कुलपति की नियुक्ति और राष्ट्रपति को डीलिट से सम्मानित करने सहित कई मुद्दों पर केरल की सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार के साथ टकराव के बाद, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान अब हिजाब मुद्दे को लेकर पड़ोसी कर्नाटक के घटनाक्रम में गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं।

इस मुद्दे पर अभी तक केंद्र सरकार की ओर से कोई आवाज नहीं उठाए जाने से, राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता के गलियारे में खान की टिप्पणी पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। उनका यह बोलना कि मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहना वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है और तीन तलाक पर प्रतिबंध से परेशान लोग हिजाब से विवाद खड़ा कर रहे हैं, का केंद्र के भाजपा नेताओं ने खुशी-खुशी स्वागत किया है। बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, पार्टी में खान का फैन क्लब बढ़ रहा है।

अभी हाल ही में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान उज्जैन में महाकाल के दरबार में दर्शन के लिए गए थे। उन्होंने माहाकालेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की। भगवान महाकाल को भोग लगाया और आरती ली। मंदिर से निकलने के बाद राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने ईश्वर से देश की प्रगति मांगी है।

इस बीच हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख करने वाली मुस्लिम छात्राओं ने मंगलवार को तर्क दिया कि भारत का धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत तुर्की के विपरीत ‘सकारात्मक’ है और स्कार्फ पहनना आस्था का प्रतीक है, न कि धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन। उन्होंने तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि भारत में धर्मनिरपेक्षता ‘तुर्की की धर्मनिरपेक्षता’ की तरह नहीं है, बल्कि यहां यह धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक है, जिसमें सभी धर्मों को सत्य के रूप में मान्यता दी जाती है।

छात्राओं ने उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ से छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षाओं में जाने की छूट देने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि अदालत ने अपने अंतरिम आदेश के जरिये उनके ‘मौलिक अधिकारों’ को निलंबित कर दिया है। उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि किसी को पसंद नहीं करने के आधार पर उसे उसके अधिकार से वंचित करने की प्रथा ठीक नहीं है।

इस संदर्भ में उन्होंने अदालत को याद दिलाया कि जब उसने अंतरिम आदेश पारित किया तो उसके जेहन में धर्मनिरपेक्षता थी। धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या करते हुए, कामत ने तर्क दिया, ”हमारी धर्मनिरपेक्षता तुर्की की धर्मनिरपेक्षता जैसी नहीं है। हमारी धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक है, जहां हम सभी धर्मों को सत्य मानते हैं।”

उन्होंने पीठ के समक्ष भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का जिक्र करते हुए कहा कि इस अनुच्छेद में ‘अंत:करण की स्वतंत्रता’ की बात कही गई है। कामत ने उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ से कहा, ”इस (अंत:करण की स्वतंत्रता) शब्द में बहुत गहराई है। अनुच्छेद 25 का सार यह है कि यह आस्था की रक्षा करता है, न कि धार्मिक पहचान या कट्टरता के प्रदर्शन की।”