भी ले डूबेंगे। भाजपा के सूबेदार सम्राट चौधरी पर भी प्रशांत किशोर ने काफी तंज कसे हैं। कहा कि नीतीश ने सबको पलटू बना दिया है। उनके पास न संगठन है और न जनाधार। पर समझदारी जरूरत से ज्यादा है, तभी तो पिछले दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज रहने का रिकार्ड बनाया है।

बेकार हुई बगावत

बगावत और दलबदल हमेशा और हर किसी के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं होता। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में कांगे्रस के छह विधायकों ने बगावत कर भाजपा के उम्मीदवार को जिताया। कांगे्रस का समर्थन कर रहे तीन निर्दलीय विधायकों ने भी उन्हीं का अनुसरण किया। उनके खिलाफ कांगे्रस किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकती थी। लेकिन कांगे्रस के छह बागियों को तो विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्य घोषित कर उपचुनाव की राह पर धकेल ही दिया। उन्हें भाजपा का दामन थामना पड़ा। भाजपा ने भी उपचुनाव में सभी को उम्मीदवार बना दिया। लेकिन जीते केवल दो। भाजपा ने बिसात तो कांगे्रस सरकार को अल्पमत में लाने के लिए बिछाई थी। पर अध्यक्ष ने इस्तीफे तब स्वीकारे जब छह बागियों की जगह चार कांगे्रस के जीत गए। निर्दलियों में से भी एक ही अपनी सीट बचा पाया है।

अपने साथ मित्र का भी नाम

लोकसभा चुनाव के बाद अब राज्यों में विधानसभा चुनावों की बारी है। फरवरी तक दिल्ली, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं। इन दिनों सबसे अधिक चर्चा में दिल्ली और हरियाणा हैं। केंद्र में सरकार बनने के बाद भाजपा में प्रदेश स्तर की सियासत में सक्रिय नेता अभी से ही सीटों की दावेदारी करते नजर आ रहे हैं। इसके लिए न सिर्फ अपने नामों को पार्टी के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि अपने सहयोगी मित्रों के भी नाम सामने रख दे रहे हैं। इनकी सोच है कि अगर इस बार नए चेहरों पर पार्टी फिर से दांव लगाती है तो इन नेताओं को भी मौका मिल सके। इन सक्रिय नेताओं ने अपनी-अपनी विधानसभा सीट पर पूरी तरह से सक्रियता भी दिखानी शुरू कर दी है।

सर्वदलीय

लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार पांचों सीटें और विधानसभा चुनाव लगातार दो बार जीतकर भाजपा ने उत्तराखंड में कांग्रेस पर अपनी धमक साबित की थी। लेकिन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा दोनों सीटें हार गई। बद्रीनाथ में कांगे्रस और मंगलौर में बसपा जीती थी। बद्रीनाथ के कांगे्रसी विधायक से इस्तीफा दिलाकर उसे भाजपा में शामिल किया गया था ताकि बद्रीनाथ-जोशीमठ पर भी कब्जा हो सके। कांग्रेस के बागी का भाजपा उम्मीदवार बनकर उपचुनाव लड़ना घाटे का सौदा साबित हुआ। कांगे्रस ने अपनी यह सीट भाजपा को नहीं झटकने दी। मंगलौर में भाजपा ने अपने तमाम वफादार कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर हरियाणा के गुर्जर नेता करतार सिंह भड़ाना को उम्मीदवार बना दिया। क्यों बनाया, कोई नहीं जानता। भड़ाना इनेलोद, रालोद और बसपा तीनों में रह चुके थे। मालदार न होते तो तीन राज्यों में तीन दलों से अलग-अलग सीटों से टिकट कैसे पा जाते। शुरू में हरियाणा की समालखा सीट से दो बार चुनाव जीते। हरियाणा सरकार में मंत्री भी रहे। फिर उत्तर प्रदेश आ गए और 2012 में रालोद के टिकट पर खतौली से जीत गए। लेकिन, 2017 में अपने रसूख के बूते रालोद से ही बागपत से टिकट पा गए। इस बार हार का मुंह देखना पड़ा। अगला चुनाव खतौली सीट पर बसपा उम्मीदवार की हैसियत से लड़ा और हारे। इस बार भाजपा ने उत्तराखंड की मंगलौर सीट से उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया था।

अंजाम-ए-असंतोष क्या होगा?

उत्तर प्रदेश भाजपा में असंतोष का बिगुल बजाया है उपमुख्यमंत्री और पिछड़ों के नेता केशव मौर्य ने। अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष की मौजूदगी में प्रदेश कार्यसमिति की लखनऊ में हुई बैठक में मौर्य ने दो टूक कहा कि वे कार्यकर्ता की अनदेखी नहीं होने देंगे। संगठन उनके लिए अहम है। वहीं दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने भी योगी से दूरी बना ली है। भूपेंद्र चौधरी पिछले एक महीने से हार का जिम्मा तो ले रहे हैं और इस्तीफे की पेशकश भी कर रहे हैं, पर इस्तीफा दिया नहीं। भाजपा के अनुशासन के अंगने में असंतोष के नृत्य की वजह क्या है? अचानक उठे असंतोष के निशाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही होंगे। उन्हें हटाने की कोशिश आलाकमान ने 2021 में कोविड की बदइंतजामी के बहाने की थी। पर आरएसएस ने लोकसभा चुनाव में हार का डर दिखा कर हिंदुत्व के सबसे बड़े अलंबरदार को बचा लिया था। इस बार योगी रहेंगे या जाएंगे, अभी कहना मुश्किल है। सूबे में विधानसभा की दस सीटों के उपचुनाव के नतीजे आने के बाद ही उठापटक का यह खेल अपना ठिकाना लेगा।

संकलन- मृणाल वल्लरी