केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल एक मौलिक अधिकार है और इसे मनमाने ढंग से नहीं हटाया जा सकता। जस्टिस पीवी आशा की एकल पीठ ने बीए की एक छात्रा फहीम अशरफ की याचिका पर उक्त बात कही है। दरअसल फहीमा अशरफ के हॉस्टल में रात के समय इंटरनेट इस्तेमाल करने पर रोक है, जिसके खिलाफ छात्रा ने केरल हाईकोर्ट का रुख किया है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि मोबाइल और इंटरनेट मूलभूत जरुरतें हैं, जो छात्रों को पढ़ाई और क्षमता विकास में मदद करती हैं। वहीं याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि मोबाइल फोन और लैपटॉप के गलत इस्तेमाल की बात को आधार नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि इनका गलत इस्तेमाल किसी भी वक्त किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि आज मोबाइल फोन जीवन का हिस्सा बन गए हैं और गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीने के लिए इन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने तकनीक के कई फायदे भी गिनाए और कहा कि व्यस्कों को इन सुविधाओं के इस्तेमाल से नहीं रोका जा सकता।
केरल हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी उल्लेख करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी में सूचना पाने का अधिकार, कनेक्टिविटी प्रोटेक्शन का अधिकार भी शामिल होता है। ऐसे में अथॉरिटीज मोबाइल फोन और लैपटॉप के गलत इस्तेमाल की बात कहकर इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती हैं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयोग की परिषद ने भी इंटरनेट को मौलिक अधिकार माना है। कोर्ट ने कहा कि छात्रों को इंटरनेट के फायदों और नुकसान को लेकर काउंसलिंग की जाए।
बता दें कि कोझिकोड के चेलानुर स्थित श्री नारायण कॉलेज में मोबाइल और इंटरनेट के रात में इस्तेमाल पर प्रतिबंध लागू हैं। कॉलेज की छात्रा फहीम अशरफ द्वारा रात के समय मोबाइल इस्तेमाल करने के चलते उसे कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।