बीचएयू में करीब 15 दिन से अपने ही छात्रों का विरोध झेल रहे असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान एक तरह से अंडरग्राउंड हो गए हैं। वह अपना मोबाइल फोन भी ज्‍यादतर ऑफ रख रहे हैं। वह हैरान हैं कि पूरी उम्र उन्‍होंने संस्‍कृत पढ़ी तो क‍िसी ने मुसलमान होने का अहसास नहीं कराया और अब पढ़ाने जा रहे हैं तो मुसलमान बता कर उनका व‍िरोध हो रहा है। व‍िरोध करने वाले छात्रों का कहना है क‍ि एक मुसलमान हमारी संस्‍कृत‍ि कैसे समझ सकता है और जब वह हमारी संस्‍कृत‍ि नहीं समझेगा तो हमें पढ़ाएगा कैसे?

एक्‍टर और पूूर्व बीजेपी सांसद परेश रावल ने इस व‍िरोध को गलत बताते हुए ट्वीट क‍िया क‍ि ऐसी दलील के आधार पर तो मोहम्मद रफी को भजन नहीं गाने चाहिए औऱ नौशाद साहब को इन्हें कंपोज नहीं करना चाहिए। उनके इस ट्वीट पर कई लोग उन्‍हें ट्रोल करने लगे और पूछा- क्‍या मक्‍का में कोई ह‍िंदू अरबी पढ़ा सकता है? लेक‍िन, यह सवाल करने वालों को यह नहीं पता क‍ि मक्‍का क्‍या, केरल में ही एक ब्राह्मण महि‍ला ने 27 साल तक अरबी पढ़ाई। वह संभवत: अरबी पढ़ाने वाली पहली ब्राह्मण हैं।

गोपाल‍िका अंतरजन्‍म ने 1987 से अरबी पढ़ाना शुरू क‍िया था। 2016 में वह 29 साल की सेवा के बाद र‍िटायर हुई थीं। माना जाता है क‍ि अरबी पढ़ाने वाली पहली ब्राह्मण मह‍िला हैं। उनका मानना है क‍ि अरबी बेहद खूबसूरत भाषा है। गोपाल‍िका के पर‍िवार में पारंपर‍िक रूप से पूजा-पाठ का ही काम होता था। उनके वंशज कोट्ट‍ियूर मंद‍िर के पारंपर‍िक पुजारी रहे हैं। खुद गोपाल‍िका ने भी शुरू में संस्‍कृत की ही पढ़ाई की थी। लेक‍िन, 17 साल की उम्र में वह अरबी सीखने चली गईं।

ज‍िस इंस्‍टीट्यूट में वह गईं, वहां कुछ और ब्राह्मण व‍िद्यार्थी भी थे। 1987 में उनकी शादी हुई तो वह मल्‍लापुरम ज‍िले में रहने के ल‍िए चली गईं। वहां जब उन्‍होंने अरबी पढ़ाना शुरू क‍िया तो उनकी न‍ियुक्‍त‍ि का व‍िरोध हुआ था। व‍िरोध के बाद उन्‍हें नौकरी से न‍िकाल द‍िया गया। गोपाल‍िका ने इसके ख‍िलाफ लड़ाई लड़ी। केरल हाईकोर्ट तक गईं। 1989 में कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया।

कोर्ट का फैसला आने के बाद गोपाल‍िका ने केरल लोक सेवा आयोग के जर‍िए परीक्षा पास कर मल्‍लापुरम के एक अन्‍य स्‍कूल में अरबी श‍िक्षक की नौकरी शुरू की। तब इस पूरे घटनाक्रम पर केरल में खूब चर्चा हुआ करता था। लेक‍िन, गोपाल‍िका के खुद के जुनून और पत‍ि सह‍ित पूरे पर‍िवार के साथ के चलते उनका हौसला कभी कम नहीं हुआ। 2015 में उनके काम का सम्‍मान करते हुए व‍िश्‍व अरबी द‍िवस पर एक मुस्‍ल‍िम संगठन ने उन्‍हें सम्‍मान‍ित भी क‍िया था।

BHU के संस्‍कृत व‍िद्या धर्म व‍िज्ञान (SVDV) में अस‍िस्‍टेंट प्रोफेसर बहाल हुए फ‍िरोज खान ने इंड‍ियन एक्‍सप्रेस से कहा है क‍ि ताउम्र संस्‍कृत पढ़ी, कभी मुझे मुसलमान होने का अहसास नहीं कराया गया, लेक‍िन अब जब मैं पढ़ाने जा रहा हूं तो आज मेरा मुस्‍ल‍िम होना ही एक मुद्दा रह गया है। खान दूसरी जमात से ही संस्‍कृत पढ़ रहे हैं। उनके प‍िता भी भजन गाते हैं और संस्‍कृत के ज्ञाता हैं। लेक‍िन, बीएचयू में व‍िरोध का नेृतत्‍व करने वाले एसवीडीवी के शोध छात्र कृष्‍णा कुमार का कहना है क‍ि अगर कोई व्‍यक्‍त‍ि हमारी भावानाओं और संस्‍कृत‍ि से जुड़ा नहीं होगा तो वह हमें और हमारे धर्म को समझ नहीं पाएगा।

फ‍िरोज ने 7 नवंबर को जॉयन क‍िया है। तब से एसवीडीवी में कोई कक्षा नहीं लगी है। व‍िरोध करने वालेे छात्रों का कहना है क‍ि उनका व‍िरोध क‍िसी राजनीत‍िक संगठन से प्रेर‍ित नहीं है। लेक‍िन, यह एक सच्‍चाई है क‍ि कृष्‍णा और उनके तीन साथ‍ियों का संबंध आरएसएस और एबीवीपी (भाजपा से संबद्ध छात्रों का संगठन) से रहा है। ऐसे में व‍िरोध का अंजाम क्‍या होगा और फ‍िरोज इसका सामना क‍िस तरह करेंगे, अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।