पांच राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस के भीतर एक-दूसरे पर कीचड़ उछाड़ने का दौर शुरू हो गया है। इस हार का ठीकरा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के सिर फोड़ा जा रहा है। केसी वेणुगोपाल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं और जी-23 के नेताओं के निशाने पर हैं। हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि केसी वेणुगोपाल राहुल गांधी के लिए वही हैं जो दिवंगत अहमद पटेल सोनिया गांधी के लिए थे।

1991 में केसी वेणुगोपाल पहली बार तब सुर्खियों में आए जब केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरण ने उन्हें कासरगोड से लोकसभा का टिकट दिलाया। तब पार्टी के स्टूडेंट विंग के अध्यक्ष 28 वर्षीय वेणुगोपाल करीबी मुकाबले में चुनाव हार गए थे। वहीं, 1995 में वह अर्जुन सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करने के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के फैसले पर सार्वजनिक रूप से करुणाकरण के खिलाफ हो गए थे।

केसी वेणुगोपाल पहली बार 1996 में विधायक बने, इसके बाद वह 2001 और 2006 में फिर से चुनाव जीतकर आए। साल 2004 में वह ओमान चंडी सरकार में मंत्री बने। 2009 में उन्होंने अलाप्पुझा से लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और सांसद बने। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब देश भर में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया था, वेणुगोपाल उन मुट्ठी भर सांसदों में से थे जो केरल से जीते थे और उन्हें पार्टी का व्हिप बनाया गया था।

सोनिया गांधी के करीबी रहे अहमद पटेल की तरह, कहा जाता है कि वेणुगोपाल ने भी अपने राजनीतिक सूझबूझ के प्रमाण दिए हैं। उनके भरोसेमंद लोगों का कहना है कि वेणुगोपाल ने ही राहुल गांधी को 2019 के चुनावों में केरल में दूसरी सीट से लड़ने के लिए राजी किया क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हवा के रूख भांप लिया था।

वेणुगोपाल अभी राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी में विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद बगावती सुर देखे जाने लगे हैं। जी-23 के नेता लगातार बयानबाजी कर रहे हैं और इस बीच बैठकों का दौर जारी है। जब वेणुगोपाल 1987-1992 में केरल छात्र संघ के अध्यक्ष थे, उस वक्त मनीष तिवारी एनएसयूआई प्रमुख थे। आनंदपुर साहिब से सांसद भी जी-23 सदस्यों में से एक हैं और हालिया विधानसभा चुनावों में हार पर वे अपनी निराशा जाहिर कर चुके हैं।